Diksha Thakur | Hamirpur
पहले स्वास्थ्य की ज्यादा सुविधाएं नहीं होती थी फिर भी उनके बच्चे कम बीमार पड़ते थे। इसका सारा श्रेय बुजुर्ग उस दौर के खानपान को देते थे। गेहूं और चावल को उस दौर में महंगे खान-पान में गिना जाता था इसलिए मक्की, रागी और बाजरे इत्यादि का ज्यादा उपयोग खाने में किया जाता था। सब्जियां भी थोड़ी बहुत होती थीं जो गांवों के खेतों में उगाई जाती थीं। ऐसे में केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार फिर घूम फिरकर उसी पुराने खानपान खासकर मोटे अनाज को अपनाने पर बल दे देने लगी हैं। मक्की की रोटी, देसी घी और गुड़ से बनने वाले चूरमे का शायद आज के बच्चों ने नाम भी नहीं सुना होगा, लेकिन आज हैल्थ एक्सपर्ट उसे खाने की सलाह दे रहे हैं।
शायद यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए और पहाड़ी राज्य के बच्चों को कुपोषण से पूरी तरह मुक्त करने के लिए चूरमा, देसी घी और रागी के लड्डू देने की योजना बनाई है। मुख्यमंत्री के गृह जिला में शुक्रवार से पौष्टिक गुणों से भरपूर इस आहार का वितरण आरंभ कर दिया गया। जिला प्रशासन की पहल पर अब तीन वर्ष तक की आयु के सभी शिशुओं को देसी घी एवं रागी के लड्डू दिए जाएंगे। शिशुओं को ये लड्डू सप्ताह में एक बार और कुपोषित बच्चों को दो बार दिए जाएंगे।
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इसके अलावा छह माह से एक वर्ष तक के बच्चों को रागी का चूरमा दिया जाएगा। लड्डू और चूरमा की सामग्री सीधे स्थानीय किसानों से प्राप्त की जा रही है। महिला स्वयं सहायता समूहों को होटल प्रबंधन संस्थान हमीरपुर में पारंपरिक पौष्टिक व्यंजन बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।