Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
भलेई माता मंदिर/ चंबा
हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा के एतिहासिक मंदिरों में से एक माता भद्रकाली का ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। भलेई भ्राण नामक स्थान पर बसा होने के कारण 500 साल पुराने इस धार्मिक स्थल को भलेई माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। आम दिनों के मुकाबले नवरात्रि में दर्शनार्थियों की अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती है। माता भद्रकाली में असीम आस्था रखने वाले लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मन में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
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मंदिर का रोचक इतिहास
डलहौजी से करीब 38 किलोमीटर की दूरी पर स्वयंभू प्रकट मां भलेई का मंदिर है। कहा जाता है कि भद्रकाली मां भलेई भ्राण नामक स्थान पर स्वयंभू प्रकट हुई थीं और चंबा के राजा प्रताप सिंह द्वारा मां भलेई के मंदिर का निर्माण करवाया गया। 60 के दशक तक यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। इसके बाद मां भलेई की एक अनन्य भक्त दुर्गा बहन को मां भलेई ने स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया था कि सबसे पहले दुर्गा बहन मां भलेई के दर्शन करेंगी, जिसके बाद अन्य महिलाएं भी मां भलेई के दर्शन कर सकती हैं। कहा जाता है कि एक बार चोर मां भलेई की प्रतिमा को चुरा कर ले गए थे।
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चोर जब चौहड़ा नामक स्थान पर पहुंचे तो एक चमत्कार हुआ। चोर जब मां की प्रतिमा को उठाकर आगे की तरफ बढ़ते तो वे अंधे हो जाते और जब पीछे मुड़कर देखते तो उन्हें सब कुछ दिखाई देता। इससे भयभीत होकर चोर चौहड़ा में ही मां भलेई की प्रतिमा को छोड़कर भाग गए थे। बाद में पूर्ण विधि विधान के साथ मां की दो फीट ऊंची काले रंग की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया। माना जाता है कि मां जब प्रसन्न होती हैं तो प्रतिमा से पसीना निकलता है। पसीना निकलने का यह भी अर्थ है कि मां से मांगी गई मुराद पूरी होगी।
मंदिर की बनावट और वास्तुकला
लोगों का कहना है कि मंदिर को बनाने के लिए मां भलेई ने ही चंबा के राजा प्रताप सिंह को धन उपलब्ध करवाया था। हजारों साल पहले बने इस मंदिर की वास्तुकला को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है ये इतना खूबसूरत है। भलेई माता की चतुर्भुजी मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है और ये खुद से प्रकट हुई थी। माता के बाएं हाथ में खप्पर और दाएं हाथ में त्रिशूल है। मंदिर के मुख्य दरबार पर उड़ीसा के कलाकारों की कारीगरी का शानदार नमूना देखा जा सकता है।
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ऐसे पहुंचे मंदिर
हिमाचल प्रदेश में स्थित भलेई गांव डलहौजी से 35 किमी दूर स्थित है। मंदिर का नाम भी गांव के नाम से ही जाना जाता है।
आप यहां फ्लाइट के जरिए भी आ सकते हैं। दिल्ली से आपको डलहौजी के लिए फ्लाइट मिलेगी, इसके बाद आपको कैब या बस से यहां तक जाना होगा।
अगर आप ट्रेन के जरिए यहां आने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको दिल्ली से पठानकोट तक की ट्रेन लेना होगा। पठानकोट से डलहौजी 82 किलोमीटर दूर स्थित है।