
धर्म। अध्यात्म / पोल खोल न्यूज डेस्क
अकसर भगवान को 56 भोग लगाने की बात भजन कीर्तन और सत्संग में सुनने को मिलती है। क्या है ये 56 भोग? जब भगवान केवल भावना के भूखे होते हैं तो ये 56 भोग कौन खाता है? आइए इन सवालों के जबाव तलाशते हैं इस आलेख में….
इस आलेख को क्यों पढ़ें
* 56 भोग के पीछे की मान्यता क्या है?
* श्रीकृष्ण को कितने पहर भोजन कराती थीं मां यशोदा?
* गोवर्धन पर्वत से कैसे जुड़ी है भोग की कथा?
* 56 भोग में कौन-कौन से पकवान आते हैं?
त्योहार हो या कोई पूजा, भगवान को भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है। कोई मिठाई का भोग लगाता है, तो कोई पंचामृत का। कुछ लोग घी, शक्कर या फल का भी भोग लगाते हैं। जो लोग घरों में ठाकुरजी की सेवा करते हैं, वे नियमित साफ़-सफाई से तैयार भोजन का भोग लगाते हैं। लेकिन, ख़ास मौकों पर लगाया जाने वाला भोग भी ख़ास होता है। तब एक-दो नहीं, अर्पित किए जाते हैं पूरे 56 भोग। लेकिन, आखिर भगवान को 56 प्रकार के भोग ही क्यों लगाए जाते हैं, एक भी कम या ज़्यादा क्यों नहीं? भगवान 56 प्रकार के भोग से ही प्रसन्न होते हैं?
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भगवान कृष्ण दिन में करते हैं आठ पहर भोजन
इन सभी सवालों के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं। जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है, वह है मां यशोदा और कन्हैया के प्रेम में पगी हुई। मान्यता है कि माता यशोदा द्वापर युग में कान्हा को बचपन में एक दिन में आठ पहर भोजन कराती थीं, यानी कृष्ण आठ बार भोजन करते थे। एक बार ब्रज में देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जा रही थी। कान्हा ने पूछा, ‘इंद्र को खुश करने के लिए उनकी पूजा क्यों? पानी बरसाना तो मेघों का काम है, ऐसे में इंद्र की पूजा क्यों? पूजा करनी है तो गोवर्धन पर्वत की करें, जो बिना किसी फल की इच्छा किए पूरे ब्रज के पशुओं का पेट भरते हैं।’
इंद्र हुए नाराज
कन्हैया के समझाने पर ब्रजवासियों ने देवराज की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। यह देख इंद्र नाराज़ हो गए और बृज में बारिश शुरू कर दी। पूरा ब्रज डूबने लगा, तो लोग कन्हैया के पास पहुंचे। तब कृष्ण ने कहा कि आपने जिन गोवर्धन की पूजा की है, अब वही रक्षा करेंगे। यह कह कर उन्होंने गोवर्धन पर्वत एक उंगली पर उठा लिया। ब्रजवासी उसके नीचे आ गए।
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दिन में आठ बार भोजन करने वाले श्रीकृष्ण लगातार सात दिन बिना अन्न-जल के रहे
भगवान सात दिनों तक अपनी उंगली पर पर्वत उठाए रहे। इस दौरान उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। इंद्र का अहंकार टूटा और आठवें दिन उन्होंने बरसात रोक दी। दिन में आठ बार भोजन करने वाले श्रीकृष्ण लगातार सात दिन बिना अन्न-जल के रहे। बारिश रुकने के बाद माता यशोदा और ब्रजवासियों ने सात दिन और आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन श्रीकृष्ण के लिए बनाए। ऐसा कहा जाता है कि भगवान को 56 भोग लगाने की परंपरा यहीं से शुरू हुई।
यह भी है मान्यता
मान्यताओं के अनुसार एक और कथा 56 भोग की परंपरा से जुड़ी बताई जाती है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उसकी तीन परतों में 56 पंखुड़ियां होती हैं। हर पंखुड़ी पर एक सखी और बीच में भगवान का वास होता है, इसलिए 56 भोग लगाया जाता है।
मां कात्यायनी से जुड़ी कथा
वहीं, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि गोपियों ने पूरे महीने ब्रह्म मुहूर्त में यमुना स्नान किया और मां कात्यायनी से कृष्ण को वर के रूप में पाने की मन्नत मांगी। उद्यापन में मां कात्यायनी को 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए गए। इसी के बाद से 56 भोग लगाने की प्रथा शुरू हुई।
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56 भोग में 20 तरह के मिष्ठान, 20 मेवे और 16 नमकीन
अब जानते हैं कि भगवान को इस 56 भोग में क्या-क्या अर्पित किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार 56 भोग में 20 तरह के मिष्ठान, 20 मेवे और 16 नमकीन होती हैं। ये सब कृष्ण को प्रिय बताए जाते हैं। भगवान को लगने वाले छप्पन भोग में भक्त (भात), सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टाश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चंद्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढ़या (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत, हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका, पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल शामिल हैं।
प्रभु तो भाव के भूखे
हालांकि कहा जाता है कि प्रभु भाव के भूखे होते हैं। उन्हें क्षमता के अनुसार कुछ भी अर्पित किया जाए, तो वह खुशी से स्वीकार कर लेते हैं। वैसे सिर्फ ख़ास मौकों पर 56 भोग ही नहीं, नियमित पूजन में भी भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष विधान है। मंदिरों में भगवान कृष्ण की सेवा दिन में आठ बार की जाती है। इसे अष्टयाम सेवा कहते हैं।
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24 घंटे में आठ प्रहर
कन्हैया को मां यशोदा दिन के आठों प्रहर भोजन कराती थीं, उसी तरह कृष्ण पूजा में अष्टयाम सेवा का विधान बना। दिन के 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं। इन्हीं आठों प्रहर में भगवान की सेवा की जाती है। आठ प्रहरों में की जाने वाली अष्टयाम सेवा है – मंगला, शृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती और शयन। इसमें हर पहर भगवान को भोग लगाने की परंपरा है।
नोट : आलेख में वर्णित संदर्भ पौराणिक कथाओं में उल्लेखित है। पोल खोल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता।