Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
चिंतपूर्णी देवी मंदिर/ ऊना
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के रूप में बेहद पवित्र माना जाता है। इस खूबसूरत जगह पर प्राचीन काल से देवता निवास करते आ रहे हैं, उन्हीं में से एक हैं हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में ‘मां चिंतपूर्णी देवी’ मंदिर और ‘चिंतपूर्णी देवी’ तीर्थ स्थल। चिन्तपूर्णी देवी मंदिर हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। चिन्तपूर्णी देवी यहां विराजमान देवी हैं जहाँ उन्हें सिर के बिना पिंडी रूप (गोल पत्थर) में दिखाया गया है। मान्यता हैं कि अगर कोई भक्त देवी माता की सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो चिन्तपूर्णी देवी उसके सभी कष्टों और विप्पतियों को हर लेती है। यह मंदिर माता सती को समर्पित 51 शक्तिपीठ में से एक है जहाँ सदियों से माता श्री छिन्नमस्तिका देवी के चरण कमलों के पूजा करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता हैं। बता दे यहाँ माता को छिन्नमस्तिका देवी के नाम से भी पुकारा जाता है।
कुछ लोगों के अनुसार माता चिंतपूर्णी मां ज्वालामुखी का दूसरा नाम और रूप हैं। जैसा कि आप जानते हैं ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल में ही स्थित है, इसी आधार पर इस जगह की देवी का नाम चिंतपूर्णी पड़ा। देवी को चिंताओं को दूर करने वाली माता के रूप में जाना जाता है। जिस भी व्यक्ति के जीवन में सुख, धन और सम्पत्ति का अभाव है, उनके दुख को चिंतपूर्णी मां दूर कर देती हैं। इस मंदिर की इस कारण से इतनी मान्यता है कि भक्त दूर-दूर से अपनी समस्याएं मां के पास लेकर आते हैं।
चिंतपूर्णी देवी मंदिर का इतिहास
देवी सती के रूप चिन्तपूर्णी देवी को समर्पित चिन्तपूर्णी देवी मंदिर के इतिहास और किवदंतीयों के अनुसार चिंतपूर्णी देवी मंदिर की स्थापना लगभग 12 पीढ़ियों पहले छपरोह गांव में पटियाला रियासत के एक ब्राह्मण पंडित माई दास जी द्वारा करवाई गई थी। समय के साथ साथ इस मंदिर को चिन्तपूर्णी देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है उनके वंशज आज भी इस मंदिर में रहते है और देवी चिन्तपूर्णी की पूजा अर्चना भी करते है। हालाकि हमारे पास इसकी कोई प्रमाणिक पुष्टि नही है।
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चिंतपूर्णी माता की कथा
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार चिंतपूर्णी देवी की कहानी भी अन्य शक्तिपीठ मंदिरों की भांति भगवान शिव जी की पत्नी देवी सती से जुड़ी हुई है। यह बात उस समय की है जब देवी सती अपने पिता राजा प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में बिना आमंत्रण के पहुच जाती है। उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित करने के लिए बाहर रखा। अपने पिता के फैसले से आहत होकर, सती ने अपने पिता से मिलने का फैसला किया और उन्हें आमंत्रित न करने का कारण पूछा।
जब उसने दक्ष के महल में प्रवेश किया, तो उन्होंने शिव का अपमान किया। अपने पति के खिलाफ कुछ भी सहन करने में असमर्थ, देवी सती ने खुद को यज्ञ के कुंड में झोंक दिया। जब शिव के परिचारकों ने उन्हें अपनी पत्नी के निधन की सूचना दी, तो वह क्रोधित हो गए और उन्होंने वीरभद्र को पैदा किया। वीरभद्र ने दक्ष के महल में कहर ढाया और उनकी हत्या कर दी।
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इस बीच, अपनी प्रिय आत्मा की मृत्यु का शोक मनाते हुए, शिव ने सती के शरीर को कोमलता से पकड़ लिया और विनाश (तांडव) का नृत्य शुरू कर दिया। ब्रह्मांड को बचाने और शिव की पवित्रता को वापस लाने के लिए, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके सती के निर्जीव शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया। ये टुकड़े कई स्थानों पर पृथ्वी पर गिरे जहाँ आज देवी के शक्तिपीठ स्थापित किये गये है। देवी सती के शरीर के उन्ही 51 टुकड़ों में से एक टुकड़ा इस स्थान पर गिरा था जहाँ आज प्रसिद्ध छिन्नमस्तिका देवी या चिन्तपूर्णी देवी का मंदिर स्थापित है।
चिंतपूर्णी मंदिर का तालाब
