
हाईकोर्ट : शादी के वादे के साथ 9 वर्ष तक शारीरिक संबंध रखना अविश्वसनीय
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच 9 वर्षों तक लंबे शारीरिक संबंध जारी रखना शादी का वादा था, यह अविश्वसनीय है। न्यायाधीश राकेश कैंथला की अदालत ने कहा कि प्रारंभिक स्तर पर कहीं भी नहीं पाया गया है कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता से कोई झूठा वादा किया था। अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच शारीरिक संबंध लगभग एक दशक की लंबी अवधि तक जारी रहा। इस प्रकार का यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अपीलकर्ता प्रारंभिक स्तर से ही उससे शादी करने के झूठे वायदे करता रहा, जिसके आधार पर वह भी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाती रही।
हाईकोर्ट ने मौजूद रिकॉर्ड सामग्री को ध्यान में रखते हुए कहा कि आरोप तय करने में त्रुटि पाई गई है। इसके चलते न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया है। अदालत ने कहा कि यदि किसी पुरुष पर शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया जाता है और यदि उसे आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जाता है तो ऐसा कोई भी शारीरिक संबंध सीधे किए गए झूठे वादे से जुड़ा होना चाहिए, न कि अन्य परिस्थितियों से।
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वहीं, याचिकाकर्ता पर आरोप लगाए गए कि उसने पीड़िता को पहले शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाए। बाद में शादी करने से इन्कार कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायालय पोक्सो जिला नाहन ने 28 जून 2024 को याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2), 417 सहित 34 और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप तय करने के आदेश दिए। याचिकाकर्ता ने इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। इसी आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज किया है।
आपको बता दें कि वर्ष 2008 में अपीलकर्ता पीड़िता से पहली बार मिला। वर्ष 2014 में दोनों परिवारों के बीच तय हुआ कि दो-तीन वर्ष के बाद शादी होगी, क्योंकि याचिकाकर्ता का परिवार घर बना रहा था। 2017 में दोनों का विवाह तय हुआ। लेकिन याचिकाकर्ता के परिवार में कुछ अनहोनी के कारण ऐसा न हो सका। वर्ष 2019 में याचिकाकर्ता के माता-पिता ने शादी करने का आश्वासन दिया कि 2020-21 में शादी कर दी जाएगी। शिकायत में आरोप लगाए हैं कि याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों ने पैसों और गाड़ी की मांग की थी।
वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से न्यायालय में कहा कि आरोप पत्र में आरोप तय करने को उचित ठहराने वाली सामग्री नहीं थी। पीड़िता 30 वर्ष की पढ़ी-लिखी लड़की है। उसने स्वेच्छा से अभियुक्त के साथ यौन संबंध बनाए। वर्ष 2014 में विवाह तय हुआ कि सगाई की रस्म 2015 में हुई थी और विवाह 2019 में होना था। दोनों की सहमति से संबंध बने। रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने उसे गुमराह किया।