
संशोधित वेतनमान के एरियर भुगतान के लिए सरकार ने मांगा अतिरिक्त समय
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2016 से लागू संशोधित वेतनमान के एरियर भुगतान के मामले में राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का अतिरिक्त समय प्रदान किया है। राज्य सरकार ने मामले में अतिरिक्त समय की मांग की थी। महाधिवक्ता अनूप रतन ने अदालत को सूचित किया कि सरकार पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों की लगभग 1200 करोड़ रुपये की देनदारियां हैं। उन्होंने कहा कि सरकार पेंशन, ग्रेच्युटी, और कम्यूटेशन जैसे लाभों का समय पर भुगतान करने का हरसंभव प्रयास कर रही है।
बता दें की यह मामला उन कर्मचारियों से संबंधित है जो अनुबंध आधार पर कार्यरत थे और 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उन्हें संशोधित वेतनमान का लाभ नहीं मिला। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक कर्मचारियों की देनदारियों का विस्तृत ब्यौरा अदालत में प्रस्तुत किया जाए। अगली सुनवाई 16 सितंबर को निर्धारित की गई है। गौरतलब है कि 25 फरवरी 2022 को सरकार ने पेंशन नियमों में संशोधन कर जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त कर्मियों को संशोधित वेतनमान के अनुसार पेंशन व सेवा लाभ देने का निर्णय लिया था।
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इसके तहत 17 सितंबर 2022 को एक सरकारी ज्ञापन भी जारी हुआ, जिसमें वित्तीय लाभ किस्तों में देने की व्यवस्था की गई। हालांकि, 2016 से 2021 के बीच सेवानिवृत्त करीब 5,000 कर्मचारियों को अब तक इसका लाभ नहीं मिला है, जबकि 2022 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मियों को संशोधित वेतनमान के लाभ प्रदान कर दिए गए हैं। प्रदेश सरकार ने अपने 2020-21 के बजट में 1 जनवरी 2016 से संशोधित वेतनमान लागू करने की घोषणा की थी और इसके लिए लगभग 4500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, परन्तु अभी तक सभी संबंधित देनदारियों का भुगतान नहीं हो सका है।
वहीं हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार की वर्ष 2013 की स्थानांतरण नीति के तहत 60 प्रतिशत विकलांगता को चुनौती देने वाली याचिका में कार्मिक सचिव (सेक्रेटरी पर्सनल)को पार्टी बनाया गया है। इस मामले में याचिकाकर्ता सुशील ने कार्मिक विभाग की ओर से 10 जुलाई 2013 को जारी किए गए व्यापक मार्गदर्शक सिद्धांत-2013 (कम्प्रिहेंसिव गाइडलाइन प्रिंसिपल) की धारा 5.3 को रद्द करने की मांग की है, जो तबादलों से संबंधित है। राज्य सरकार की ओर से दायर इस मामले में जवाब दायर किया गया है। जवाब में कहा गया है कि तबादलों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत कार्मिक विभाग की ओर से जारी किए गए थे, इसलिए इस मामले में कार्मिक सचिव को जवाब दाखिल करना चाहिए। कोर्ट ने पाया कि कार्मिक सचिव, जो इस मामले के निपटारे के लिए एक आवश्यक पक्ष हैं, पहले इस याचिका में पार्टी नहीं थे।
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इस स्थिति को देखते हुए, न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने आदेश दिया कि कार्मिक सचिव को मामले में प्रतिवादी नंबर 5 के रूप में शामिल किया जाए। याचिकाकर्ता को तीन दिनों के भीतर संशोधित पक्षकारों की सूची ( अमेंडेड मेमो आफ पार्टी) दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से उपस्थित उप महाधिवक्ता ने नए जोड़े गए प्रतिवादी (कार्मिक सचिव) की ओर से नोटिस स्वीकार कर लिया और जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। मामले की अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी।
याचिका में सरकार की स्थानांतरण नीति में 60 फीसदी विकलांगता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति उन कर्मचारियों के लिए है, जो 40 प्रतिशत या उससे अधिक की विकलांगता रखते हैं। जबकि पर्सनल डिसेबिलिटी एक्ट के तहत विकलांगता 40 फीसदी है और प्रदेश की नीति के तहत 60 की गई है जोकि अधिनियम के खिलाफ है। अदालत ने अपने कई आदेशों में सरकार को निर्देश दिए हैं कि 40 फीसदी से अधिक विकलांगता वाले व्यक्ति को दुर्गम में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।