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आचार संहिता की आड़ में मेले में प्रशासन की मनमानी… संदीप सांख्यान
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मेले आपसी मेल जोल और सद्भाव का प्रतीक है न कि प्रसाशनिक हेकड़ी का… संदीप सांख्यान
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मेले में प्रसाशन की ठसक ज्यादा थी प्रतिष्ठावान लोंगो को किया गया दरकिनार… संदीप सांख्यान
पोल खोल न्यूज़ | हमीरपुर
मेला शब्द ही मेल से बना है तो मेल में एक दूसरे का परस्पर सहयोग होना आवश्यक है। जनतंत्र में मेले अहम भूमिका निभाते हैं यदि इनमें समाज के हर वर्ग की सहभागिता का समावेश हो। बिलासपुर जनपद के गौरवमयी इतिहास में यहां की नलवाड़ी का अपना एक अलग रूतबा है। लेकिन जिस हिसाब से मेले का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है उससे प्रतीत होता है कि आने वाले समय में यह सिर्फ और सिर्फ औपचारिकता ही बन कर रह जाएगा। क्योंकि नलवाड़ी का मतलब पशुओं से होता है लेकिन शर्म की बात है कि नलवाड़ी मेले के शुभारंभ पर पूजन के लिए बैलों की जोड़ी भी किराया देकर मंगवाई जाती है। प्रशासनिक हाथों में जब तक यह मेला रहेगा तो स्तर का गर्त में जाना स्वाभाविक है। इसमें जिला व शहर के बुजुर्गों और बुद्धिजीवियों का सहयोग लेना नितांत आवश्यक है। यह बात हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस प्रवक्ता संदीप सांख्यान ने जारी बयान में कही। उन्होंने कहा कि नलवाड़ी मेला कहलूर संस्कृति का द्योतक है और यह मेला प्रशासन ने आचार संहिता की आड़ में अपने अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए अति विशिष्ठ बना कर रख दिया।
जिन्हें आवाज उठानी चाहिए वे दरबारी की भूमिका में है। उन्होंने कहा कि मेला 17 मार्च को शुरू हुआ था और आचार संहिता 16 मार्च को लग गई जिसके कारण मेले में किसी भी राजनैतिक नेता की भूमिका संभव नहीं हो सकी। लेकिन इससे पहले भी जिला प्रशासन ने इस बारे में कोई रायशुमारी नहीं की। यही कारण है कि सोशिल मीडिया पर बुद्धिजीवी लोग जमकर भड़ास निकाल रहे हैं। मेले की तैयारियां काफी पहले से शुरू हो जाती हैं लेकिन जिला प्रशासन ने मेले को लेकर न तो कोई मेला कमेटी की बैठक बुलाई और ही किसी राजनैतिक व्यक्ति और किसी विशिष्ठ व्यक्ति या बुद्धिजीवी वर्ग से मेले को लेकर कोई चर्चा की। बिलासपुर प्रशासन को पड़ोसी जिला मंडी से कुछ सीख लेनी चाहिए जहां पर शत प्रतिशत भागीदारी स्थानीय लोग और जिलावासियों द्वारा निभाई जाती है। बिलासपुर में मेले की जगह करीब सवा करोड़ किसी एक ठेकेदार को देकर भले ही प्रशासन अपनी पीठ थपथपा रहा हो लेकिन उन्हें यह भी इलम होना चाहिए कि यह पैसा बिलासपुर की जनता की जेब से निकलेगा।
अधिकारी कुछ समय के लिए अपनी डयूटी पूर्ण कर आगे को प्रस्थान करते हैं लेकिन इस प्रकार की परंपराएं मेले को समाप्ति की ओर ले जाती हैं। संदीप सांख्यान ने कहा कि मेले जिला के किसी भी विशिष्ट व्यक्ति कोई अहमियत नही दी गई। उन्होंने कहा कि प्रशासन का काम था कि जनहित में कहलूर जनपद की संस्कृति को समझते और उसके अनुसार मेले का आयोजन करवाते, बेशक आचार संहिता थी लेकिन प्रसाशन ने ऐसी कोई भी जहमत नही उठाई। उन्होंने कहा कि प्रसाशन तो जिला में बदलता रहता है लेकिन नलवाडी मेला तो हर वर्ष कहलूर जनपद की संस्कृति को दर्शाता है और 17 से 23 मार्च तक हर वर्ष होता है। प्रसाशनिक अधिकारियों में इतनी भी समझ नहीं थी कि मेले के आगाज ले लेकर अंजाम तक कौन कौन सी व्यवस्थाएं की जाती है। संदीप सांख्यान ने कहा कि मेले में हर वस्तु का दाम तीन गुना तक बढ़ा दिया गया जिसका खामियाजा आमलोगों को भुगतना पड़ा। मेले में धूल मिट्टी से निपटने के लिए पानी के छिड़काव की कोई व्यवस्था नही की गई थी और स्वच्छ जल पिलाने के लिए आम लोंगो के लिए कोई व्यवस्था नहीं कि गई थी।

आचार सहिंता की आड़ में मेले के रात्रि कार्यक्रम भी प्रसाशनिक अधिकारियों और उनके परिवारिक सदस्यों के नाम की भेंट चढ़ गए। मेले में जिला के बुद्धिजीवी वर्ग और प्रीतिष्ठत वर्ग की जमकर अनदेखी हुई है। मेले में तैनात सुरक्षा कर्मी भी शरेआम आमलोंगो से बदसलूकी करते हुए देखे गए वह सीधे तौर पर वीआईपी ड्यूटी का हवाला देते नजर आए। संदीप सांख्यान ने कहा कि मेले सबके होते है और सबके लिए होते हैं और मेले आपसी तालमेल और मेल मिलाप और सद्भाव का प्रतीक होते हैं लेकिन इस बार का नलवाडी मेला आमजन का मेला न होकर प्रशासनिक मेला बन कर रह गया था और प्रशासन ने भी आचार संहिता के नाम पर अपनी पूरी हेकड़ी मेले में दिखाई है जो कहलूर की रिवायत के खिलाफ है। संदीप सांख्यान ने कहा कि वे इस बारे में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू को अवश्य अवगत करवाएंगे, क्योंकि अधिकारी तय प्रक्रिया के अनुसार आते जाते रहेंगे, नलवाड़ी मेला था, है और सदैव रहेगा।



