Diksha Thakur | Pol Khol News desk
चामुण्डा देवी मंदिर/कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। चामुंडा देवी मंदिर का निर्माण वर्ष 1762 में उम्मेद सिंह ने करवाया था। पाटीदार और लाहला के जंगल में बनेर नदी के तट पर स्थित यह मंदिर पूरी तरह से लकड़ी से बना है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिन्हें युद्ध की देवी के रूप में जाना जाता है। पहले इस जगह पर केवल पत्थर के रास्ते काटे गए थे, लेकिन अब इस मंदिर के दर्शन के लिए आपको 400 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। वैकल्पिक रूप से, आप 3 किलोमीटर लंबी कंक्रीट सड़क के माध्यम से आसानी से चंबा पहुंच सकते हैं।
चामुंडा देवी मंदिर लगभग सात सौ साल पुराना है, जिसके पीछे एक गुफा जैसी संरचना है जिसे भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें भगवान शिव और शक्ति का निवास है। भगवान हनुमान और भैरव इस मंदिर के सामने के द्वार की रक्षा करते हैं और उन्हें देवी का रक्षक माना जाता है।
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चामुंडा देवी मंदिर का इतिहास
चामुंडा देवी मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर के इतिहास को लेकर भी एक कहानी बताई जाती है। 400 साल पहले राजा और पुजारी ने जब मंदिर का स्थान एक सही जगह पर परिवर्तित करने की अनुमति मांगी थी तो देवी ने पुजारी को सपने में दर्शन किये और उन्होंने मंदिर को स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने का आदेश दिया। जब उस जगह पर खुदाई की गई तो वहां पर एक चामुंडा देवी की मूर्ति पाई गई जिसके बाद चामुंडा देवी की मूर्ति को उसी जगह पर स्थापित किया गया और उसकी पूजा की जाने लगी।
जब राजा ने मूर्ति को बाहर लाने के लिए अपने लोगों को कहा तो लाख कोशिश के बाद भी वो उस मूर्ति को हिलाने में सक्षम नहीं हुए। इसे बाद एक बार देवी ने पुजारी को सपने में दर्शन किये और उन्होंने कहा वो सभी लोग मूर्ति को साधारण समझ कर उठाने की कोशिश कर रहे हैं। देवी ने पुजारी से कहा कि वे सुबह नहाकर पवित्र कपड़े पहन कर सम्मानजनक तरीके से मूर्ति को बाहर लायें, जो काम सारे लोग मिल कर नहीं कर पा रहे वो अकेला आदमी आसानी से कर सकेगा। जब पुजारी ने यह बात सभी लोगों को बताया कि यह देवी माँ की शक्ति थी कि वो मूर्ति को हिला तक नहीं पा रहे थे।
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चामुंडा देवी मंदिर की कहानी
हजारों साल पहले धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो ने राज कर लिया था। उन्होंने धरती पर इतने अत्याचार किये कि इससे परेशान होकर देवताओं व मनुष्यो ने शक्तिशाली देवी दुर्गा की आराधना की तो देवी दुर्गा ने कहा की वो जरुर उनकी इन दैत्यों से रक्षा करेंगी। इसके बाद दुर्गा जी ने कौशिकी के नाम से अवतार लिया इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने माता कौशिकी को देख लिया। दोनों ने शुम्भ और निशुम्भ से कहा कि आप तो तीनों लोगों के राजा है, आपके पास सब कुछ है लेकिन आपके पास एक सुंदर रानी भी होना चाहिए जो सारे संसार में सबसे सुंदर है। दूतों की इन बातों को सुनकर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत माता कौशिकी के पास भेजा और कहा कि कौशिकी से कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनों लोको के राजा हैं और वो तुम्हे रानी बनाना चाहते हैं।
शुम्भ और निशुम्भ के कहने पर दूत ने ऐसा ही किया। कौशिकी ने दूत की बात सुनकर यह कहा कि में जानती हूँ कि वो दोनों बहुत शक्तिशाली हैं, लेकिन में प्रण ले चुकीं हूँ कि जो मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करुँगी। जब यह बात दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को जाकर बताई तो उन्होंने दो दूत चण्ड और मुण्ड को देवी के पास भेजा और कहा कि उसके केश पकड़ कर हमारे पास लाओ। जब चण्ड और मुण्ड ने वहां जाकर देवी कौशिकी से साथ चलने को कहा तो उन्होंने क्रोधित होकर अपना काली रूप धारण कर लिया और आसुरो को मार दिया। इन दोनों राक्षसों के सर काटकर देवी चामुंडा(काली) कोशिकी के पास लेकर आ गई जिससे खुश होकर देवी कोशिकी ने कहा कि तुमने इन दो राक्षसों को मारा है अब तुम्हारी प्रसिद्धी चामुंडा के नाम से पूरे संसार में होगी।
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प्रमुख पर्व
चामुण्डा देवी में वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक रात्रि को जगरण किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष हवन और पूजा कि जाती है। माता के भक्त माता की एक झलक पाने के लिए घण्टों कतार में खडें रहते हैं।
ऐसे पहुंचे मंदिर
यात्री पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हैं। यात्रा मार्ग में अनेंक मनमोहक दृश्य है जो पर्यटको के जेहन में बस जाते हैं। हरी-हरी वादियां और कल-कल कर बहते झरने पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटक सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग : चामुण्डा देवी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि यहां से 28 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के बाद में यात्री बस या कार से चामुण्डा देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहाँ से टैक्सी आदि की भी अच्छी सुविधा है। समय-समय पर हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बसे यहाँ से जाती रहती है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटको के लिए हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग कि बस सेवा है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर उतारती है। चामुण्डा देवी धर्मशाला से 15 किमी और ज्वालामुखी से 55 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से आप अपने निजी वाहनो या किराए के वाहनो से मंदिर तक जा सकते हैं।
रेल मार्ग : पंजाब स्थित पठान कोट से पर्यटक हिमाचल के लिए चलने वाली छोटी रेल गाड़ी के द्वारा पहाड़ी सौन्दर्य और संकीर्ण रास्तो का लुफ्त उठाते हुए मराण्डा तक पहुंच सकते हैं जो कि पालमपुर के पास स्थित है। यहां से चामुण्डा देवी मंदिर कि दूरी 30 किमी है। पठान कोट सभी प्रमुख राज्यो से रेल से जुड़ा हुआ है।