Diksha Thakur | Pol khol News Desk
पराशर ऋषि मंदिर/ मंडी
भारत में तमाम ऐसी जगहें हैं, जिनके रहस्यों को समझ पाना आसान नहीं है। इनमें अधिकतर संख्या धार्मिक स्थानों की है। जो कहीं न कहीं ईश्वर की मौजूदगी और उनकी शक्तियों का अहसास कराती हैं। ऐसा ही एक विलक्षण स्थल हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी से 49 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है। जहां एक झील में टापू है जो कि पानी में तैरता रहता है और दिन के पहर के अनुसार दिशा बदलता है। यही नहीं 9100 फीट पर स्थित इस झील का पानी ठहरता नहीं है। लेकिन इस ऊंचाई पर यह पानी कहां से आता है और कहां जाता है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। तो आइए जानते हैं कि इस झील का क्या है पूरा रहस्य…..
ऋषि पराशर को समर्पित है यह झील
मंडी से 49 किलोमीटर दूर स्थित यह झील ऋषि पराशर को समर्पित है। बताया जाता है कि पैगोडा शैली में इस मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने करवाया था। कहा जाता है कि वर्तमान में जिस स्थान पर मंदिर है वहां ऋषि पराशर ने तपस्या की थी। पराशर ऋषि मुनि शक्ति के पुत्र और वशिष्ठ के पौत्र थे। मंदिर के पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिंडी, विष्णु-शिव और महिषासुर मर्दिनी की पत्थर निर्मित प्रतिमाएं हैं।
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ऐसे पूरी होती हैं मुरादें
मंदिर जाने वाले श्रद्धालु झील से हरी-हरी लंबे फननुमा घास की पत्तियां निकालते हैं। इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे। इन्हें देवताओं का फूल माना जाता है। लोग इन्हें अपने पास श्रद्धापूर्वक संभालकर रखते हैं। मंदिर के अंदर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है। ऋषि पराशर की प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी भक्तों को हाथ में चावल के कुछ दाने देते हैं। इसके बाद श्रद्धालु आंखें बंद करके मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
मन्नत पूरी होगी या अधूरी ऐसे चलता है पता
मान्यता है कि हाथ में अक्षत लिए जब श्रद्धालुजन अपनी आंखें खोलकर दाने गिनते हैं, तो पता चलता है मन्नत पूरी होगी या नहीं। कहते हैं कि अगर हथेली में अक्षत के तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह दाने हों तो मन्नत जरूरी पूरी होती है। लेकिन अगर अक्षत के इन दानों की संख्या दो, चार, छह, आठ या दस हो तो कहते हैं कि मन्नतें पूरी नहीं होती।
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मान्यता
मान्यता है कि अगर इस क्षेत्र में बारिश न हो तो ऋषि पराशर पुरातन परंपरा के अनुसार गणेशजी को बुलाते हैं। गणेशजी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि ऋषि पराशर मंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है। बता दें कि गणपतिजी को बुलाने की यह प्रार्थना राजा के समय में भी करवाई जाती थी। आज भी सैकड़ों वर्षों बाद यह परंपरा चली आ रही है। ऋषि पराशर झील को लेकर मान्यता है कि यहां पर देवी-देवता स्नान के लिए आते हैं।
ऋषि पराशर झील की गहराई को आज तक कोई भी नहीं नाप सका है। इस झील में एक टापू है जो हमेशा ही तैरता रहता है। बताया जाता है कि कुछ वर्षों पहले यह टापू सुबह के समय पूर्व दिशा में और शाम के समय पश्चिम की दिशा में तैरता था। वर्तमान में यह कभी तो लगातार चलता है तो कभी कुछ दिनों के लिए एक ही जगह पर ठहर जाता है। मान्यता है कि टापू के चलने और रुकने का संबंध पाप और पुण्य के साथ है।
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इन अवसरों पर लगता है यहां मेला
पराशर झील के पास हर वर्ष आषाढ़ की संक्रांति और भाद्रपद की कृष्णपक्ष पंचमी के मौके पर मेले का आयोजन होता है। बता दें कि भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पराशर स्थल से कुछ किलोमीटर ग्राम बांधी में पराशर ऋषि का भंडार है।