Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
भीमाकली मंदिर/रामपुर(शिमला)
हिमाचल प्रदेश के सराहन में भीमाकली मंदिर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक भीमाकली मंदिर पवित्र स्थल है। यह मंदिर रामपुर बुशहर से करीब 30 किलोमीटर दूर सराहन में बुशहर राजवंश की कुलदेवी को समर्पित है। काली माता का प्राचिन मंदिर अपने अंदर सुंदरता समेटे हुए है। इसके साथ ही सराहन शहर की खुबसूरत पहाड़ियों में अपनी अनुठी शैली से बना यह मंदिर अपने अंदर शांति और सुकून का आभास करवाता है। काली माता का यह विख्यात और प्राचीन मंदिर करीब 1000 से 2000 वर्ष पुराना मंदिर है।
लगभग 800 साल पुराना है यह मंदिर
भीमाकाली का मंदिर करीब लगभग 800 साल पहले बनाया गया माना जाता है। यह अपनी अनूठी वास्तुकला और मिश्रण शैली के लिए जाना जाता है। अब यह पुराना मंदिर सुबह और शाम में कर्मकांडों या आरती के समय को छोड़कर जनता के देखने के लिए बंद रहता है। मंदिर परिसर के भीतर एक नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। मंदिर में देवी भीमाकली की एक मूर्ति को एक कुंवारी और एक औरत के रूप में चित्रित निहित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू देवता शिव की पत्नी सती, वैवाहिक जीवन के परम सुख और दीर्घायु की देवी का बायां कान इस जगह गिर गया था।
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पौराणिक कथा
सराहन से जुड़ी दंतकथा भीमाकाली से पूर्व की है। ऐसा कहा जाता है कि बाली पुत्र बाणासुर इस क्षेत्र का शासक था। उसकी पुत्री उषा भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से, प्रत्यक्ष देखे बिना ही प्रेम करने लगी थी। उषा ने अनिरुद्ध को अपने स्वप्न में देखा था तथा तब से उसे अपने हृदय में बसा लिया था। उसने अपनी सखी चित्रलेखा को इस विषय में बताया। उषा द्वारा दी गई जानकारी से सखी चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का चित्र रेखांकित किया तथा अपनी सखी के लिए उसे खोजने निकल पड़ी। वह अनिरुद्ध को खोजकर उसे निद्रामग्न अवस्था में ही उठाकर सराहन ले आयी। यह ज्ञात होते ही श्रीकृष्ण ने बाणासुर से युद्ध की घोषणा कर दी। अंत भला तो सब भला, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए, अंत में उषा एवं अनिरुद्ध का विवाह संपन्न हुआ। ऐसा माना जाता है कि तब से निरंतर उन्ही के वंशज इस क्षेत्र में शासन करते आ रहे थे। किन्तु 20वीं सदी में भारत के स्वतन्त्र होते ही सराहन के साथ साथ देश के सभी क्षेत्रों की राजशाही समाप्त कर दी गई।
चाँदी के उत्कीर्णित द्वार एवं प्रतिमाएं
कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य मंदिर के परिसर पहुँचते हैं। परिसर का प्रवेश द्वार चाँदी का है जो उत्कृष्ट नक्काशी से ओतप्रोत है। द्वार का चौखट भी चाँदी का है जो प्रवेशद्वार से भी उत्कृष्ट उत्कीर्णित है। प्रवेशद्वार पर देवी-देवताओं की आकृतियों के साथ देवनागरी व गुरुमुखी लिपी में उत्कीर्णित अभिलेख हैं। गुरुमुखी लिपी के अभिलेख देख मैं स्तब्ध हो गयी थी किन्तु कुछ क्षण पश्चात मुझे स्मरण हुआ कि प्राचीन काल में यह प्रान्त विशाल पंजाब राज्य का ही भाग था। यहाँ पंजाबी भाषा भी प्रचुर मात्रा में बोली जाती है।
कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर के प्रवेशद्वार तक पहुंचते हैं। भीतर जाते ही एक प्रांगण है जहां से मंदिर के प्रथम दर्शन प्राप्त होते हैं। आगे जाकर एक अन्य प्रांगण के भीतर पहुँचते हैं जहाँ से एक ऊँचे मंदिर का प्रथम दृश्य प्राप्त होता है। पुनः कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर एक अन्य द्वार तक पहुँचते हैं जिसका रक्षण देवी के वाहन, दो सिंह करते हैं। अब आप मुख्य मंदिर में प्रवेश करते हैं।
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भीमाकाली मंदिर की कथा
भीमाकाली से सम्बंधित कथा सती की कथा से जुड़ी हुई है। सती प्रजापति दक्ष की पुत्री एवं भगवान शिव की पत्नी थी। प्रजापति दक्ष ने अपने एक महत्वपूर्ण यज्ञ समारोह में सभी को आमंत्रित किया था किन्तु भगवान शिव से वैमनस्य के कारण उन्हें एवं सती को आमंत्रण नहीं भेजा। सती के वहां पहुँचने पर दक्ष ने उनके समक्ष भगवान शिव का घोर अनादर किया एवं खरी-खोटी सुनाई। पति का अपमान सहन ना कर पाने के कारण उन्होंने वहीं यज्ञ कुण्ड की अग्नि में स्वयं की आहुति दे दी। इसका आभास होते ही भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए तथा देवी सती की पार्थिव देह को उठाकर तांडव नृत्य करने लगे। उनका क्रोध शांत करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती का पार्थिव देह विच्छेदित कर दिया। जहाँ जहाँ देवी की देह के भाग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई जो दैवी देवी-उर्जा के केंद्र माने जाते हैं। भारत उपमहाद्वीप में 51 ऐसे शक्ति पीठ हैं। भीमाकाली को उन्ही शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का बायां कान गिरा था। इसके अलावा पुराणों व अन्य धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान शिव यहां ध्यान, साधना किया करते थे। इसलिए इस जगह का पौराणिक ग्रंथों में शौणितपुर नगरी या शायनत नगरी के रूप में उल्लेख है। भगवान शिव के प्रबल भक्त बाणासुर, पुराण युग के दौरान दानव राजा बाली और विष्णु भक्त प्रह्वाद के महान पौत्र के सौ पुत्रों में से एक इस रियासत के शासक थे।
देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु
भीमाकाली न्यास सराहन रामपुर के पुजारी पूर्ण शर्मा का कहना है सराहन भीमाकाली मंदिर में नवरात्र के दौरान देश-विदेश से कई श्रद्धालु माथा टेकने पहुंचते हैं। प्रशासन की ओर से जारी आदेश के तहत श्रद्धालुओं के लिए परिसर में हर सुविधा का ध्यान रखा गया है। माता के दर्शन के लिए गर्भगृह में थोड़ी-थोड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को भेजा जा रहा है, ताकि मंदिर में अधिक भीड़ न हो।