हिमाचल में देव परंपरा के नाम पर सार्वजनिक पशु बलि के आरोप
पोल खोल न्यूज़ | मंडी
हिमाचल प्रदेश में देवता व धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर पशुओं की सार्वजनिक बलि पर एक दशक से पूर्ण प्रतिबंध है। लेकिन हाल ही में जिला मंडी से पशु बली का कथित मामला सामने आया है। जिला मंडी में देव समाज से जुड़े एक धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से पशुओं की बलि देने का मामला सामने आया, जिसकी शिकायत मंडी पुलिस से की गई है।
वहीं, एसपी मंडी साक्षी वर्मा ने बताया कि पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई गई है कि मंडी जिले के चैलचौक में सार्वजनिक रूप से दो बकरों की बलि दी गई है। जिसके बाद पुलिस ने चैलचौक बाजार के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज के आधार पर शुरुआती जांच शुरू कर दी है। 5 दिसंबर वीरवार को गोहर उपमंडल के मुख्य बाजार चैलचौक में स्थानीय देवता का धार्मिक कार्यक्रम चल रहा था। इस कार्यक्रम में देव समाज समेत क्षेत्र के सैकड़ों लोग मौजूद थे। इसी कार्यक्रम के दौरान तथाकथित तौर पर सार्वजनिक रूप से दो बकरों की बलि दी गई है।
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देव संस्कृति व देव परंपरा के नाम पर कथित रूप से दी गई सार्वजनिक बलि की शिकायत राइट फाउंडेशन के पास पहुंची तो संस्था के अध्यक्ष सुरेश कुमार ने इसकी शिकायत गोहर पुलिस को दी। राइट फाउंडेशन एनजीओ के अध्यक्ष सुरेश कुमार ने पुलिस में दी गई शिकायत में आरोप लगाया है कि चौलचौक बाजार में पशु क्रूरता अधिनियम की धज्जियां उड़ाई गई है। उन्होंने आशंका भी जताई है कि चैलचौक बाजार के चबूतरे पर लगे सीसीटीवी कैमरे में पशु बलि क्रूरता कैद हुई है।
एसपी मंडी साक्षी वर्मा ने बताया कि कथित रूप से सार्वजनिक पशु बलि मामले को लेकर पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई गई है। गोहर थाना में पशु क्रूरता अधिनियम (11) के तहत मामला दर्ज कर पुलिस ने आगामी जांच शुरू कर दी है।
2014 से पशु बलि पर पूर्ण प्रतिबंध
बता दें हिमाचल प्रदेश में देव संस्कृति व धार्मिक कार्यों के दौरान सार्वजनिक स्थलों पर पशु बलि के नाम पर पशुओं पर हो रहे अत्याचारों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने साल 2014 में पशु बलि पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। जिसके बाद रीति रिवाज व देव परंपरा का हवाला देते हुए देव समाज के कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस फैसले के दो सालों बाद कुल्लू दशहरा से पहले 10 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने देव समाज को कुछ राहत भी दी थी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने चारदीवारी के भीतर बलि प्रथा रीति रिवाज का निर्वहन करने की बात कही थी।