
हिमाचल दिवस आज, कैसे बना हिमाचल? 77 साल में छुए विकास के कई आयाम
पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर
कठिन परिस्थितियों के बावजूद देवभूमि हिमाचल के मानस ने विकास यात्रा को बनाए रखा है। कृषि-बागवानी के परंपरागत आधार को आधुनिक स्वरूप देकर फल व सब्जी उत्पादन में उत्तर भारत में पहचान स्थापित की है। फल उत्पादन में सेब के साथ-साथ अन्य फलों ने भी देश व विदेश के बाजारों में मांग पैदा की है। राज्य की युवा शक्ति के लिए औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। जल विद्युत की अपार संभावनाओं के साथ सौर ऊर्जा ने भी अलग क्षेत्र में निवेश की आस पैदा की है। मनोरम सैरगाहों में सैलानियों की आमद बढ़ने से ग्रामीण स्तर पर पर्यटन गतिविधियों का विस्तारीकरण हुआ है।
वहीं, वर्तमान प्रदेश सरकार ने हक की लड़ाई लड़ने की नई सोच पैदा की है। जिससे राज्य में नई तरह के संसाधन सर्जित होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। हमारे प्रति पड़ोसी राज्यों की सोच में भी सकारात्मक बदलाव दिखने लगा है। केंद्र सरकार से बार-बार सहयोग की मांग करते रहने से केंद्र का रवैया भी बदला है।
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जल, वन के संसाधनों में जल उपकर, बिजली परियोजनाओं में हिस्सेदारी सहित खनन को व्यापक क्षेत्र का दायरा प्रदान किया है। केंद्र सरकार पर निर्भरता को कम करने और अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए पर्यटन को बहुआयामी दायरा प्रदान किया है। छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल प्रदेश ने 77 साल की यात्रा में विकास पथ पर कई आयाम छुए हैं। 15 अप्रैल 1948 को छोटी रियासतों को मिलाकर हिमाचल बना था। 26 जनवरी 1951 में सी श्रेणी राज्य व और पहली नवंबर 1956 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला। 25 जनवरी 1971 को मिला था पूर्ण राज्य का दर्जा।
77 वर्ष में प्रदेश आर्थिक व भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद विकास पथ पर अग्रसर रहा। इस दौरान सात मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने विकास को दिए नए आयाम। साक्षरता दर बढ़ी, गांव तक सड़कें पहुंची और अब कनेक्टिविटी को मजबूत करने पर काम चल रहा है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, जल विद्युत परियोजनाएं व कृषि बागबानी में बनाई पहचान।
हिमाचल दिवस का इतिहास
हिमाचल प्रदेश स्वतंत्रता-पूर्व राज्य है, जहाँ हिमाचल दिवस की उत्पत्ति पाई जा सकती है। हिमाचल नाम दो संस्कृत शब्दों से आया है: ‘अचल’ (जिसका अर्थ है गोद) और ‘हिमा’ (जिसका अर्थ है बर्फ)। यह क्षेत्र हिमालय की गोद में है। ब्रिटिश साम्राज्य के औपनिवेशिक विस्तार से पहले, गोरखाओं ने हिमाचल प्रदेश, शिमला और आस-पास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद, गोरखा साम्राज्य को अंततः पराजित कर दिया गया और अंग्रेजों ने हिमाचल प्रदेश पर नियंत्रण कर लिया।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पहाड़ी राज्य के अधिकांश नेताओं ने कच्चा माल और श्रम उपलब्ध कराकर अंग्रेजों का समर्थन किया था। इस राज्य के गौरवशाली अतीत के सम्मान में हिमाचल दिवस मनाया जाता है।
हिमाचल प्रदेश तब और अब
- विषय, वर्ष, 1971, वर्ष, 2025
- जिले, 10, 12
- नगर निगम, 1, 8
- ग्राम पंचायतें, 2062, 3577
- आबाद गांव, 16916, 20690
- साक्षरता दर, 31.96 प्रतिशत, 82.80 प्रतिशत
- प्रति व्यक्ति आय, 651 रुपये, 257212 रुपये
- सकल घरेलू उत्पाद, 233 करोड़, 232185 करोड़ रुपये
- सड़कों की लंबाई, 10617 किमी, 37808 किमी
- स्वास्थ्य संस्थान, 587, 4320
- शिक्षण संस्थान, 4693, 15137
- खाद्यान्न, 9.40 लाख टन, 16.74 लाख टन
- फलोत्पादन, 1.78 लाख टन, 4.82 लाख टन
- सेब उत्पादन, 4.07 लाख टन
हिमाचल दिवस का महत्व
हिमाचल प्रदेश की सरकार संसदीय है। यह राज्य प्रगतिशील है, इसकी 82.80% आबादी साक्षर है। इसमें 12 जिले हैं, क्षेत्रफल के मामले में यह 18वें स्थान पर है और जनसंख्या के मामले में 21वें स्थान पर है। 2016 तक, पहाड़ी राज्य के 99.5% घरों में बिजली की सुविधा थी।
हिमाचल दिवस पर हिमाचल प्रदेश के लोग विकास के 74 शानदार वर्षों का जश्न मनाते हैं। हालांकि राज्य ने बहुत प्रगति की है, लेकिन पर्यटन और औद्योगिक विस्तार के मामले में अभी भी सुधार की गुंजाइश है।
हिमाचल दिवस तथ्य
- डॉ. यशवंत सिंह परमार एक प्रखर समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश को अपनी अलग पहचान दिलाई। वे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने हिमाचल दिवस के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।
- डॉ. परमार दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे: 8 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक तथा 1 जुलाई 1963 से 28 जनवरी 1977 तक।
- हिमाचल दिवस से जुड़े होने के कारण उन्हें ‘हिमाचल प्रदेश के महानायक’ के रूप में जाना जाने लगा।
- वह इतने उदार थे कि जब उन्हें अपनी पार्टी के अभियानों से धन और संपत्ति प्राप्त हुई, तो उन्होंने उसे शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया।