रजनीश शर्मा । हमीरपुर
शिक्षा के हब हमीरपुर में अब कोचिंग सेंटरों का जाल बिछ चुका है लेकिन क्वालिटी एजुकेशन और कोचिंग में कुछ ही नाम बुलंदियों पर हैं । डंके की चोट पर आज इन कोचिंग सेंटरों की ही पड़ताल कर लेते हैं।
हमीरपुर में कोचिंग सेक्टर की शुरुआत देखें, तो सबसे पहले वर्ष 1993 में हिम एकेडमी कोचिंग इंस्टीच्यूट से इसकी शुरुआत हुई थी। करीब 27 साल में सैकड़ों बच्चों का भविष्य इस अकादमी ने संवारा। इस एकेडमी से निकले सैकड़ों बच्चे आज इंजीनियरिंग और हैल्थ जगत में अपना नाम चमका रहे हैं। उसके बाद भी धीरे-धीरे यहां कोचिंग संस्थान खुलते गए और आज जिला भर में करीब 40 कोचिंग इंस्टीच्यूट स्थापित हैं। पिछले पांच वर्षों की बात करें, तो करीब एक दर्जन अकादमियां हमीरपुर जिला में खुल चुकी हैं । कई तो बोरिया बिस्तर समेट बंद भी हो गई हैं।
सबसे छोटे जिला में बहुत से संस्थान
हमीरपुर में कोचिंग अकादमियों की बात करें, तो यहां हिम एकेडमी, कौटिल्य कोचिंग क्लासेज, सुपर मैग्नेट कोचिंग इंस्टीच्यूट, चाणक्य, एस पठानिया, एक्मे, आर्यन्स, आईआईटीएन क्लासेज, अबेकस, आधार, एएस विद्यामंदिर, एम एंड एम, ग्रैविटी, स्पेक्ट्रम, एबीसी क्लासेज, दि मैग्नेट, ऑलमाइटी, आईबीटी कोचिंग, हिलीओस और निरवाणा कोचिंग अकादमियां प्रमुख हैं। इनमें जेईई, नीट, एनडीए, एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और प्रशासनिक सेवाओं के लिए कोचिंग दी जाती है।
सबसे ज्यादा डिमांड में ये अकादमियां
इंजीनियरिंग और नीट की बात करें, तो हिम एकेडमी के अलावा कौटिल्य कोचिंग क्लासेज, सुपर मैग्नेट और चाणक्य सहित कुछ अकादमियां ज्यादा डिमांड में हैं। प्रशासनिक सेवाओं की बात करें, इसकी कोचिंग के निए आईबीटी, हिलीओस और निरवाणा मुख्य हैं। इसी तरह बैंकिंग सेक्टर के लिए आधार, ऑलमाइटी आदि प्रमुख हैं।
इकोनॉमी बूस्ट करने में मदद कर रहे छात्र
कोचिंग अकादमियों में आने वाले बच्चों का कनेक्शन कहीं न कहीं हमीरपुर शहर के कारोबार से भी जुड़ा रहता है। हर साल यहां कोचिंग लेने आने वाले सैकड़ों छात्रों का कनेक्शन डायरेक्ट या फिर इनडायरेक्ट शहर के कारोबार से जुड़ा रहता है। फिर चाहे होटल-ढाबे हों, कपड़ा व्यापारी हों या फिर किराने वाले। रोजमर्रा की वस्तुएं ये सैकड़ों बच्चे इन्हीं दुकानों से लेते हैं, जो कि यहां की इकॉनोमी को भी बूस्ट करता है।
जेईई-नीट पर अभिभावकों का ज्यादा ज़ोर
हमीरपुर में स्थापित इन अकादमियों में हालांकि हर तरह की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी बच्चों को करवाई जाती है, लेकिन देखा गया है कि जेईई और नीट पर ज्यादा फोकस अकादमियों का है। इसके पीछे वजह यह भी बताई जाती है कि हर तीसरा अभिभावक या तो अपने बच्चे को इंजीनियर बनाना चाहता है या फिर डाक्टर।
नौवीं से ही स्कूल के साथ कोचिंग
