
नेहा वर्मा । हमीरपुर
हिमाचल प्रदेश में खास तरह के आभूषणों से सजती-संवरती हैं महिलाएं, चंद्रहार और चिरी लगाते हैं चार चांद
पोल खोल न्यूज आज से नई शुरुआत करने जा रहा है। हिमाचली पहनावे और आभूषणों से विश्वभर पर्यटकों को आकर्षित किया है। हिमाचली टोपी और शाल की ब्रांडिंग विश्व स्तर पर हुई है। इसी कड़ी में हम हिमाचली पहरावे और आभूषणों से रूबरू होंगे।
हिमाचल प्रदेश विविधताओं से परिपूर्ण है। यहां के 12 जिलों में अलग-अलग तरह के पोशाक और आभूषणों का प्रचलन है। हिमाचली महिलाएं अपने खास तरह के आभूषणों का प्रयोग करती हैं जो बहुत ही सुंदर और जीवंत होती है।
हिमाचली महिलाएं यहां प्रचलित खास आभूषणों से ही सजरी संवरती हैं, यहां के लोगों की पोशाक बहुत ही सुंदर और जीवंत होती है, इसे कठोर मौसम की स्थिति के हिसाब से बनाया जाता है। राज्य के अलग अलग हिस्सों से राज्य में आने वाले अलग-अलग जातियों के लोगों के लिए अलग-अलग तरह की पोशाक और आभूषणों का प्रचलन है.। आज भी हिमाचल में ज्यादातर पोशाक हाथों से बनाई जाती हैं, पोशाक बनाने में मशीनों का उपयोग बेहद कम होता है।
यहां महिलाओं के आभूषणों से होती है पहचान

हिमाचल प्रदेश के पहनावों में क्षेत्र के हिसाब से विविधता पाई जाती है। यहां की राजपूत और ब्राह्मण जाति की महिलाओं में खास तरह के आभूषण इस्तेमाल होते हैं. जबकि आदिवासी महिलाओं में चांदी के आभूषणों का खूब प्रयोग होता है। हिमाचल प्रदेश में ब्राह्मण और राजपूत महिलाओं दोनों द्वारा चक नाम के आभूषण का इस्तेमाल किया जाता है। इसे सिर पर धारण किया जाता है, इसके अलावा चंद्रहार का भी प्रयोग महिलाएं करती हैं, यह एक विशेष तरह का हार होता है, इसके अलावा महिलाएं चिरी भी पहनती हैं, ये मांग टीका की तरह होता है, जो महिलाओं की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं, इसके अलावा टोके(कलाई), परी(पैर का हार), झुमका का प्रयोग की महिलाएं अपने आभूषणों में करती हैं।
हिमाचली शाल की दुनिया दीवानी

हिमाचल प्रदेश में वैसे तो कई तरह के शाल बनाए जाते हैं, लेकिन इनमें से पश्मीना शाल सबसे ज्यादा मशहूर है, यह कुल्लू इलाके में बनाई जाती है जो पश्मीरा बकरी के बालों से तैयार ऊन से बुनी जाती है,।इस शॉल की मांग दुनियाभर में होती है। इस शॉल की खासियत इसका हल्का वजन है, यह बहुत ही मुलायम होती है।
कुल्लू की शान है यहां की टोपी और शॉल

हिमाचल प्रदेश में वैसे तो कई तरह के पहनावे अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित हैं, लेकिन बात जब कुल्लू की होती है तो यहां की विशेष टोपी और शाॅल का जिक्र खूब होता है. यहां आज भी पारंपरिक रूप में ज्यादातर लोग टोपी पहनते हैं, पर्यटन भी इस टोपी को बहुत पसंद करते हैं, .यह आकार में गोलाकार होता है जिसमें कुछ सुंदर डिज़ाइन होते हैं, जो ऊन या मखमल से बुने जाते हैं, कुल्लू के शॉल की भी खासियत है, यह कई डिजाइन और रंगों में आते हैं।
हिमाचल में आदिवासी पहनावा

हिमाचल प्रदेश में दूसरी जातियों के अलावा आदिवासी जातियां भी हैं, इस पहाड़ी राज्य में ब्राह्मणों और राजपूतों के साथ-साथ कई जनजातियाँ निवास करती हैं. इनमें से कुछ गद्दी, गुर्जर, किन्नर, लाहौली और पंगावल हैं. उनकी जातीय वेशभूषा भी राजपूतों और ब्राह्मणों के समान है. राज्य के कुछ खास इलाकों में यह आदिवासी जातियां निवास करती हैं. राज्य के किन्नौर, लाहौल,स्पीति के अलावा मनाली के कुछ खास इलाकों में कई जनजातियां मौजूद हैं।
किन्नौर में चांदी की भरमार

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में आदिवासी महिलाएं भारी चांदी के गहने पहनती हैं . इस इलाके में त्योहार और विवाह और धार्मिक समारोहों जैसे कार्यक्रमों में महिलाएं चांदी के खूब आभूषण प्रयोग करती हैं, राज्य के लाहौल-स्पीति जिले के आदिवासी लोग भी आकर्षक रंगों के आकर्षक वस्त्र पहनते हैं. मनाली में पुरुषों के लिए पारंपरिक पोशाक में ‘सुल्तान’ है जो कमर के नीचे पहनी जाती है और चोला इसके ऊपर पहना जाता है, ‘डोरा’ नामक बेल्ट भी प्रयोग की जाती है, महिलाएं अपने सिर पर ‘पट्टू’ और धातु ‘या’ थिपू’ नामक लंबी शॉल पहनती हैं. जनजातीय कपड़े ज्यादातर हाथ से बुने जाते हैं और इसलिए बहुत लोकप्रिय हैं।
पाठको आपको प्रत्येक दिन अलग से अब हिमाचली पहनावे और आभूषणों की विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया जाएगा।


