Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
बाला सुंदरी / नाहन (सिरमौर)
महामाई त्रिपुर बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। जहां हर साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यह हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां मां बालासुंदरी नमक की बोरी में आई थी। चैत्र एवं अश्वनी मास में पड़ने वाले नवरात्र के अवसर पर मंदिर में विशेष मेले का आयोजन होता है।
इस साल चैत्र मास में आयोजित होने वाला नवरात्र मेले 18 मार्च से 31 मार्च, 2018 तक माता बाला सुन्दरी मंदिर त्रिलोकपुर में पारंपरिक ढंग से मनाए जा रहे हैं। मंदिर में सुबह 5 बजे माता की विशेष पूजा और हवन का आयोजन किया जाता है। नाहन से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित माहामाई त्रिपुर बाला सुंदरी का लगभग साढ़े 300 वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है।
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मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार माता बाला सुंदरी का इतिहास पांडवों के युग करीब पांच हजार साल पहले से जोड़ा गया है। माता बाला सुंदरी के मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज बबुरवान ने तब किया था जब कुरुक्षेत्र में युद्ध चल रहा था। उस समय मां के चंडी रूप का मंदिर शिवालिक की मनमोहक पहाड़ियों पर बनाया गया था। युद्ध के कारण छत नहीं बन पाई थी। कहा जाता है कि बाद में अखनूर के एक राजा ने इसका पूरा निर्माण कर अष्टधातु का छत्र मंदिर के गुंबद पर लगाया था।
माँ बाला सुंदरी की कहानी
लोग हजारों की संख्या में पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़, उत्तरप्रदेश से टोलियों में मां भगवती की भेंट गाते हुए आते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान है और यहां पर मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। जनश्रुति के अनुसार 1573 में महामाई उत्तरप्रदेश के जिला सहारनपुर से मुज्जफरनगर के देवबन्द स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थी। कहा जाता है कि लाला रामदास जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनके नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थी। उनकी दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। उन्होंने देवबन्द से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए मगर नमक खत्म होने में नहीं आया।
लाला जी उस पीपल के वृक्ष को हर रोज सुबह जल देकर उसकी पूजा करते थे। उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया। लेकिन वह एक दिन चिन्ता में पड़ गए कि नमक खत्म क्यों नहीं हो रहा। मां ने खुश होकर रात को लाला जी के सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति खुश हूं, मैं यहां पीपल के वृक्ष के नीचे पिण्डी रूप में स्थापित हो गई हूं और तुम मेरा यहां पर भवन बनावाओ, लाला जी को अब भवन निर्माण की चिन्ता सताने लगी।
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उसने फिर माता की अराधना की और उनसे कहा कि इतने बड़े भवन निमार्ण के लिए मेरे पास सुविधाओं व पैसे की कमी है। आपसे एक विनती है कि आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दे। मां ने अपने भक्त की पुकार सुन ली और उस समय सिरमौर के राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्र में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया।
ऐसे पहुंचे त्रिलोकपुर मंदिर
यह मंदिर नाहन से लगभग 23 किमी दूर है। आप त्रिलोकपुर पहुँचने के लिए नाहन से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। मंदिर तक नरिंगगढ़, शिमला और अंबाला से जाना भी काफी सुविधाजनक है। त्रिलोकपुर से शिमला 158 किमी, अंबाला 57 किमी और नरिंगगढ़ 15 किमी दूर है।
सड़क मार्ग : आप सड़क मार्ग से कई रास्तों से नाहन की यात्रा कर सकते हैं। एक मार्ग पर देहरादून से गुजरने वाले मार्ग से पोंटा साहिब, शिमला से सोलन और हरियाणा से काला-अंब के माध्यम से होकर जाता है। हालांकि, दिल्ली से यात्रा करते समय सबसे छोटा रास्ता साहा से होकर जाएगा। सड़क मार्ग से यात्रा करते समय आप नियमित बस सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं जो पड़ोसी शहरों और राज्यों को नाहन से जोडती हैं।
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रेल मार्ग : रेल से यात्रा करने वालों के लिए बता दें कि नाहन के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन कालका, बरारा, चंडीगढ़ और अंबाला हैं। आप यमुनानगर स्टेशन के लिए भी ट्रेन ले सकते हैं। राज्य की नियमित बस सेवा इन स्टेशनों को नाहन से जोड़ती है।
हवाई मार्ग : अगर आप नाहन के लिए हवाई यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ हवाई अड्डा है जो नाहन से लगभग 50 किमी दूर स्थित है। आप देहरादून और शिमला हवाई अड्डे को भी चुन सकते हैं। आप नाहन की यात्रा के लिए इन सभी शहरों से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। अगर आप टैक्सी से यात्रा नहीं करना चाहते तो बता दें कि इस मार्ग पर नियमित रूप से बसें चलती हैं।