
महान व्यक्तित्त्व और समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती एवं गुरु रविदास की शिक्षाएं आज भी हैं महत्वपूर्ण
पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर
संत रविदास और स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के प्रखर व्याख्याता थे। स्वामी ने वेदों का गहन अध्ययन ही नहीं किया अपितु उसकी सरल व्याख्या प्रस्तुत कर लोगों के लिए सुलभ कराया। संत रविदास ने मन की निर्मलता पर बल दिया।
जिन्होंने दिखाया आत्मज्ञान का मार्ग
भारत की धरती पर कई महान गुरु हुए, जिनमें से एक थे संत रविदास। जिनके वचनों ने दुनियाभर में परचम लहराया। इनकी वाणी में इतनी ताकत थी कि जो भी उन्हें सुनता था उनका मुरीद हो जाता था। गुरु रविदास जी ने अपने वचनों और दोहों से भक्ति की ऐसी अलौकिक ज्योति जलाई जो आज भी सभी को रोशन कर रही है। इस महान संत को दुनिया आज भी याद करती हैं और उनके सम्मान में हर साल रविदास जयंती का पर्व मनाती हैं। पंचांग अनुसार संत रविदास जयंती हर साल माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। मान्यताओं अनुसार इसी दिन गुरु रविदास जी का जन्म हुआ था।
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गुरु रविदास जयंती, गुरु रविदास जी के जन्मदिन की खुशी में मनाई जाती है। यह त्योहार सामाजिक समानता और भक्ति के प्रति उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है। गुरु रविदास जी ने जाति-पाति के भेदभाव को खत्म करने के लिए काफी काम किया। इसलिए उनके सम्मान में हर साल उनके जन्मदिन को गुरु रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, गुरु रविदास जी का जन्म 1377 ई. के समय उत्तर प्रदेश के वाराणसी के किसी गांव में हुआ था। तो वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि गुरु रविदास का जन्म 1399 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इतिहासकारों अनुसार रविदास जी की मृत्यु करीब 1518 ईस्वी में वाराणसी में हुई थी। ये भारत के महान कवि-संत थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन में अहम योगदान दिया था।
रविदास जी जाति प्रथा के उन्मूलन में प्रयास करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भक्ति आंदोलन में भी योगदान दिया है, और कबीर जी के अच्छे दोस्त के रूप में पहचाने जाते हैं। रैदास पंथ का पालन करने वाले लोगों में रविदास जयंती का एक विशेष महत्व है, इसमे न केवल रविदास जी का अनुसरण करने वाले लोग, बल्कि अन्य लोग जो किसी भी तरह से रविदास जी का सम्मान करते हैं, जैसे कुछ कबीरपंथियों, सिखों और अन्य गुरुओं के अनुयायी, भी शामिल हैं। गुरु रविदासजी मध्यकाल में एक भारतीय संत कवि सतगुरु थे। इन्हें संत शिरोमणि संत गुरु की उपाधि दी गई है। इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं। इन्होंने जात पात का घोर खंडन किया और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
बाल विवाह, छुआछूत का जिन्होंने किया पुरजोर विरोध
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक थे, जिनका योगदान आर्य समाज की स्थापना में ही नहीं बल्कि भारतीय समाज को जागरूक करने में भी महत्वपूर्ण रहा है। उनका जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बना। दयानंद सरस्वती ने वेंदो के प्रचार प्रसार के लिए मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। जब महिलाओं के खिलाफ भेदभाव चरम पर था। उस वक्त केवल वही थे जो इन सब समस्याओं के खिलाफ खड़े हुए थे।
उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के काठियावाड़ जिले के टंकारा गांव में हुआ था, लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती मनाई जाती है।उन्होंने आर्य समाज की स्थापना के साथ साथ समाज के सुधार के लिए भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया।
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संत स्वामी दयानंद ने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए सबसे पहले आवाज उठायी थी। शुरुआत में उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली लेकिन फिर धीरे धीरे लोग उनके साथ जुड़ने लगे और समाज में फैली बुराइयां जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, और पशु बलि के खिलाफ भी स्वामी दयानंद ने जोरदार तरीके से आवाज उठाई। वेंदो के प्रचार प्रसार के लिए वे हमेशा प्रयास करते रहें, उनका मानना था कि बिना वेंदो के ज्ञान के हिंदू धर्म का प्रसार संभव नहीं है। बचपन से ही स्वामी दयानंद को घर में धार्मिक वातावरण मिला जिसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। बचपन से ही उन्होंने उपनिषदों, वेदो, धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन किया था, जिससे उन्हें लोगों को जीवन में सही मार्ग दिखाने में बहुत मदद मिली।
महर्षि दयानंद इसके अलावा समाज में फैली बाकी बुराइयों के खिलाफ भी जीवन भर लगातार कार्य करते रहे। उनके इन्हीं प्रयासों के लिए उन्हें उनकी जयंती पर हर साल याद किया जाता है। महर्षि दयानंद जयंती विश्व स्तर पर मनाई जाती है। उनके अनुयायी हर साल उनकी जयंती के दिन उनकी शिक्षाओं, नैतिकता और अच्छे कार्यों को लिए उन्हें याद करते हैं।