
दीक्षा ठाकुर | News Desk
नैना देवी मंदिर – रिवालसर
नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। आपने हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित श्री नैना देवी के भव्य मंदिर के बारे में तो बहुत बार सुना होगा। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है, लेकिन आज हम आपको रिवालसर में स्थित श्री नैना देवी के बारे में अवगत करवाना चाहते हैं। भले ही लोग इन नैना देवी के बारे में कम जानते हों लेकिन यहां के क्षेत्र में ये मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
रिवाल्सर से 10 किलोमीटर की दूर समुद्र तल से 1900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, नैना माता का मंदिर पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है। राज्य के सभी कोनों से भक्त यहाँ माता के दर्शन करने आते हैं।
बैसाखी के दौरान यहां पर काफी भीड़ बढ़ जाती है। इस मंदिर में माता की सुंदर मूर्ति विराजमान है। मंदिर में दोनो समय लंगर भी चलता है। चारों ओर से मंदिर से खूबसूरत नजारे दिखायी देते हैं।
इसी मंदिर परिसर में अन्य देवी देवताओ के भी मंदिर बने हुए हैं। देवी की चल डोली मंदिर से रिवालसर के मेले के दौरान अपनी यात्रा पर देव समागम की ओर चल देती है। देव समागम हिमाचल में काफी प्रसिद्ध है यहां पर सभी देवी देवताओ की चल प्रतिमाऐं अपने मंदिर से मेला में जाते हैं और वहां पर सभी देवताओ का मिलन भी होता है और साथ ही लोगो को सभी देवी देवताओ को एक साथ देखने का मौका भी मिल जाता है। माता की डोली को लेकर चलने वाले लोगो में तुरही और ताशे बजाने वाले आगे आगे चलते हैं। रास्ते में मिलने वाले सभी लोग डोली को प्रणाम करते और आर्शीवाद लेते जाते हैं।
नैना माता का इतिहास
मान्यताओं के अनुसार पास के एक गांव में एक कन्या रहती थी, जिसका नाम तारा था। डाकू उसका पीछा करते करते जहाँ आज यह मंदिर है, स्थान पर आ पहुंचे। इस स्थान पर उस कन्या ने श्री कृष्ण को द्रोपदी की तरह उसकी रक्षा करने के लिए पुकारा, तब उस कन्या को श्री लोमेश ऋषि तप में लीन दिखाई दिए। धरती के फटने पर वे कन्या इस स्थान पर समा गई, जो बाद में माँ उग्र तारा के रूप में प्रसिद्ध हुई।
प्राचीन काल से ही इस स्थान को देवथल अर्थात देव स्थल के नाम से जाना जाता है। यहां के इतिहास के अनुसार इस स्थान पर मंदिर का निर्माण सन 1630 ईस्वी. के करीब में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण उस कारीगर द्वारा किया गया था जिसने 1625 ईस्वी में मंडी के राजा सूरज सेन के दमदमा वर्तमान में माधवराव महल का निर्माण किया था। राजा सूरज सेन ने उस कारीगर का दाहिना हाथ कटवा दिया था। डोहुओं के पूर्वज हरिराम ने इस मंदिर का निर्माण शिखर शैली में करवाया था। सन 1905 के भयंकर भूकंप में यह भव्य मंदिर धराशाही हो गया था। इसके बाद यहाँ पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण किया गया था। जो वर्तमान में मंदिर के अंदर स्थित है। राजा अजबर सेन के द्वारा डोहु नामक ब्राह्मण को आसपड़ोस के गांव का शासकनियुक्त किया गया और पूजा पाठ हेतु इस मंदिर में उन्हें अधिकृत किया गया।
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मंडी के राजा विजय सेन की सन 1894 के मध्य आँखों की रोशनी जा रही थी। बहुत जगह इलाज करवाने के बाबजूद भी उनकी आँखों की रोशनी नहीं लौटी। माँ द्वारा स्वप्न में राजा को इस स्थान पर आंखे चढ़ाने का दृष्टान्त मिला। राजा द्वारा चांदी की आंखे माँ को भेंट करने पर राजा की आँखों की रौशनी वापिस लौट आई। तब राजा ने राजाज्ञा द्वारा माँ तारा का नाम नैना माता रखा। तब से लेकर अबतक आदिशक्ति को माँ नैना देवी के रूप में ही जाना जाता है।