Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
कांगड़ा (मसरूर रॉक टैंपल)
हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि कहा जाता है। यहां पर देवी-देवताओं के वास के अलावा, कई रहस्यमयी जगहें हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताएंगे जिसके इतिहास का अंदाजा तक कोई नहीं लगा पाया। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित है। आइए जानते है इस मंदिर का रहस्य और इतिहास…..
हिमाचल प्रदेश के ब्यास नदी की काँगड़ा घाटी के मसरूर मंदिर में पत्थर काट कर बनाए गए हिन्दू मंदिरों का एक समूह है। इस ऐतिहासिक मंदिर की कुछ कहानिया हैं, दन्त कथाएं और मंदिर के गर्भ गृह में अभी भी श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं। कुल 15 बड़ी चट्टानों पर ये मंदिर बना हैं जिसे हम रॉक कट टेंपल के नाम से जानते हैं। हिमालयन पिरामिड के नाम से विख्यात बेजोड़ कला के नमूने रॉक कट टेंपल मसरूर एक अनोखा और रहस्यमयी इतिहास समेटे हुए हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार 8वीं सदी के आरम्भ में बना यह मंदिर उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है। यह उत्तर भारतीय नगर वास्तुशैली में बने हैं।
यहाँ के कई मंदिर अतीत में आए भूकम्पों से हानिग्रस्त हुए थे, लेकिन अभी भी कई खड़ें हैं। इन मंदिरों को एक ही महान शिला से काटकर शिखरों के साथ तराशा गया था। देखा जाए तो पत्थरों पर ऐसी खूबसूरत नक्काशी करना बेहद मुश्किल काम है। ऐसे में ये कारीगरी करने के लिए दूर से कारीगर लाए गए थे, लेकिन यह कारीगरी किसने की इसके आज तक पुख्ता सबूत नहीं मिल पाए हैं।
दंत कथाओं के अनुसार पांडवो ने किया था निर्माण
झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब दिखाई देता है। उत्तर भारत में यह इस तरह का एकलौता मंदिर हैं। सदियों से चली आ रही दन्त कथाओं के मुताबिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी के लिए बनवाया गया था।
मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी देवताओं की आकृति देखने को मिल जाती हैं। बलुआ पत्थर को काटकर बनाए गए इस मंदिर को 1905 में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान भी हुआ था। इसके बावजूद ये आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। सरकार ने इसे राष्ट्रीय संपत्ति के तहत संरक्षण दिया है। मंदिर को सर्वप्रथम 1913 में एक अंग्रेज एचएल स्टलबर्थ ने खोजा था।
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स्वर्ग जाने का मार्ग
आज भी विशाल पत्थरों के बने दरवाजानुमा द्वार हैं, जिन्हें ‘स्वर्गद्वार’ के नाम से जाना जाता है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, पांडव अपने स्वर्गारोहण से पहले इसी स्थान पर ठहरे थे, जिसके लिए यहां स्थित पत्थरनुमा दरवाजों को ‘स्वर्ग जाने का मार्ग’ भी कहा जाता है।
आईए जानते हैं रहस्य
इस मंदिर की बात करें तो यह मंदिर पूरी तरह से रहस्य से भरा हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान किया था। एक किंवदंती के अनुसार पांडव इस मंदिर का निर्माण इस ढंग से करना चाहते थे कि इसके दरवाजे सीधे स्वर्ग में खुलें और मनुष्य को मृत्यु का असहनीय कष्ट न सहना पडे।
सबसे रहस्य की बात यह है कि यह मंदिर एक ही चट्टानी पत्थर से बनाया गया है। कहीं भी ईंट-गारे का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यहां तक इसके दरवाजे भी एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए हैं। वास्तव में यह एक मंदिरों का समूह है और माना जाता है कि यह शिव मंदिर है। इसके गर्भगृह में मूर्तियां विराजमान हैं जिनमें सीताराम की मूर्तियां भी हैं। एक अनुमान के अनुसार इसके 8 के करीब द्वार हैं, जिनमें एक ही चट्टान को काटकर सीढ़ियां भी बनाई गई हैं। जैसा कि बताया कि इसके निर्माण की ठीक से कोई तारीख मालूम नहीं है, मगर इसकी खोज सन 1875 के आसपास मानी जाती है।
ठीक इसके आगे एक झील बनाई गई है, जो उसकी खूबसूरती को और भी चार चांद लगाती है। बताया तो यह भी जाता है कि पांडवों ने इसके निर्माण वाली रात जो रोटियां बनाई थीं, वो भी पत्थर में तब्दील हो गई थीं।
इस कारण नहीं है पूर्ण मंदिर
इसको लेकर कहा जाता है कि मंदिर बलुआ पत्थरों से बना हुआ है। जिसमें ज्यादा खोदने से दरारे आने लगी थी। जिसके कारण यह आज भी अधूरा है।
इसकी आस्था विदेशों तक है। यहां इंग्लैंड, जर्मन, इटली, फ्रांस, और अन्य जगहों से टूरिस्ट आते हैं। चलिए अब हम आपको बताते हैं की आप मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं। हिमाचल के काँगड़ा जिले से मसरूर रॉक कट टेम्पल की दूरी लगभग 35 किलोमीटर हैं, जिसे आप सरकारी बस सेवा लेकर ये दूरी तय कर सकते हैं। कांगड़ा से रानीताल, फिर वहा से लुंज और फिर मसरूर। लेकिन सुझाव हैं की आप वहां अपने निजी वाहन से जाए या फिर कांगड़ा से टैक्सी भी ले सकते हैं जिसकी ज़्यादा से ज़्यादा कीमत सिर्फ 1000 रुपये आएगी।