Diksha Thakur| Pol Khol News Desk
हमीरपुर
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण और गायों को समर्पित है। यह मथुरा, वृंदावन और अन्य ब्रज क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है। इस दिन खासतौर पर गौ माता की पूजा और सेवा करने का विधान है। इस दिन गायों को उनके बछड़े के साथ सजाने और पूजा करने की परंपरा है। आज के दिन श्रीकृष्ण के पिता नंद महाराज ने श्रीकृष्ण को गायों की देखभाल की जिम्मेदारी दी थी और श्रीकृष्ण गायों को चराने वन ले गये थे। इस साल गोपाष्टमी 20 नवंबर यानि आज है।
गोपाष्टमी की कथा
मान्यता के अनुसार कान्हा जिस दिन गौ चराने के लिए पहली बार घर से निकले थे, वह कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी, इसलिए इस तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। गोपाष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री कृष्ण छह वर्ष के हुए तो यशोदा जी से कहने लगे, ‘मईया अब मैं बड़ा हो गया हूं। यशोदा जी प्रेम पूर्वक बोलीं- अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें। इस पर कन्हैया बोले- अब मैं बछड़े चराने नहीं जाउंगा, अब मैं गाय जाउंगा। इसपर यशोदा जी ने कहा- ठीक है बाबा से पूछ लेना। अपनी मईया के इतना कहते ही झट से कृष्ण जी नंद बाबा से पूछने पहुंच गए।
नंद बाबा ने कहा: लल्ला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ, लेकिन कन्हैया हठ करने लगे। तब नंद जी ने कहा ठीक है लल्ला तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे।बाबा की बात सुनकर कृष्ण जी झट से पंडित जी के पास पहुंच गए और बोले- पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दुंगा।
ये भी पढ़ें : Taste Of Himachal: पहाड़ियों का सबसे गुप्त रहस्य है छा गोश्त/ मटन करी
पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे, तब नंद बाबा ने पूछा, क्या बात है पंडित जी? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? तब पंडित जी ने कहा, क्या बताएं गौ चारण के लिए केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडित जी की बात सुनने के बाद नंदबाबा को गौ चारण की स्वीकृति देनी पड़ी। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया। यह शुभ तिथि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि थी, भगवान के द्वारा गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
एक अन्य मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा था। आठवें दिन जब इंद्र देव का अहंकार टूटा और वे श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने आए। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी पर गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है।
ये भी पढ़ें : गोपाल कृष्ण गोशाला खैरी में धूम धाम से मनाया गोपाष्टमी पर्व
शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 20 नवंबर सुबह 05:21 से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 21 नवंबर सुबह 03:16 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में गोपाष्टमी पर्व 20 नवंबर 2023, सोमवार के दिन हर्षोल्लाह के साथ मनाया जाएगा। पंचांग में बताया गया है कि इस विशेष दिन पर ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है, जो रात्रि 08:35 तक रहेगा। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ, दान इत्यादि करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
पूजा विधान
इस दिन प्रातः काल गौओं को स्नान कराकर बछड़े सहित जल, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र तथा धूप-दीप से आरती उतारते हैं। अगर घर में गाये न हो तो गोशाला में जाना चाहिए ओर गायों की सेवा आदि करनी चाहिए।
भक्तों द्वारा विशेष अनुष्ठान करने से पहले गायों को कपड़े और आभूषणों से सजाया जाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए विशेष चारा खिलाया जाता है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है।
ये भी पढ़ें : Temple Of Himachal: मनाली के हिडिम्बा देवी मंदिर की अजीब कहानी
इस दिन, एक अच्छे और सुखी जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदक्षिणा के साथ श्री कृष्ण पूजा और गाय पूजा की जाती है। दैनिक जीवन में गायों की उपयोगिता के लिए भी भक्त उनका विशेष सम्मान करते हैं। गायें दूध प्रदान करती हैं जो एक माँ की तरह लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने में मदद करती हैं। यही कारण है कि गायों को पवित्र माना जाता है और हिंदू धर्म में मां के रूप में पूजा की जाती है। गाय की महिमा और उसकी सुरक्षा की चर्चा वरिष्ठ भक्तों द्वारा की जाती है। वे सभी गायों को चराते हैं और गोशाला के पास भोज में भाग लेते हैं।
सायंकाल गायों के जंगल से वापिस लौटने पर साष्टांग प्रणाम कर उनकी चरण रज से तिलक लगाना चाहिए।