
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
श्रीखंड महादेव / कुल्लू
सावन के महीने में कांवड़िए अपने इष्ट देवता भोलेबाबा को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। दुर्गम रास्ते और सभी मुश्किलों को झेलते हुए अपने भोले का जलाभिषेक करके ही उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाती है। यह जरूरी नहीं है कि हर कोई कांवड़ लेकर ही जाए, आप भगवान शिव से जुड़े किसी भी एक धार्मिक स्थल के दर्शन कर सावन के महीने में विशेष पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
देश भर में स्थित 12 ज्योर्तिंलिंगों के अलावा भगवान शिव के कुछ ऐसे चर्चित तीर्थस्थान भी हैं, जिनका पौराणिक महत्व सबसे ज्यादा है। इन्हीं में से एक है श्रीखंड महादेव। श्रीखंड महादेव की यह यात्रा अमरनाथ यात्रा से भी कठिन और दुर्गम मानी जाती है। यह स्थल जिला कुल्लू के निकट एक पहाड़ी शिखर पर स्थित है। श्रीखंड महादेव हिन्दू धर्म के भगवान शिव को समर्पित है और भक्तों के बीच इसका विशेष महत्व है। आइए जानते हैं श्रीखंड महादेव का पौराणिक महत्व और अन्य खास बातें….
18,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 25 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी होगी। जो कि अपने आपमें सबसे बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि इसे अमरनाथ यात्रा से भी दुर्गम माना जाता है। श्रीखंड महादेव पहुंचने के रास्ते में कई श्रृद्धालुओं की मौत तक हो जाती है और जो सही सलामत दर्शन कर पाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रीखंड महादेव का इतिहास
यात्रा का इतिहास काफी साल पुराना है। इतिहास देवों के देव महादेव से जुड़ा हुआ है। यह धार्मिक दृष्टि से भारतीय धर्म के महत्वपूर्ण शिवालयों में से एक माना जाता है। श्रीखंड महादेव हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है और यहां पर्वतीय स्थलों के पास शिखर पर एक शिवलिंग स्थान है। कई प्राचीन पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में श्रीखंड महादेव के महत्व का उल्लेख किया गया है।
भगवान शिव के मान्यता से इस स्थान को महादेव का एक शक्तिशाली तीर्थस्थल माना जाता है। श्रीखंड महादेव के इतिहास में यात्रा का महत्वपूर्ण स्थान है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि प्राचीन काल में राजा दशरथ ने भगवान शिव की अपनी कामना पूरी करने के लिए यहां शिवलिंग की पूजा की थी। इससे यह स्थान शिवालय के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जो भी पर्यटक यहां शिव की पूजा करता है उसपर भगवान की कृपा हमेशा रहती है।
श्रीखंड महादेव की कहानी
श्रीखंड महादेव की कहानी हिमाचल प्रदेश से जुड़ी हुई है। यह कथा पुरातन पुराणों में वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार कालचक्र के प्रारंभ में, जब देवता-असुर युद्ध चल रहा था, देवताओं ने देवराज इंद्र के साथ ब्रह्माजी के चरणों में जाकर सहायता के लिए अपेक्षा की। इंद्र ने ब्रह्माजी से पूछा, “हे पितामह, असुरों के प्रति हमारे पास अपेक्षा संभव है या नहीं?” तब ब्रह्माजी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “हे देवराज, आप चिंता न करें, मैं विश्वकर्मा से परम वज्र का निर्माण करवाऊंगा, जिससे आप असुरों के विरुद्ध सशक्त हो जाएंगे। इसके बाद विश्वकर्मा ने एक विशाल वज्र का निर्माण किया और उसे देवताओं को सौंपा।
वज्र के द्वारा देवताएं असुरों को पराजित करने लगीं और विजयी हो गईं। विजय के बाद देवताएं अपनी सारी उत्सुकता और हर्ष में ब्रह्माजी के समक्ष पहुंचीं। ब्रह्माजी ने उन्हें धन्यवाद दिया और वज्र को संग्रह करने के लिए पूर्व में वाराणसी के पास श्रीखंड पर्वत पर छोड़ दिया।
वज्र को श्रीखंड पर्वत पर छोड़ने के बाद, विश्वकर्मा ने उसे प्रतिष्ठित कर दिया और वहां पर श्रीखंड महादेव के रूप में प्रसिद्ध हुआ। देवता भगवान शिव के ध्यान में जाकर पूजा अर्चना करते रहे और श्रीखंड पर्वत पर शिवलिंग की पूजा अर्चना की जाने लगी। इस प्रकार, श्रीखंड महादेव एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जिसमें भगवान शिव के वज्र के संबंध में यह कथा मिलती है।
श्रीखंड महादेव की गुफा
श्रीखंड महादेव की गुफा हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जो शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। श्रीखंड महादेव की गुफा प्राकृतिक है और पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। भक्त गुफा में प्रवेश करके श्रीखंड महादेव का दर्शन करते हैं। गुफा के भीतर एक शिवलिंग है जिसे श्रीखंड महादेव के रूप में पूजा जाता है। श्रीखंड महादेव की गुफा की ऊंचाई लगभग 17,500 फुट (लगभग 5,334 मीटर) है। हर साल लाखों भक्त यहां महादेव का दर्शन करने आते हैं।
ऐसे पहुंचे श्रीखंड महादेव
श्रीखंड महादेव तक पहुंचने के लिए आपको कई पड़ाव पार करके यात्रा करनी पड़ती है। सबसे पहले शिमला जिले के रामपुर से कुल्लू जिले के निरमंड होकर बागीपुल और जाओं तक गाड़ियों और बस से पहुंचना पड़ता है। यहां से आगे करीब 30 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है।