पहले यह होता था कि बच्चा जब जमा दो की परीक्षा पास करता था, तो उसके बाद अभिभावक उसे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग दिलवाते थे, लेकिन कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि नौवीं कक्षा से ही कोचिंग का ट्रेंड शुरू हो गया है। स्कूल से छुट्टी के बाद अधिकतर बच्चे सीधे कोचिंग अकादमियों में जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि जब वे अपनी जमा दो की परीक्षा पूरी करते हैं, तो सीधे प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के काबिल हो जाते हैं।
चंडीगढ़-कोटा के संस्थानों की बराबरी
भौगोलिक स्थिति देखी जाए तो एजुकेशन हब हमीरपुर को प्रदेश का सेंटर प्लेस होने का भी लाभ मिला है। यहां चंबा से लेकर किन्नौर, लाहुल-स्पीती और सिरमौर से भी बच्चे कोचिंग लेने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि प्रदेश के कुछ बच्चे बाहरी राज्यों का भी रुख करते हैं, लेकिन पहाड़ी प्रदेश के बच्चों को बाहरी वातावरण में ढलना मुश्किल भी रहता है, जबकि यहां उनकी जरूरत को आसानी से समझा जा सकता है।
स्टूडेंट्स और अभिभावको की हमीरपुर पहली चॉइस
हमीरपुर जिला कुल्लू, शिमला , कांगड़ा, चम्बा और बिलासपुर के बीच पड़ता है। यहां का मौसम पहाड़ वालों को बहुत माफिक बैठता है। इसीलिए अभिभावक भी अपने ही प्रदेश में कोचिंग लेने का ऑप्शन चुनकर उन्हें हमीरपुर में दाखिला दिलवाते हैं। कहीं न कहीं क्वालिटी की बात करें, तो प्रदेश में हमीरपुर जिला के कोचिंग इंस्टीच्यूट बहुत ही अच्छा रिज़ल्ट दे रहे हैं। चाहे बात नीट-जेईई की हो या सीबएसई ऑल इंडिया एग्जाम्स की, लगभग हर परीक्षा में हमीरपुर में पढ़ रहे छात्रों का नाम टॉप पर होता है। यही वजह है कि हमीरपुर के कोचिंग संस्थान कहीं न कहीं चंडीगढ़-दिल्ली और कोटा जैसे कोचिंग सेंटर्स की बराबरी कर रहे हैं। अभिभावकों का भरोसा बन गया है कि उन्हें बाहर न भेजकर हमीरपुर में भी अच्छी कोचिंग मिल सकती है। तो यह भी कहा जा सकता है कि हमीरपुर के कोचिंग सेंटर्स से कहीं न कहीं बच्चों की दिल्ली-चंडीगढ़ और कोटा की दौड़ तो कम हुई है।
सर्विस सेक्टर में आते हैं इंस्टीच्यूट लागू होते हैं बिजनेस वाले नियम
कोचिंग संस्थानों में नियमों की बात करें, तो इनके कायदे स्कूलों की तरह सरकारें निर्धारित नहीं करतीं। इसका कारण यह है कि यह सर्विस सेक्टर के दायरे में आते हैं। यानी ये टैक्सेबल होते हैं और जीएसटी के दायरे में आते हैं। इन्कम टैक्स भी देते हैं। कोचिंग अकादमियां 30 प्रतिशत इन्कम टैक्स और 18 प्रतिशत जीएसटी के स्लैब में आती हैं। इनकी कोई रेगुलर अथॉरिटी नहीं होती। इन पर वही नियम लागू होते हैं, जो नॉर्मल बिजनेस में होते हैं। अकादमियों में फैकल्टी योग्यतानुसार रखी जाती है, क्योंकि इन्हें बेहतर रिजल्ट देना होता है।