
Diksha Thakur| Pol Khol News Desk
ब्रजेश्वरी देवी मंदिर/ कांगड़ा
देवी-देवताओं का निवास पहाड़ों में होता है। इसी कारण से माता के ज्यादातर शक्तिपीठ पहाड़ों में बसे हुए हैं। हिमाचल के कांगड़ा जिले के नगरकोट में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। प्रसिद्ध नौ देवी यात्रा में तीसरे स्थान पर आता है। माता व्रजेश्वरी देवी मंदिर को नगर कोट की देवी व कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है। ब्रजेश्वरी देवी हिमाचल प्रदेश का सर्वाधिक भव्य मंदिर है। मंदिर के सुनहरे कलश के दर्शन दूर से ही होते हैं।
ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। इसके अलावा भगवान शिव के रूप भैरव नाथ भी मंदिर में विराजमान हैं। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है।
पांडवों के द्वारा बनवाया गया ब्रजेश्वरी देवी मंदिर
भगवान शिव के द्वारा माता सती की मृत देह को लेकर क्रोध में तांडव किए जाने के कारण भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता की देह को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। इस दौरान इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यही कारण है कि यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
हालाँकि मूल मंदिर की स्थापना महाभारत काल के दौरान पांडवों ने की थी। एक दिन पांडवों ने अपने स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था, जिसमें उन्होंने पांडवों को बताया कि वह नगरकोट गाँव में स्थित हैं और यदि पांडव चाहते हैं कि वे सुरक्षित रहने के साथ हमेशा विजयी रहें तो उन्हें उस क्षेत्र में एक मंदिर बनाना चाहिए। उसी रात पांडवों ने नगरकोट गाँव में उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर की संरचना और माता ब्रजेश्वरी देवी
मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार किसी किले के प्रवेश द्वार की तरह बनाया गया है। मंदिर का परिसर भी किले की ही तरह पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर के पीछे छेत्रपाल और भगवान शिव का भी मंदिर बना हुआ है। मंदिर परिसर में ही भगवान शिव के ही एक रूप भैरव का मंदिर भी है। इसके अलावा मंदिर में ध्यानु भक्त की भी एक मूर्ति मौजूद है, जिसने माता के चरणों में अपना शीश अर्पित कर दिया था।
मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है। खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।
तीन भागों में चढ़ता है प्रसाद
मंदिर के गर्भगृह में माता ब्रजेश्वरी देवी तीन पिंडी के रूप में विराजमान हैं। पहली प्रमुख पिंडी माता ब्रजेश्वरी देवी हैं। दूसरी पिंडी माँ भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी माँ एकादशी हैं। ब्रजेश्वरी मंदिर में माता का प्रसाद तीन भागों में चढ़ाता है। पहला भाग महासरस्वती, दूसरा भाग महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाया जाता है। एकदाशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता।
हर बार अपने मूल वैभव की ओर लौटा मंदिर
यह मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध हुआ करता था। इस मंदिर को कईं विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार लुटा था। सन् 1009 के दौरान महमूद गजनवी ने इस मंदिर को लूटा और यहाँ से कई टन सोना और अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ अपने साथ ले गया। गजनवी ने इस मंदिर को 5 बार लूटा और नष्ट किया। गजनवी के बाद मोहम्मद बिन तुगलक और सिकंदर लोधी ने भी इस मंदिर को लूटा और साथ ही साथ मंदिर को भारी नुकसान पहुँचाया। हालाँकि हर बार हिन्दू अथक परिश्रम करके और अपने सामर्थ्य के अनुसार मंदिर को पुनः उसका वैभव प्रदान कर देते थे।
इसके बाद सन् 1905 में एक तीव्र भूकंप के कारण मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया लेकिन अंततः एक बार फिर भक्तों और सरकार के अथक प्रयासों के कारण मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। आज हम जो मंदिर देखते हैं, यह भूकंप के बाद ही बनाया गया है।
भविष्य की घटनाओं की जानकारी देता है मंदिर
जम्मू कश्मीर की खीर भवानी माता की तरह इस मंदिर में स्थित भैरव बाबा भी भविष्य में होने वाली अनहोनी घटना की पूर्व जानकारी देते हैं। कहा जाता है कि जब भी आसपास के क्षेत्र में कोई अनहोनी होने की आशंका होती है तो मंदिर में स्थापित लगभग 5000 साल पुरानी भैरव बाबा की प्रतिमा से पसीना और आँखों से आँसू गिरने शुरू हो जाते हैं। मंदिर के पुजारी इसके बाद विशाल यज्ञ का आयोजन करते हैं और माता बज्रेश्वरी देवी से संकट को टालने का अनुरोध करते हैं।
कैसे पहुँचें मंदिर
कांगड़ा से सात किलोमीटर की दूरी पर एक हवाईअड्डा है, जो दिल्ली से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा शिमला से 23 किमी की दूरी पर स्थित जुबरहट्टी में भी एक हवाईअड्डा है, जहाँ दिल्ली से विमान के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। जुबरहट्टी से कांगड़ा की दूरी लगभग 215 किमी है। इसके अलावा कांगड़ा से चंडीगढ़ हवाईअड्डे की दूरी भी लगभग 215 किमी ही है। पठानकोट, कांगड़ा से सबसे नजदीक स्थित ब्रॉड गेज रेल मुख्यालय है, जिसकी दूरी लगभग 90 किमी है। सड़क मार्ग से भी कांगड़ा पहुँचना काफी आसान है। कांगड़ा, धर्मशाला से लगभग 18 किमी दूर ही स्थित है, जो कई बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।