Diksha Thakur| Pol Khol News Desk
हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली
हिडिम्बा देवी मंदिर उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश राज्य के मनाली में स्थित है। यह एक प्राचीन गुफा मंदिर है, जो भारतीय महाकाव्य महाभारत के भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को समर्पित है। यह मनाली में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसे ढुंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मनाली घूमने आने वाले सैलानी इस मंदिर को देखने जरूर आते हैं। यह मंदिर एक चार मंजिला संरचना है जो जंगल के बीच में स्थित है। स्थानीय लोगों ने मंदिर का नाम आसपास के वन क्षेत्र के नाम पर रखा है। हिल स्टेशन में स्थित होने के कारण बर्फबारी के दौरान इस मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी यहां जुटते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि हिडिम्बा देवी मंदिर में हिडिम्बा देवी के पदचिह्नों की पूजा की जाती है।’
कहानी
जुए में सब कुछ हारने के बाद धृतराष्ट्र व दुर्योधन ने पाण्डवों को वारणावत नाम स्थान में भेज दिया था। यहां उन्हें जीवित जला देने की योजना बनाई गई थी। पाण्डवों के रहने के लिए पूरा महल लाख का बनाया गया था जो जरा सी आग लगते ही जल उठे। पाण्डवों का इस साजिश का पता चल गया और उन्होंने रात को भीतर ही भीतर एक सुरंग खोद डाली। रात को भवन में आग लगने पर वे सुरंग के रास्ते भाग निकले। इस सुरंग के रास्ते वे निकल कर गंगातट पर आ गए। नाव से गंगा को पार किया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़े।
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कौरव यही सोचते रहे कि पांडवों की मौत हो गई है। यहां से बच निकलने के बाद पांडव कौरवों की नजरों से बचने के लिए जंगलों में वनवास काटते रहे। इसी दौरान जंगलों में चलते चलते वे एक राक्षस क्षेत्र में आ पहुंचे। सभी थके हुए थे। उन्हें प्यास भी लगी थी। महाबली भीम पानी लेने गए। जब वे पानी ले कर वापिस आए तो क्या देखते हैं कि माता कुंती सहित सभी भाई थक कर सो चुके हैं। भीम इस तरह अपनी माता और भाईयों को जंगल में जमीन पर सोते देख बहुत दुखी हुए। उस जंगल में हिंडिब नाम का राक्षस अपनी बहन हिंडिबा सहित रहता था।
हिडिंब ने अपनी बहन हिंडिबा से जंगल में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिंडिबा ने पांचों पांडवों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। इस राक्षसी का भीम को देखते ही उससे प्रेम हो गया। इस कारण इसने उन सबको नहीं मारा जो हिडिंब को बहुत बुरा लगा। फिर क्रोधित होकर हिडिंब ने पांडवों पर हमला किया।
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हिडिंब और भीम में काफी देर तक जमकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भीम ने हिडिंब को मार डाला। हिंडिबा भीम को चाहती थी। उसने भीम को शादी करने के लिए कहा लेकिन भीम ने विवाह करने से मना कर दिया। इस पर कुंनी ने भीम को समझाया कि इसका इस दुनिया में अब और कोई नहीं है। इसलिए तुम हिंडिबा से विवाह कर लो। कुंती की आज्ञा से हिंडिबा एवं भीम दोनों का विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ जिसने महाभारत की लड़ाई में अत्यंत वीरता दिखाई थी। उसे भगवान श्रीकृष्ण से इंद्रजाल (काला जादू) का वरदान प्राप्त था। उसके चक्रव्यूह को सिर्फ और सिर्फ खुद भगवान श्रीकृष्ण ही तोड़ सकते थे।
पाण्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा राक्षसी नहीं रही। वह मानवी बन गई। कालांतर में मानवी से देवी बन गई। हिडिम्बा का मूल स्थान चाहे कोई भी रहा हो पर जिस स्थान पर उसका दैवीकरण हुआ है वह मनाली ही है।
इतिहास
हिडिम्बा देवी मंदिर का निर्माण हिमालय पर्वतों के कगार पर डुंगरी शहर के पास एक पवित्र देवदार के जंगल के बीच में करवाया गया है। माना जाता है कि भीम और पांडव मनाली से चले जाने के बाद हिडिम्बा राज्य की देखभाल के लिए वापस आ गए थे। ऐसा कहा जाता है कि हिडिम्बा बहुत दयालु और न्यायप्रिय शासिका थी। जब उसका बेटा घटोत्कच बड़ा हुआ तो हिडिम्बा ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया और अपना शेष जीवन बिताने के लिए ध्यान करने जंगल में चली गयी। हिडिम्बा अपनी दानवता या राक्षसी पहचान मिटाने के लिए एक चट्टान पर बैठकर कठिन तपस्या करती रही।
कई वर्षों के ध्यान के बाद उसकी प्रार्थना सफल हुई और उसे देवी होने का गौरव प्राप्त हुआ। हिडिम्बा देवी की तपस्या और उसके ध्यान के सम्मान में इसी चट्टान के ऊपर इस मंदिर का निर्माण 1553 में महाराजा बहादुर सिंह ने करवाया था। मंदिर एक गुफा के चारों ओर बनाया गया है। मंदिर बनने के बाद यहां श्रद्धालु हिडिम्बा देवी के दर्शन पूजन के लिए आने लगे।
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भगवान श्रीकृष्ण ने हिडिंबा देवी को लोगों के कल्याण के लिए प्रेरित किया था। विहंगमणि पाल को कुल्लू के शासक होने का वरदान हिडिंबा देवी ने ही दिया था। वह कुल्लू के पहले शासक विहंगमणि पाल की दादी और कुल की देवी भी कहलाती है। कुल्लू का दशहरा तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हिडिंबा वहां न पहुंच जाए।
कहा जाता है कि मंदिर लगभग 500 साल पुराना है। श्रावण मास में आयोजित होने वाले मेले को सरोहनी मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला धान की रोपाई पूरा होने के बाद आयोजित होता है। इसके अलावा नवरात्र के दौरान भी मंदिर में दशहरा महोत्सव का आयोजन होता है जिसमें दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगती है।