Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
बैजनाथ मंदिर/ कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर विश्व भर के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विश्व भर के शिव भक्त यहां भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर से धौलाधार की वादियों का सौंदर्य देखते ही बनता है। यह मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, वास्तुकला और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं और उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कार्य ‘आहुका’ और ‘ममुक’ नाम के दो व्यापारी भाइयों ने 1204 ई. में किया था।
मंदिर का इतिहास
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था किन्तु उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह आख्यान उचित प्रतीत नहीं होता है। इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है।
एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार शिव नगरी बैजनाथ में किसी भी स्वर्णकार की दुकान नहीं है, जबकि पपथेला में स्वर्ण आभूषणों का काफी अच्छा कारोबार है। इसे भी शिव भक्त रावण की सोने की लंका से जोड़ कर देखते हैं।
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शिव भक्तों के लिए बैजनाथ के समीप भगवान भोले शंकर के और भी कई मंदिर मौजूद हैं। इस मंदिर के अढ़ाई कोस की परिधि में चारों दिशाओं में भगवान शिव विभिन्न रूपों में मौजूद हैं। बैजनाथ के पूर्व में संसाल के समीप गुकुटेशवर नाथ, पश्चिम में पल्लिकेश्वर नाथ और दक्षिण में महाकाल के समीप महाकालेश्वर के रूप में भगवान शिव एक अन्य मंदिर में सिद्धेश्वर के रूप में विद्यमान हैं।
बैजनाथ मंदिर की कहानी
त्रेता युग में लंका का राजा रावण, जोकि शिव जी का परम भक्त था, ने कैलाश पर्वत पर शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। उसके आग्रह पर भगवान शिव ने लिंग का रूप धारण कर लिया और रावण को उसे ले जाने को कहा किन्तु साथ ही शर्त रख दी कि वह उन्हें लंका पहुंचने तक कहीं भी रास्ते में न रखे।
भगवान शिव ने रावण से कहा कि अगर यह शिवलिंग रास्ते में कही रख देगा तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा और उसका विश्व विजयी होने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। देवताओं ने रावण के इस निमित्त से घबराकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। श्री विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए किसान का रूप धारण किया और मंदिर स्थल के समीप खेतों में काम करने लगे।
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रास्ते में थकने पर रावण विश्राम के लिए रुका तथा शिवलिंग पास में ही काम कर रहे उस किसान को पकड़ाते हुए उससे शिवलिंग को नीचे न रखने का आग्रह किया लेकिन किसान ने शिवलिंग को वहीं रख दिया। इस तरह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया।
नहीं मनाया जाता दशहरा
ज्ञातव्य है कि बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाता क्योंकि रावण शिव का प्रिय भक्त था। कहते हैं कि एक बार कुछ स्थानीय लोगों ने दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया था और इसके बाद आयोजकों तथा उनके परिवारों को अनिष्ट झेलना पड़ा था। उसके बाद किसी ने भी यहां दशहरा मनाने की कोशिश नहीं की।
1905 में पहुंचा था नुकसान
बताया जाता है कि महमूद गजनवी ने भारत के अन्य मंदिरों के साथ बैजनाथ मंदिर को भी लूटा। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी ने मंदिर को तोडा. 1783-86 ई. में महाराजा संसार चंद द्वितीय ने क्षतिग्रस्त बैजनाथ मंदिर की मरम्मत करवाई। वर्ष 1905 में कांगडा के विनाशकारी भूकंप ने फिर से इस पूजा स्थल को क्षति हुई थी, लेकिन पुरातत्व विभाग ने इसकी मरम्मत करवाई है। मंदिर में स्थित 8वीं शताब्दी के शिलालेखों से प्रमाणित होता है कि यह मंदिर दो हजार वर्ष पहले बना था।
एक किवदंति यह भी है कि राजा लक्ष्मण चन्द्र के राज्य में दो भाई- मन्युक और आहुक व्यापारी थे। दोनों शिव भक्त थे और उन्होंने शिवलिंगों के लिए मंडप और ऊंचा मंदिर बनवाया। मंदिर के पुनर्निर्माण का समय शिलालेखों में वर्ष 804 दिया गया है। समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के निर्माण को देखकर भक्तगण चकित रह जाते हैं।
ऐसे पहुंचे मंदिर
यहां तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चंडीगढ़-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस, निजी वाहन या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज से आने वाले श्रद्धालु गग्गल हवाई अड्डे पर उतरने के बाद टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।