
पोल खोल न्यूज़ | हमीरपुर
आज संपूर्ण विश्व महिलाओं के महत्व को समझने के लिए एक विशेष थीम इंस्पायर इंक्लुजन पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है, जिसका अर्थ महिलाओं के लिए एक ऐसे समाज के निर्माण को बढ़ावा देना है जहां महिलाएं खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हुए अपने आप को सशक्त महसूस कर सकें बेशक आज सबसे ज्यादा महिला सशक्तिकरण की बातें होंगी,लेकिन महिला सशक्तीकरण क्या है यह कोई नहीं जानता। भले ही सन् 1909 से यह दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन आज 115 वर्षों के बाद भी क्या महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार बंद हुए हैं? क्या महिलाओं की दशा मे कुछ भी बदलाव आया है? शायद जवाब होगा नही I तो फिर ऐसे दिवस को मनाने में क्या औचित्य रह जाता है जो महिलाओं को उनका अधिकार, उनकी इज्जत नही दिलवा सकता I अगर पिछले वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो हमारे देश में दहेज के लिए हर रोज 20 बहुओं की हत्या, एक दिन में औसतन 87 बलात्कार और हर मिनट में एक बेटी की भ्रूण में हत्या हमारी महिला सशक्तीकरण के दावे को खारिज करती नजर आती है I
जहां एक तरफ महिलाओं के शोषण और कष्टप्रद जीवन के लिए पुरुष प्रधान समाज को जिम्मेदार ठहराया जाता है, वहीं यह भी कटु सत्य है कि महिलाएं भी महिलाओं के पिछड़ने के लिए जिम्मेदार हैं। गर्भावस्था में शिशु का लिंग जानकर बेटी को गर्भ में ही मार देना, या जन्म के बाद उसकी हत्या करके कचरादान या कटीली झाड़ियों आदि में फेंक देना इत्यादि अनेकों उदाहरण हैं जिसमें उन्होंने पुरुषों के साथ मिलकर ऐसे घिनोनें कार्यों को अंजाम दिया होगाI इसके अलावा जब लोग कहते हैं कि, “लड़कियाँ पराया धन होती हैं, जिन्हें अधिक समय तक घर में रखना उचित नहीं,” तो इस बात का अन्य महिलाएँ विरोध क्यों नहीं करती। वे स्वयं भी खुदको और अपनी बेटियों को पराये धन के रूप में क्यों देखती हैं? कैसे कोई महिला, दहेज न मिलने पर, अपनी बहू को ताने सुना सकती है? कैसे कोई माँ बेटे के जन्म पर अधिक खुश और बेटी के जन्म पर दुःखी महसूस कर सकती है? ऐसे बहुत सारे अनगिनत सवाल हैं जो स्वयं महिलाओं को कठघरे में खड़ा करते हैं ।
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जहाँ तक नारी के सम्मान के सम्मान की बात है तो संस्कृत का एक श्लोक “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, भारतीय संस्कृति में नारी के महत्व को दर्शाता है। सही सम्मान एवं समर्थन दिए जाने पर, महिलाओं ने हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। भारत में भी, हमने महिलाओं को विविध भूमिकाओं में देखा है,राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अंतरिक्ष यात्री, उद्यमी, बैंकर और बहुत कुछ। इसके अलावा, महिलाओं को परिवार की रीढ़ भी माना जाता है। घरेलू कामों से लेकर बच्चों के पोषण तक, वे कई जिम्मेदारियाँ सँभालते हुए सफलता का परचम हर जगह लहरा रही हैं । महिलाओं की यह सफलता निश्चित ही संतोष प्रदान करती है। ऐसे में यह भी आवश्यक है कि सुदृढ़ समाज और राष्ट्र के हित में महिला, पुरुष के मध्य प्रतिद्वंद्विता नहीं बल्कि उनके बीच सहयोगात्मक संबंध बढ़ाए जाएं। शिक्षित एवं संपन्न महिलाओं को भी चाहिए कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़ी महिलाओं के लिए जो भी कर सकती हैं करें ताकि उनकी दशा सुधारी जा सके I
एक बात तो तय है कानून के भय से न तो आजतक अपराध कम हुए हैं न ही कम होंगे I इसलिए अगर हम महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को सच में कम करना चाहते हैं तो पूरे समाज को अपनी संकीर्ण मानसिकता में बदलाव लाना होगा I जब तक हम लड़के और लड़कियों के बीच के अंतर को कम नहीं करते, तब तक महिलाओं की दशा सुधरने वाली नहीं है I
महिलाओं के लिए कुछ करने का अर्थ यह नहीं कि कुछ अलग और खास करें। आप अपने आस-पास कि महिलाओं जो आपकी माता, बहन, पत्नी,बेटी या सहकर्मी हो सकती है, से ठीक से पेश आएं, उन्हें सम्मान दें, उनके विचारों को भी प्राथमिकता दें। वर्तमान की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए महिला का शिक्षित होना बेहद जरूरी है क्यूंकि शिक्षित महिला मां, पत्नी, बेटी के रूप में एक सभ्य और संस्कारी समाज की शिल्पकार होती है।शिक्षित होकर एवं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने पर ही महिलायें अपने उत्पीड़न से छुटकारा पा सकती हैं I ऐसे में जब महिलाओं की दशा बेहतर होगी, तभी महिला दिवस का मनाया जाना भी सही मायनों में सार्थक हो पायेगा