Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
माता आशापूरी मंदिर/ Jaisimpur(कांगड़ा)
देवभूमी हिमाचल पावन और पवित्र मानी गई है। इसलिए ये देवी-देवताओं के प्रिय स्थानों में से एक है। आज भी हिमाचल की भूमि यहां के धार्मिक स्थानों की वजह से ही पूरे भारत वर्ष में माननीय है। इनमें से एक है मां आशापूरी मंदिर। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के जयसिंपुर में पहाड़ी की चोटी पर माता आशा पूरी का मंदिर स्थित है। पंचरुखी के निकट चंगर की वादियों में पवित्र टीले पर स्थित शक्तिपीठ मां आशापुरी जो सभी भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती है। अपनी बेजोड़ वास्तुशिल्प के लिए चर्चित इस मंदिर की अपनी गाथा है। इस मंदिर की देखरेख पुरातत्त्व विभाग करता है। इस सिद्धपीठ का उल्लेख देवी भागवत पुराण में मिलता है।
माता आशापूरी मंदिर का इतिहास
माता आशापूरी का यह मंदिर शक्तिपीठ उपखण्ड की धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर है। मां आशापूरी मंदिर को माता वैष्णो देवी का रूप माना जाता है। माता आशापूरी का मंदिर पंचुरुखी से लगभग 15 किमी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर 16वीं शताब्दी में बना है। इसका निर्माण कटोच वंश के प्रसिद्ध राजा मान सिंह ने करवाया था। यह मंदिर शिखर शैली का नमूना है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान माता आशापूरी से लगभग 4 किमी दूर मल्ली नामक गुफाओं में कुछ दिन बिताए थे। कहा जाता है कि जब कर्ण पांडवों का वनवास भंग करने के लिए माली की गुफाओं में पहुंचे तो उन्हें वहां पांडव तो नहीं मिले, लेकिन इस गुफा में माता आशापूरी के दर्शन हुए। कर्ण ने माता आशापूरी की पिंडी ढूंढी और वहां एक भव्य मंदिर बनवाया, जो आज माता आशापूरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
माता आशापूरी मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर माता वैष्णो देवी की एक पिंडी प्रकट हुई है। ऐसा माना जाता है कि माता वैष्णो देवी एक दूध बेचने वाले के सपने में आई थीं। सुबह उठकर जब वह सपने में दिखी गुफा के पास गया और वहां से एक पत्थर हटाया तो उसे पहले से बनी हुई सड़क मिल गई।
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जब वह उस रास्ते में दाखिल हुआ तो उसे वहां माता वैष्णो की तीन पिंडियां और देवी-देवताओं की पत्थरों से बनी मूर्तियां मिलीं। वहां से थोड़ी दूरी पर आप इस गुफा में स्थित बाबा भेदनाथ जी के भी दर्शन कर सकते हैं, जहां लोग बाबा से अपने जानवरों की रक्षा के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। माता आशापूरी मंदिर हरी-भरी पहाड़ियों, छोटी-छोटी नदियों, छोटे-छोटे झरनों आदि के बीच बना है जहां आपको मानसिक शांति और एक अविश्वसनीय यात्रा का अनुभव होता है।
माता आशापुरी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय
आशापूरी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से अक्टूबर के बीच है, यहां दिन का मौसम गर्म होता है और सर्दियों में बहुत ठंड होती है, कभी-कभी पारा शून्य डिग्री से भी नीचे पहुंच जाता है। इसलिए यहां पहुंचने का समय जनवरी से मार्च के बीच है।
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माता आशापूरी मंदिर महोत्सव/मेला
माता आशापूरी मंदिर में हर साल नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। देवी मंदिरों में दिन से लेकर रात तक माता रानी के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।