
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
तारा देवी मंदिर/ शिमला
देवों की भूमि हिमाचल प्रदेश अपनी अलौकिक सुंदरता और यहां बने दैवीय स्थलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्वर्ग की देवी मां तारा का वास है। शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान हैं। यहां मां तारा के दर्शन करने लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। मान्यता है कि जो भक्त मां तारा के दरबार में पहुंचता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का भी केंद्र है।
तारा देवी मंदिर शिमला से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है। शोघी की पहाड़ी पर बना यह मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। श्रद्धालुओं के लिए मंदिर तक पहुंचे के लिए बेहतरीन सड़क सुविधा है, लेकिन कुछ लोग यहां वादियों की सुंदरता लेने के लिए मंदिर ट्रैकिंग कर के भी पहुंचते हैं।
तांत्रिक विद्या के लिए जानी जाती है तारा देवी
माता तारा को तांत्रिक की देवी माना जाता है। तांत्रिक साधना करने वाले तारा माता के भक्त कहे जाते हैं। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा देवी की तंत्र साधना करना सबसे ज्यादा फलकारी माना जाता है।
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कौन हैं माता तारा देवी, जिन्हें हिंदू-बौद्ध दोनों पूजते है
भगवान शिव की पत्नी मां पार्वती ने ही मां सती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। माता सती राजा दक्ष की पुत्रीं थी। उनकी बहन थी देवी तारा। तारा एक महान देवी है जिनकी पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों धर्म में होती हौ। तारने वाली कहने के कारण भी माता तारा को तारा देवी के नाम से जाना जाता है।
इतिहास
तारा देवी मंदिर का इतिहास करीब 250 साल पुराना है। कहा जाता है कि एक बार बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे। एक दिन घने जंगलों के बीच शिकार खेलने से पैदा हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई. सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रूप से अक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा। सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेंद्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया।
मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया था। यह मूर्ति लकड़ी से तैयार की गई थी। कुछ समय बाद राजा भूपेंद्र सेन के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में तारा माता के दर्शन हुए। इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया।
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मां दुर्गा की नौ बहनों में से एक है मां तारा
माना जाता है कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन हैं। तारा, एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरूप हैं. बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरूपों के बारे में बताया गया है। सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में की जाती है। नवरात्रों में माता के दरबार में श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। नवरात्र में माता की दिव्य मूर्ति के दर्शन पाने के लिए यहां लोग दूर-दूर से आते हैं।
तारा देवी मंदिर से कुछ दूरी पर शिव कुटिया बनी हुई है। घने जंगल में स्थित भगवान शिव का यह छोटा-सा मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव के कैलाश में होने का आभास कराता है। जंगल के अन्य हिस्सों की तुलना में इस मंदिर का तापमान कम होता है। माना जाता है कि कई साल पहले एक संत यहां ध्यान किया करते थे। ठंड में भी वह संत केवल एक लंगोट में ही यहां तपस्या करते थे।
तारा देवी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी तारा की उत्पत्ति मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में, चोलना नदी के तट पर हुई। हयग्रीव नाम के दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने ही, नील वर्ण धारण किया था।
सर्वप्रथम स्वर्ग-लोक के रत्नद्वीप में वैदिक कल्पोक्त तथ्यों तथा वाक्यों को देवी काली के मुख से सुनकर, शिव जी अपनी पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुए। शिव जी ने महाकाली से पूछा, आदि काल में अपने भयंकर मुख वाले रावण का विनाश किया, तब आश्चर्य से युक्त आप का वह स्वरूप ‘तारा’ नाम से विख्यात हुआ। उस समय, समस्त देवताओं ने आप की स्तुति की थी तथा आप अपने हाथों में खड़ग, नर मुंड, वार तथा अभय मुद्रा धारण की हुई थी, मुख से चंचल जिह्वा बहार कर आप भयंकर रुपवाली प्रतीत हो रही थी। आप का वह विकराल रूप देख सभी देवता भय से आतुर हो कांप रहे थे, आपके विकराल भयंकर रुद्र रूप को देखकर, उन्हें शांत करने के निमित्त ब्रह्मा जी आप के पास गए थे।
समस्त देवताओं को ब्रह्मा जी के साथ देखकर देवी, लज्जित हो आप खड़ग से लज्जा निवारण की चेष्टा करने लगी। रावण वध के समय आप अपने रुद्र रूप के कारण नग्न हो गई थी तथा स्वयं ब्रह्मा जी ने आपकी लज्जा निवारण हेतु, आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था। इसी रूप में देवी ‘लम्बोदरी’ के नाम से विख्यात हुई। तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, भगवान राम केवल निमित्त मात्र ही थे, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया।
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तारा देवी मंदिर का प्रवेश शुल्क और समय
शिमला में तारा देवी मंदिर के दर्शन के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। यह सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 7 बजे से शाम 6:30 बजे तक खुला रहता है।
तारा देवी मंदिर दर्शन के लिए यात्रा युक्तियाँ
क्लच, बैग, जूते, बटुआ या अन्य सामान सहित चमड़े से बनी कोई भी चीज़ अपने साथ न रखें। अन्यथा आपको मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।
कैसे पहुँचें तारा देवी मंदिर
हवाई मार्ग द्वारा : तारा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जुब्बरहट्टी हवाई अड्डा है, जो गंतव्य से 22 किमी दूर है। वहां से आप कैब या टैक्सी ढूंढ सकते हैं।
ट्रेन द्वारा : शिमला रेलवे स्टेशन तारा देवी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन है। चंडीगढ़ से आने वाले लोग कालका रेलवे स्टेशन से तारा देवी स्टेशन तक टॉय ट्रेन की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं, जो केवल 10 किमी की दूरी पर है।
सड़क मार्ग द्वारा : तारा देवी मंदिर तक पहुंचने का दूसरा रास्ता शोघी से है, जो सड़क मार्ग द्वारा शहर के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां कई निजी और सार्वजनिक स्वामित्व वाली बसें उपलब्ध हैं। कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरते समय भी आपको मंदिर के दर्शन करने का मौका मिल सकता है।
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