
सरकार की स्थानांतरण नीति में 60 फीसदी विकलांगता को हाईकोर्ट में दी चुनौती
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में सरकार की साल 2013 की स्थानांतरण नीति के तहत 60 प्रतिशत विकलांगता को चुनौती दी गई है। बता दें कि शुक्रवार को सरकार ने मामले में जवाब दायर कर दिया। न्यायाधीश संदीप शर्मा और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ के समक्ष यह मामला सूचीबद्ध किया गया था। मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी। याचिका में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति उन कर्मचारियों के लिए है, जो 40 प्रतिशत या उससे अधिक की विकलांगता रखते हैं।
जबकि पर्सनल डिसेबिलिटी एक्ट के तहत विकलांगता 40 फीसदी है और प्रदेश की नीति के तहत 60 की गई है जोकि अधिनियम के खिलाफ है। याचिकाकर्ता जोकि 40 फीसदी से अधिक विकलांगता की श्रेणी में है को दुर्गम क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया था। याचिकाकर्ता ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उनके स्थानांतरण पर अंतरिम रोक लगा रखी है। अदालत ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी किया था और इस पर अपना जवाब दायर करने को कहा था। अदालत ने अपने कई आदेशों में सरकार को निर्देश दिए हैं कि 40 फीसदी से अधिक विकलांगता वाले व्यक्ति को दुर्गम में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन (एसीपी) योजना का लाभ लेने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है। इसमें याचिकाकर्ता ने योजना का लाभप्रदान करने और अपनी पिछली सेवाओं को वरिष्ठता के लिए गिनने की मांग की थी। न्यायाधीश सत्येन वैद्य की अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एसीपी योजना के तहत लाभ के पात्र नहीं हैं। उनका नियुक्ति के समय पद व वेतनमान मूल और वर्तमान विभाग से भिन्न थे। याचिकाकर्ता ने सबसे पहले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग में स्टेनो टाइपिस्ट के रूप में सेवा शुरू की थी। 1 नवंबर 1999 को वह प्रतिनियुक्ति पर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड में क्लर्क रूप में शामिल हुई और 21 सितंबर 2012 को उनकी सेवा स्थायी रूप से बोर्ड में समाहित कर दी गई।
याचिकाकर्ता का दावा था कि 2003 में 8 साल की सेवा पूरी होने पर एसीपी योजना का लाभ मिलना चाहिए था। इसमें टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग में उनकी पिछली सेवाओं को भी शामिल करना चाहिए था, लेकिन बोर्ड ने 31 दिसंबर 2003 को और फिर 10 अगस्त 2011 को उनके अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि स्टेनो टाइपिस्ट और क्लर्क के पद समान नहीं थे। कहा गया कि बोर्ड में स्टेनो टाइपिस्ट का कोई पद नहीं था। अदालत ने पाया की याचिकाकर्ता ने स्वेच्छा से प्रतिनियुक्ति का विकल्प चुना था।
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के रूप में नामांकन को रद्द करने वाली अपील को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने एकल जज के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसके तहत बार काउंसिल ने अधिवक्ता के रूप में नामांकित करने से इन्कार कर दिया था। कोर्ट ने दोहराया कि अपीलकर्ता इंद्रपाल सिंह एलएलबी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पात्र नहीं थे और इसलिए वह अधिवक्ता के रूप में नामांकन के हकदार 3 नहीं हैं। अपीलकर्ता ने अपनी एलएलबी डिग्री हासिल करते समय आवश्यक स्नातक योग्यता पूरी नहीं की थी, जिससे उनका नामांकन नियमों के खिलाफ था। कोर्ट ने पाया कि एकल न्यायाधीश ने नियमों पर विधिवत विचार किया था।