
हिमाचल :लावारिस कुत्तों और बंदरों के हमलों पर प्रदेश हाईकोर्ट सख्त
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में लावारिस कुत्तों व बंदरों की बढ़ती समस्या और उनके काटने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कड़ा संज्ञान लिया है। वहीं खंडपीठ ने कुत्तों व बंदरों के पुनर्वास के लिए एनजीओ की मदद से कैटल पाउंड (पशु आश्रय) जैसी व्यवस्था पर याचिकाकर्ताओं के वकीलों से सुझाव मांगे हैं। उच्च न्यायालय ने कुत्तों और बंदरों के गणना सर्वेक्षण पर हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए हैं और स्पष्ट करने को कहा कि क्या शहरी क्षेत्र में कुत्तों-बंदरों आबादी की कोई गणना की गई है। सुनवाई के दौरान नगर निगम धर्मशाला की ओर से हलफनामा दाखिल किया और बताया कि कुत्तों के संबंध में एक प्रस्ताव बनाया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई की। मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी।
हिमाचल हाईकोर्ट ने प्रदेश के शहरों और कस्बों में लावारिस कुत्तों और बंदरों के बढ़ते खतरे पर चिंता व्यक्त करते हुए 10 सितंबर 2024 को एक विस्तृत आदेश पारित किया गया था। इसमें केंद्र सरकार से पशु जन्म नियंत्रण नियम 2023 के उस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। इसके तहत नसबंदी के बाद जानवरों को उस स्थान पर वापस छोड़ना अनिवार्य किया गया है, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। कोर्ट ने विशेष रूप से उल्लेख किया था कि शहरी क्षेत्रों, स्कूलों और बाजार क्षेत्र में जहां छोटे बच्चे और बुजुर्ग रहते हैं, वहां इन जानवरों के हमले का जोखिम अधिक होता है।
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ऐसी स्थिति में नसबंदी के बाद भी जानवरों को वापस उन्हीं स्थानों पर छोड़ना खतरनाक हो सकता है। कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि जानवरों को छोड़ने के दिशा-निर्देशों को इस तरह से संशोधित किया जाए कि कम से कम शहरी क्षेत्र, स्कूलों व बाजारों के आसपास के क्षेत्र को इससे बाहर रखा जाए। आपको बता दें कि शिमला शहर में छोटा शिमला, हाईकोर्ट, जाखू, संजौली, समिट्री, ढली चौक, लक्कड़ बाजार, माल रोड, समरहिल, विकासनगर और आईजीएमसी शिमला में हर रोज कोई न कोई व्यक्ति कुत्तों और बंदरों के हमले का शिकार हो रहा है। कुत्तों-बंदरों के डर से खासकर महिलाएं, स्कूल जाने वाले बच्चों और बुजुर्गों को घरों से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो गया है।