
विलुप्त होने की कगार पर प्राकृतिक पेयजल स्त्रोतों का अस्तित्व
पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर
‘जल है तो कल है’- सामान्य मानव जीवन में अक्सर सभी इन पंक्तियों को सुनते-पढ़ते आए हैं तथा इसके भावार्थ को भी अच्छे तरीके से समझते हैं। लेकिन ज्ञान होने के बावजूद लोग जल को व्यर्थ में बहाने से बाज नहीं आते, यह जानने के बावजूद कि जल के बिना कल की कल्पना करना असंभव है क्योंकि जल ही इस पृथ्वी पर संजीवों के जीवन का आधार है। जीवन के सभी कार्यों का निष्पादन करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक जल स्रोतों का प्राकृतिक रूप से विशेष महत्त्व है, जिसे हमारे पूर्वज भली-भांति जानते थे। लेकिन आज के लोगों की इन प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रति प्रवृत्ति बिल्कुल ही असंवेदनशील हो गई है। पहले व्यक्ति की दिनचर्या इन्हीं प्राकृतिक जल स्त्रोतों के जल के साथ पूजा करके प्रारंभ होती थी।
साथ में ही सभी एक साथ मिलकर प्राकृतिक जल स्त्रोतों से जल लेने जाते थे तथा वहां की सफाई भी करते थे, जिससे प्राकृतिक संतुलन भी बरकरार रहता था। लेकिन आज के लोग सुबह पानी लाना तो छोड़ो, नल में आए पानी को भर लें, वही बहुत बड़ी बात है। कहीं न कहीं प्राकृतिक जल स्रोतों के विलुप्त होने के पीछे आमजन का ही हाथ है और साथ में प्रशासन की अनदेखी भी इनकी विलुप्तता को और बढ़ावा देती है। आप देखते होंगे कि जब आप छोटे-छोटे थे, तो उस समय कितने जल स्त्रोत आसपास होते थे तथा वहां से जल लाने का भी अपना ही एक अलग उत्साह होता था। लेकिन समय के साथ-साथ ये सब विलुप्त होते जा रहे हैं, जिनको विलुप्तता से बचाना आमजन यानी हम और आपकी नैतिक जिम्मेदारी है।
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हमें प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण को अपना लक्ष्य बनाना होगा, क्योंकि जल के बिना कल की कल्पना एक अधूरा व धुंधला सपना सा प्रतीत होता है। जल पृथ्वी पर उपलब्ध एक बहुमूल्य संसाधन है। जैसा कि सभी को ज्ञात ही है कि धरती का लगभग तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किंतु इसमें से 97 फीसदी पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ तीन फीसदी है। इसमें भी दो फीसदी पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है।
इस प्रकार सही मायने में मात्र एक फीसदी पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है। सोचें, अगर इस एक प्रतिशत जल को भी हम यूं ही व्यर्थ में बहा देंगे तो उपयोग करने के लिए जल की पूर्ति कहां से संभव हो पाएगी। यह एक गहन चिंतनीय विषय है जिस पर समाज में बात व गहन विचार करने की आवश्यकता है। नगरीकरण और औद्योगिकीकरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
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जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जाती है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं कि बस जैसे-तैसे गर्मी का सीजन निकल जाए, बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जाएगी। हम यह सोचकर जल संरक्षण के प्रति बेरुखी अपनाए रहते हैं। हमारा यही असंवेदनशील रवैया हमें कल के लिए जल से वंचित करवाएगा, यह स्पष्ट है। शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। आज भी शहरों में फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरूरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है। प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर ही अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।
अगर हम हिमाचल की बात करें, तो यहां भी प्राकृतिक जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। एक समय ऐसा था, जब हिमाचल में पर्याप्त संख्या में प्राकृतिक जल स्रोत हुआ करते थे तथा उनकी देखभाल भी सही ढंग से हुआ करती थी। लेकिन आज स्थिति भयंकर हो गई है तथा अधिकतर जल स्रोत सूख गए हैं। जो बाकी बचे प्राकृतिक जल स्रोत हैं, उनकी देखभाल भी सही ढंग से नहीं हो रही है। इस कारण ऐसी स्थिति जल्द आने वाली है, जब हिमाचल जैसे पानी वाले राज्य को भी प्राकृतिक जल स्रोतों के अभाव में भीषण संकट का सामना करना पड़ेगा।