
Himachal : बड़ी और मध्यम इंडस्ट्रियल यूनिट्स के लिए हाईकोर्ट ने लगाई 16.5 फीसदी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी वसूलने पर रोक
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश में स्थापित बड़ी और मध्यम इंडस्ट्रियल यूनिट्स के लिए हाईकोर्ट ने राज्य में काम कर रही बड़ी और मध्यम इंडस्ट्रियल यूनिट्स से साढ़े सोलह फीसदी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी वसूल करने के फैसले पर रोक लगा दी है। इस संदर्भ में राज्य सरकार ने आदेश जारी किए थे और उपरोक्त यूनिट्स को साढ़े सोलह फीसदी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी देने के लिए कहा था। इस आदेश को कंपनियों ने याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
कंपनियों की तरफ से दाखिल याचिकाओं की सुनवाई के बाद हिमाचल हाईकोर्ट ने बड़ी और मध्यम औद्योगिक इकाइयों से साढ़े 16 फीसदी से अधिक इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी वसूलने पर रोक लगा दी है। अदालत ने कानून के प्रावधानों के विपरीत अधिक बिजली शुल्क वसूले जाने को लेकर राज्य सरकार की तरफ से जारी आदेश पर रोक लगा दी। जिला सोलन में बद्दी स्थित ईस्टमैन ऑटो एंड पावर लिमिटेड ने हिमाचल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने उपरोक्त आदेश पारित किए।
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प्रार्थी संस्था ईस्टमैन ऑटो एंड पावर लिमिटेड के अनुसार राज्य में 1 अगस्त 2015 से बड़े और मध्यम औद्योगिक उपभोक्ताओं के संबंध में बिजली शुल्क 11 फीसदी तय किया गया था। फिर पहली सितंबर 2023 को जारी अधिसूचना के तहत इसे बढ़ाकर 17 और 19 प्रतिशत तक कर दिया गया। कंपनी का तर्क था कि यह हिमाचल प्रदेश विद्युत (शुल्क) अधिनियम, 2009 की धारा-11 की उपधारा (2) के खिलाफ है। तय प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार अधिसूचना के माध्यम से केवल पहले से तय बिजली शुल्क में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर सकती है।
याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि बिजली की दर को 11 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी से 19 फीसदी तक करना अधिनियम की धारा-11 के खिलाफ प्रतीत होता है। ऐसे में अदालत ने राज्य सरकार को मध्यम उद्योगों के साथ ही बड़े उद्योगों के संबंध में 16.5 प्रतिशत से अधिक बिजली शुल्क वसूलने से रोकने के आदेश पारित किए। उल्लेखनीय है कि इससे पहले अप्रैल महीने में भी हाईकोर्ट ने इसी नेचर के आदेश पारित किए थे। तब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ने अधिक ड्यूटी वसूलने पर याचिका दाखिल की थी। उस समय भी हाईकोर्ट ने साढ़े सोलह फीसदी से अधिक ड्यूटी वसूलने पर रोक लगाई थी। अब एक अन्य कंपनी की याचिका पर ये रोक लगाई गई है।