
शिमला में पढ़ाई के तनाव में छात्र ने लगाया फंदा, सुसाइड नोट में लिखा….
पोल खोल न्यूज़ । शिमला
राजधानी शिमला के एक सरकारी स्कूल में बारहवीं कक्षा में पढ़ रहे छात्र के आत्महत्या की खबर सामने आई है, जहां छात्र ने पढ़ाई के तनाव में आकर फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। छात्र ने पिता की अनुपस्थिति में घर पर छत में लगी लकड़ी में साड़ी फंसाकर फंदा लगाया। पुलिस को कमरे में बेड पर पड़ी नोटबुक के पेज नंबर 90 पर एक सुसाइड नोट लिखा मिला, जिसमें छात्र ने लिखा था कि उसके पिछले दिनों हुए तीन हाउस टेस्ट अच्छे नहीं हुए हैं, इसी तनाव में आकर वह आत्महत्या कर रहा है।
पुलिस ने केस दर्जकर मामले की छानबीन शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार फागली क्षेत्र में रहने वाला छात्र रविवार को घर पर अकेला था। इस दौरान उसने छत में लगी लकड़ी से साड़ी का फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली। शाम करीब 4:30 बजे जब पिता घर पहुंचे तो अंदर से कुंडी लगी थी। उन्होंने दरवाजा खटखटाया लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद उन्होंने खिड़की से भीतर देखा तो बेटा फंदे से लटका हुआ था। पिता की चीख पुकार सुनकर परिवार के अन्य सदस्य भी मौके पर पहुंचे और दरवाजा तोड़कर भीतर पहुंचे। वह उसे किशोर को उतारकर आईजीएमसी ले गए, जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
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पुलिस ने नोटबुक और फंदा लगाने में इस्तेमाल की साड़ी को कब्जे में ले लिया है। सोमवार को आईजीएमसी में पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों के सुपुर्द कर दिया है। छात्र बारहवीं कक्षा के कॉमर्स संकाय में शिक्षा ग्रहण कर रहा था और पढ़ाई में होनहार था। आत्महत्या की सूचना से स्कूल के शिक्षक और विद्यार्थी भी हैरान हैं। सोमवार को भी विद्यार्थी का पेपर था लेकिन इससे पहले ही उसने ऐसा गंभीर कदम उठा लिया।
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में मानसिक तनाव झेल रहे हैं विद्यार्थी
आईजीएमसी में मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने से विद्यार्थी मानसिक तनाव झेलने को मजबूर हैं। कई बार अभिभावक उन पर बेहतर करने का दबाव भी बनाते हैं तो कई बार बच्चे खुद भी बेहतर करने की कोशिश में अधिक दबाव ले रहे हैं। बच्चों में तनाव झेलने की क्षमता कम है, इसके लिए हमारा सामाजिक तानाबाना जिम्मेवार है। बच्चे पहले की पीढि़यों की अपेक्षा संवेदनशील हो गए हैं। ऐसे में यह पता लगाना काफी मुश्किल है कि बच्चे किस बात पर किस तरह से कदम उठाएंगे। हमें बच्चों को समय और साथ देने की जरूरत है। बच्चों को बताएं कि सफलता ही नहीं, असफलता को भी स्वीकार करना जरूरी है। अभिभावक मानसिक तनाव के लक्षणों को समय पर पहचान कर काउंसलिंग भी करवा सकते हैं।