कब है धनतेरस? 1 घंटा 41 मिनट का शुभ मुहूर्त, जानें सोना खरीदने का सही समय, महत्व
पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर
धनतेरस का पर्व हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इसे धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि को देवताओं के वैद्य धन्वंतरि सागर मंथन से प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी मनाते हैं। इस दिन प्रदोष व्रत भी रखा जाता है, जिसमें शाम को भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस साल धनतेरस के दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है। इस योग में आप जो भी कार्य करेंगे, उसका तीन गुना फल प्राप्त होगा। अस साल धनतेरस पर 1 घंटा 41 मिनट का शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा। धनतेरस के दिन लोग सोना, चांदी, आभूषण, वाहन, मकान, दुकान, धनिया, झाड़ू, नमक, पीतल के बर्तन आदि खरीदते हैं। आइए जानते हैं कि धनतेरस कब है? धनतेरस का मुहूर्त और महत्व क्या है?
धनतेरस 2024
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस के लिए जरूरी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 10 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होगी। इस तिथि का समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर होगा। इस साल धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर मंगलवार को है।
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धनतेरस 2024 मुहूर्त
29 अक्टूबर को धनतेरस के दिन पूजा के लिए आपको केवल 1 घंटा 41 मिनट का ही शुभ मुहूर्त मिलेगा। धनतेरस पर पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 6 बजकर 31 मिनट से रात 8 बजकर 13 मिनट तक है। धनतेरस पर प्रदोष काल का समय शाम को 5 बजकर 38 मिनट से रात 8 बजकर 13 मिनट तक है। उस दिन वृषभ काल का समय शाम 6 बजकर 13 मिनट से रात 8 बजकर 27 मिनट तक है। इस साल धनतेरस पर सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त सुबह में 10 बजकर 31 मिनट से अगले दिन 30 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 32 मिनट तक है। धनतेरस पर सोना खरीदने के लिए आपको 20 घंटे 1 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा।
त्रिपुष्कर योग में धनतेरस 2024
इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है। उस दिन त्रिपुष्कर योग सुबह में 6 बजकर 31 मिनट से बन रहा है, जो सुबह 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा धनतेरस पर सुबह में 7 बजकर 48 मिनट तक इंद्र योग है, उसके बाद वैधृति योग बनेगा। उस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र शाम को 6 बजकर 34 मिनट तक है, उसके बाद से हस्त नक्षत्र होगा।
चिकित्सा विज्ञान का किया था प्रचार
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। इस दिन घर के द्वार पर तेरस दीपक जलाए जाने की प्रथा है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है – पहला धन और दूसरा तेरस जिसका अर्थ होता है धन का तेरह गुना। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण इस दिन को वैद्य समाज धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाता है।
इसलिए मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस तिथि को भगवान धन्वंतरि समुद्र से निकले, वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश माना जाता है और इन्होंने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से निकली थीं इसलिए उस दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
एकबार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं। फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है। तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया। एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया।
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ज्योतिषाचार्यों ने की भविष्यवाणी
ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर बताया कि इस बालक की विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पसीज गया था। सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना पड़ेगा।
यमराज ने बताया उपाय
यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके। तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।