चिंतपूर्णी मंदिर में एक तलाब है, जिससे एक प्राचीन कहानी जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार, मां भगवती ने भक्त ‘मैदास जी’ को कन्या रूप में प्रत्यक्ष दर्शन दिए और उनकी चिंता दूर हो गई। देवी भगवती ने उन्हें कहा कि आप जिस भी पत्थर को उखाड़ेंगे, वहां से पानी निकलने लगा। अब इस जगह पर एक तलाब है, जहां से भक्त ने पत्थर को उखाड़ा था। इस तालाब का निर्माण पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। इसके बाद चिंतपूर्णी सरोवर कार्य समिति के पूर्व अध्यक्ष अमर शहीद ने इस तालाब का रेनोवेशन किया। तालाब के ठीक ऊपर, मंदिर के संस्थापक श्री 1008 बाबा मैदान जी की समाधि है। मंदिर के पास एक पवित्र बावड़ी है, जिसके जल से सभी रोग दूर होते हैं।
चिंतपूर्णी देवी की कहानी से जुड़ी अन्य किवदंतियां
एक अन्य किंवदंती कहती है कि देवी दो राक्षसों शुंभ और निशुंभ को मारने के लिए प्रकट हुईं जिनसे भीषण युद्ध के बाद देवी उनका वध कर देती है। लेकिन उनके दो योगिनी उत्सर्जन (जया और विजया) अभी भी अधिक रक्त के प्यासी थी, जिसके बाद देवी चंडी ने जया और विजया की खून की प्यास बुझाने के लिए अपना सिर काट दिया था।
भाई माई दास देवी दुर्गा के अनन्य भक्त थे। एक बार की बात है, देवी उनके सपने में आईं और उन्हें इस स्थान पर एक मंदिर बनाने के लिए कहा। इसलिए भगवान की आज्ञा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने छपरोह गांव में मंदिर का निर्माण करवाया। तभी से उनके वंशज श्री चिंतपूर्णी की पूजा करने लगे। उनके वंशज अब इस मंदिर के आधिकारिक पुजारी हैं।
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‘छिन्नमस्तिका धाम’ की दिलचस्प बात यह है कि भगवान शिव ने मंदिर को चारों तरफ से सुरक्षित किया हुआ है। पूर्व में कालेश्वर महादेव मंदिर, पश्चिम में नारायण महादेव मंदिर, उत्तर में मककंद महादेव मंदिर और दक्षिण में शिव बारी मंदिर स्थित हैं। नवरात्रि के दौरान, मंदिर में एक बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें दुनिया भर से सभी भक्त देवी से आशीर्वाद लेने के लिए इस जगह पर आते हैं।
मेले और त्यौहार
वैसे तो हमेशा ही मंदिर में एक उत्सव जैसा माहौल होता है लेकिन नवरात्र उत्सव चिन्तपूर्णी देवी मंदिर में बहुत धूमधाम, हर्षोल्लास और विधिवत मनाया जाता है। जिसमें दूर दूर से बड़ी संख्या में लोग देवी से आशीर्वाद लेने के लिए इस स्थान पर आते हैं। मेला देवी भगवती छिन्नमस्तका के मंदिर के पास आयोजित किया जाता है जहाँ प्राचीन काल में देवी माँ तारकीय रूप में प्रकट हुई थीं। मेला साल में तीन बार मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और सितंबर-अक्टूबर के महीने में आयोजित किया जाता है। मार्च-अप्रैल में मेला नवरात्रों के दौरान लगता है जबकि जुलाई-अगस्त में यह शुक्ल पक्ष के पहले दस दिनों के दौरान लगता है। मेला पूरे दिन चलता रहता है लेकिन आठवें दिन यह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
चिंतपूर्णी देवी मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय
हिमाचल प्रदेश का मौसम लगभग साल भर सुखद मौसम का अनुभव करता है इसीलिए आप कभी चिंतपूर्णी मंदिर दर्शन के लिए आ सकते है। हालाकि बारिश में यहाँ भारी तूफ़ान,आंधी और बारिश की संभावना बनी रहती है इसीलिए इस दौरान चिंतपूर्णी मंदिर की यात्रा से बचें।
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ऐसे पहुंचे मंदिर
जो भी श्रद्धालु चिंतपूर्णी देवी मंदिर की यात्रा पर जाने का प्लान बना रहें है और सर्च कर रहें हैं की हम चिंतपूर्णी देवी मंदिर केसे पहुचें ? तो हम आपको बता दे चिंतपूर्णी माता मंदिर फ्लाइट, ट्रेन और सड़क मार्ग सभी पहुचा जा सकता है, जिनके बारे में हम नीचे विस्तार से बात करने वाले है –
बस मार्ग : अगर आप पंजाब, दिल्ली या उत्तर प्रदेश से यात्रा कर रहे हैं, तो इन राज्यों से आप बस ले सकते हैं।
रेल मार्ग : चिंतपूर्णी मंदिर, ऊना के आसपास कई रेलवे स्टेशन हैं जैसे एएमबी अंदौरा, होशियारपुर, ऊना हिमाचल और दसुया।
हवाई मार्ग : कांगड़ा हवाई अड्डा पास का हवाई अड्डा है जहां आप प्रसिद्ध एयरलाइन सेवाओं जैसे स्पाइसजेट, किंगफिशर रेड एयरलाइंस, आदि से पहुंच सकते हैं।