
डीजीपी का कार्यकाल तय हो, अफसरों की नियुक्ति-पदोन्नति बोर्ड करे : हाईकोर्ट
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल हाईकोर्ट ने पुलिस के प्रति जनता के बढ़ते असंतोष पर गहरी चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने कानून के उल्लंघन, अपराधियों से मिलीभगत, भ्रष्टाचार, भेदभावपूर्ण रवैये, मानवाधिकारों की अनदेखी, जवाबदेही की कमी और गैर पेशेवर व्यवहार जैसे गंभीर मुद्दों पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने कहा कि डीजीपी के लिए निश्चित कार्यकाल, नियुक्ति और पदोन्नति पुलिस स्थापना बोर्ड करे। कोर्ट ने पुलिस स्थापना बोर्ड का गठन करने के साथ ही पुलिस की जवाबदेही तय करने, जांच और कानून व्यवस्था के कार्यों को अलग-अलग करने और कानून एवं जनता के प्रति समग्र जवाबदेही सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। यह निर्णय रवीना बनाम हिमाचल प्रदेश मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया।
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस स्थानांतरण और पोस्टिंग राजनेताओं की ओर से प्रभावित है। राजनीतिक दखल से योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी होती है और पक्षपात बढ़ता है। इससे पुलिस की प्रभावशीलता में गिरावट और संभावित भ्रष्टाचार होता है। न्यायालय ने पुलिस विभाग में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। अदालत ने कहा कि पुलिस अधिनियम में अंतिम संशोधन 2006 में हुआ था, जिसके बाद जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, साइबर अपराध और नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों में काफी वृद्धि हुई है। न्यायालय ने पुलिस में रिक्त पद भरने, बीट सिस्टम और पुलिस स्टेशनों को मजबूत करने के निर्देश भी दिए।
वहीं, कोर्ट ने कहा कि वीवीआईपी आवागमन के लिए समर्पित पायलट वाहन इकाइयों होनी चाहिएं। कठिन ड्यूटी के लिए अतिरिक्त वेतन, पुलिस कल्याण कोष, आवास योजना, कम से कम तीन पदोन्नति, ड्यूटी पर चोट या मृत्यु के लिए मुआवजा, योग्य डॉक्टरों की भर्ती कर नियमित चिकित्सा जांच, चयन बोर्ड का गठन किया जाए। इसके अलावा मनोचिकित्सकों की नियुक्ति, यातायात पुलिस के लिए ब्रेक, सुरक्षात्मक उपकरण और शिफ्ट-आधारित पुलिसिंग को लागू करने के भी निर्देश दिए गए हैं। अदालत ने कहा कि आईपीएस कैडर पदों जैसे एसपी सिरमौर और एसपी बद्दी में एचपीएस अधिकारियों की तैनाती की जानी चाहिए। कैडर अधिकारियों की भर्ती होनी चाहिए। अदालत ने इन निर्देशों के अनुपालन के लिए मामले को 3 जून को सूचीबद्ध किया है।
नशीले पदार्थों के बढ़ते मामलों को देखते हुए अदालत ने एनडीपीएस मामलों के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि मामलों का समयबद्ध निपटारा हो सके। एफएसएल प्रयोगशालाओं की क्षमता बढ़ाने पर भी जोर दिया। वहीं, अदालत ने निर्देश दिया कि पुलिस अधिकारियों को उनके उप विभागों में तैनात नहीं किया जाना चाहिए। असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर किसी को भी ऐसे स्थानों पर पोस्टिंग नहीं दी जानी चाहिए। पोस्टिंग का अधिकतम कार्यकाल तीन साल और सीमावर्ती क्षेत्रों में दो साल निर्धारित किया जाना चाहिए। काम के 8 घंटे सुनिश्चित किए जाएं।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रतिनियुक्ति पर स्वास्थ्य सेवा निदेशक और शिक्षा सचिव को अपने-अपने विभागों से संबंधित हलफनामे दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। खंडपीठ ने कहा कि हलफनामों में ऐसे सभी अधिकारियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाए, जो वर्तमान में अपनी निर्धारित तैनाती के स्थान से अलग संस्थानों में नियुक्त हैं। वह अन्य स्थानों से वेतन प्राप्त कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि हलफनामों में यह भी स्पष्ट किया जाए कि इन अधिकारियों को शुरू में इन वैकल्पिक स्थानों पर कब तक प्रतिनियुक्त किया गया था। इस मामले की अगली सुनवाई 5 जून को होगी। खंडपीठ ने कहा कि अधिकारियों का विशिष्ट विवरण और संख्या प्रदान नहीं की गई है।
अगली सुनवाई पर अदालत को बताएं कि इन अधिकारियों को उनकी मूल पोस्टिंग से कितनी अवधि के लिए प्रतिनियुक्त किया गया है और कहां पर तैनाती दी गई है तथा कहां पर प्रतिनियुक्ति की गई है। स्वास्थ्य सेवाएं निदेशक ने 27 दिसंबर के एक हलफनामे में स्वीकार किया कि कर्मचारियों को उच्च या समकक्ष पदों पर अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में पोस्टिंग या समायोजित करने की अनुमति है। वहीं, महत्वपूर्ण बात यह है कि जनजातीय और कठिन क्षेत्रों में रिक्त पदों से उनके वेतन की निकासी बिना सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति के किया जा रहा है। हलफनामे में बताया गया है कि उच्च या समकक्ष पदों पर तैनात कर्मचारियों की संख्या और उन पदों के विरुद्ध आहरित वेतन पर सामान्य डाटा संकलित किया जा रहा है। इसी तरह से शिक्षा सचिव ने 30 दिसंबर को दिए गए हलफनामे में स्वीकार किया कि गंभीर चिकित्सा समस्याओं वाले शिक्षकों या उनके आश्रितों को सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के अधीन, उचित चिकित्सा सुविधाओं वाले स्थानों के पास अस्थायी रूप से प्रतिनियुक्त किया जाता है। कर्मचारियों को प्रतिकूल व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण अन्य संस्थानों में तैनात या समायोजित करने की भी अनुमति है।