
भूकंप से बचाव, जागरूकता ही सबसे बड़ी सुरक्षा : रजनीश रांगड़ा
रजनीश शर्मा | हमीरपुर
4 अप्रैल 1905 का दिन हिमाचल प्रदेश के इतिहास में सबसे भयानक दिनों में से एक था। इस दिन आए विनाशकारी काँगड़ा भूकंप ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया। रिक्टर स्केल पर 7.8 तीव्रता वाले इस भूकंप ने लगभग 20,000 लोगों की जान ले ली और हजारों घरों को मिट्टी में मिला दिया। इस त्रासदी में काँगड़ा का ऐतिहासिक किला भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। यह भूकंप उत्तर भारत के सबसे विनाशकारी भूकंपों में से एक माना जाता है। इस भूकंप के प्रभाव से क्षेत्र की भौगोलिक संरचना में भी परिवर्तन आया और कई स्थानों पर दरारें उत्पन्न हो गईं। इस भूकंप के बाद वैज्ञानिकों और भूगर्भशास्त्रियों ने हिमाचल प्रदेश को भूकंप के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया और इसे भूकंपीय जोन IV तथा जोन V में विभाजित किया गया। हाल के वर्षों में, हिमाचल प्रदेश में लगातार छोटे-बड़े भूकंप आते रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र अभी भी भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील बना हुआ है। भूकंप के संभावित खतरों को देखते हुए राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग ने विभिन्न उपाय अपनाए हैं, जिसमें भूकंपरोधी निर्माण को बढ़ावा देना, जागरूकता अभियान चलाना और आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करना शामिल है।
इसी कड़ी में विनाशकारी भूकंप की 120वीं बरसी के अवसर पर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला टौणी देवी में आपदा प्रबंधन को लेकर एक मॉक ड्रिल आयोजित की गई। इस अभ्यास का उद्देश्य आपदा के समय छात्रों और शिक्षकों को सतर्क करना और उचित बचाव कार्यों की जानकारी प्रदान करना था। इस मॉक ड्रिल में छात्रों और शिक्षकों ने भाग लिया और आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने की विभिन्न तकनीकों का अभ्यास किया।
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प्रधानाचार्य रजनीश रांगड़ा ने बताया कि यह मॉक ड्रिल स्कूल के सभी छात्रों और शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव था। आज जब काँगड़ा भूकंप को 120 वर्ष पूरे हो चुके हैं, यह आवश्यक हो जाता है कि हम इस घटना से मिली सीख को अपनाएँ। भूकंप जैसे आपदाओं से निपटने के लिए जागरूकता, प्रशिक्षण और आधुनिक आपदा प्रबंधन तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी नागरिक, विशेष रूप से बच्चे और बुजुर्ग, भूकंप जैसी आपदाओं से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हों। उन्होंने कहा, “आपदा प्रबंधन जागरूकता आज के समय की महती आवश्यकता है। 1905 की त्रासदी हमें यह सिखाती है कि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। यदि हम सतर्क रहें और सही समय पर उचित कदम उठाएँ, तो जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता है।” उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल में भविष्य में भी इस तरह के अभ्यास जारी रहेंगे ताकि छात्र आपदा की स्थिति में घबराने के बजाय सही कदम उठा सकें।
आपदा प्रबंधन प्रभारी सोनू गुलेरिया ने इस मॉक ड्रिल का संचालन किया। उन्होंने बताया कि इस अभ्यास में छात्रों को भूकंप आने की स्थिति में आवश्यक एहतियाती कदम उठाने की जानकारी दी गई। जैसे कि- भूकंप के दौरान खुले मैदान की ओर जाना, मजबूत वस्तुओं के नीचे छिपना, दरवाजों और खिड़कियों से दूर रहना, सुरक्षित स्थानों पर पहुँचने के लिए सीढ़ियों का उपयोग करना, न कि लिफ्ट का। साथ ही, उन्होंने बताया कि भूकंप के दौरान घबराहट से बचना बेहद जरूरी है और धैर्य बनाए रखना चाहिए।