दर्शको / पाठको नमस्कार
डंके की चोट कॉलम में मैं रजनीश शर्मा आज मानवाधिकारों की पड़ताल करने जा रहा हूं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा पिछले तीन वित्तीय वर्षों में प्रतिवर्ष दर्ज किये गए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में से लगभग 40% उत्तर प्रदेश से पाए गए हैं। इनमें से ये प्रमुख मुद्दे रहे।
* लोगों को उनके घरों से ज़बरन बेदखल करना (पर्याप्त आवास का अधिकार)।
* दूषित जल (स्वास्थ्य का अधिकार)
* मानवीय जीवन के लिये पर्याप्त न्यूनतम मज़दूरी सुनिश्चित करने में विफलता (काम का अधिकार)
* देश में सभी क्षेत्रों और समुदायों में भुखमरी को रोकने में विफलता (भूख से मुक्ति)।
मानवाधिकार उल्लंघन के प्रकार:
प्रत्यक्ष या जानबूझकर:
उल्लंघन या तो राज्य द्वारा जानबूझकर किया जा सकता है और या राज्य द्वारा उल्लंघन को रोकने में विफल रहने के परिणामस्वरूप हो सकता है।
जब कोई राज्य मानवाधिकारों के उल्लंघन में संलग्न होता है, तो पुलिस, न्यायाधीश, अभियोजक, सरकारी अधिकारी और अन्य जैसे विभिन्न अभिनेता शामिल हो सकते हैं।
उल्लंघन प्रकृति में शारीरिक रूप से हिंसक हो सकता है, जैसे कि पुलिस की बर्बरता, जबकि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार जैसे अधिकारों का भी उल्लंघन किया जा सकता है, जहाँ कोई शारीरिक हिंसा शामिल नहीं है।
अधिकारों की रक्षा करने में राज्य की विफलता:
यह तब होता है जब किसी समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों के बीच संघर्ष होता है।
यदि राज्य कमज़ोर लोगों और समूहों में हस्तक्षेप करने एवं उनकी रक्षा करने के लिये कुछ नहीं करता है, तो यह प्रतिक्रिया उल्लंघन मानी जाएगी।
अमेरिका में राज्य श्वेत अमेरिकियों की रक्षा करने में विफल रहा जब देश भर में अक्सर लिंचिंग होती रही।
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भारत में वर्तमान परिदृश्य:
कुल उल्लंघन:
भारत में NHRC द्वारा दर्ज़ अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की कुल संख्या 2018-19 में 89,584 से घटकर 2019-20 में 76,628 और 2020-21 में 74,968 हो गई।
2021-22 में 31 अक्तूबर (2021) तक 64,170 मामले दर्ज़ किये गए।
जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा:
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 2018 तक दलितों के खिलाफ अपराधों में 6% की वृद्धि हुई, जिसमें 3.91 लाख से अधिक घटनाएँ देखी गई।
सांप्रदायिक और जातीय हिंसा:
कई लोगों पर गोरक्षा समूहों द्वारा हमला किया गया था और प्रभावित लोगों में से कई अल्पसंख्यक समूह के थे।
अफ्रीकी देशों के लोगों को भारत में नस्लवाद और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
संघ की स्वतंत्रता:
सरकार द्वारा कई नागरिक समाज संगठनों के पंजीकरण को निरस्त कर दिया गया, जो विशेष रूप से उन्हें विदेशी धन प्राप्त करने से रोकते थे, भले ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) ने दावा किया कि यह कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप नहीं थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
कई लोगों को सरकार की नीतियों के प्रति असहमति व्यक्त करने के लिये राजद्रोह कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और कई भारतीयों को फेसबुक पर टिप्पणी करने पर गिरफ्तार किया गया था।.
महिला के विरुद्ध हिंसा:
हाल ही में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) 5, की रिपोर्ट महिलाओं के खिलाफ घरेलू और यौन हिंसा के बढ़ते मामलों की ओर इशारा करती है।
कर्नाटक में घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, जबकि NFHS-4 में यहाँ घरेलू हिंसा के 20.6% मामले दर्ज किये गए थे और NFHS-5 में यह आँकड़ा 44.4% हो गया है।
बच्चों से संबंधित अधिकार:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के आंँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2020 में भारत में बच्चों के खिलाफ कुल 1,28,531 अपराध दर्ज़ किये गए थे, जिसका अर्थ है कि महामारी के दौरान हर दिन औसतन 350 ऐसे मामले दर्ज़ किये गए थे।
आगे की राह
दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये एक स्थायी, व्यावहारिक और प्रभावी तरीका अपनाना जो स्थानीय मूल्यों तथा संस्कृति को भी बरकरार रखने में भी सक्षम हो।
मनुष्य को आपसी मतभेदों की पहचानना चाहिये तथा एक-दूसरे को समझते हुए इन्हें पहचानकर परिवर्तन करने की प्रयास करना चाहिये।
छोटी-छोटी पहलों की शुरुआत करना, जैसे- बलात्कार, हिंसा और भेदभाव के शिकार लोगों की स्थितियों को समझते हुए दोषपूर्ण संस्कृति से बाहर निकालना। इस प्रकार का विस्तृत दृष्टिकोण इन परिस्थितियों के प्रति अधिक प्रभावशाली साबित हो सकता है।