
दीक्षा ठाकुर। पोल खोल न्यूज़ डेस्क
चिंडी माता मंदिर/ करसोग (मंडी)
आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे अनोखे मंदिर के इतिहास के बारे में बताएंगे, जिसका नक्शा किसी इंसान ने नहीं बल्कि चीटिंयों की डोर ने तैयार किया था। मंडी जिले में स्थित करसोग 1404 मीटर की ऊंचाई पर बसा कसबा है जो अपने मंदिरो के लिए प्रसिद्ध है। इस पुरातन जगह का संबंध पांडवों से भी है। चिंडी मंदिर करसोग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चिंडी माता का मंदिर क्षेत्र में रहने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है।
चींटियों ने बनाया मंदिर का नक्शा
हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए ये मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। इस मंदिर को चिंडी माता के नाम से पुकारा जाता हैं। चिंडी माता मंदिर में अति प्राचीन अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है। ये मूर्ति पत्थर की बनी हुई है। इस मंदिर की खास बात ये है कि इस मंदिर का नक्शा किसी इंसान ने नहीं बल्कि चीटिंयों की डोर ने तैयार किया था। इसलिए इस मंदिर का नाम चिंडी मंदिर पड़ा।
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चिंडी माता मंदिर की कहानी
चिंडी माता मंदिर की सदियों से लेकर चली आ रही कहानी आज भी बरकरार है। कहा जाता हैं कि माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी। माता ने मंदिर का निर्माण खुद चींटियों की डोर बनाकर किया था। नक्शे की जानकारी माता ने पंडित को स्वप्न में आकर दी थी। उसके बाद नक्शे को देखकर मंदिर बनाया गया था। मंदिर के साथ बने तालाब और भंडार का नक्शा भी चींटियों ने ही बनाया था।
राजा लक्ष्मण सेन ने भुगता खामियाजा
कहते हैं कि चिंडी माता अपने क्षेत्र को छोड़कर कभी बाहर नहीं गई, लेकिन जब सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन ने माता को चौखट से बाहर निकालने की कोशिश की तो उसका खामियाजा राजा को भुगतना पड़ा था।
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पुरौणिक कथाओं के अनुसार एक बार सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन ने चिंडी माता को सुंदरनगर बुलाने की जिद्द की थी। कारदारों ने जैसे ही माता को चौखट से बाहर निकाला। उसी समय माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई, लेकिन इसके बावजूद भी राजा के आदेश के अनुसार माता को ले जाने की कोशिश की गई। माता की इच्छा के बिना उन्हें ले जाने का खामियाजा राजा को भुगतना पड़ा। राजा को माता के रौद्र रूप का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि राजा लक्ष्मण सेन अपनी गलती का पछतावा करने खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचा था।
चिंडी माता अपनी मर्जी से हर तीसरे साल बाद बाहर निकलती हैं। माता तीन दिन के लिए मंदिर से बाहर आती हैं। दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं।