गया में क्यों दिया जाता है पिंडदान, जाने बोध गया में श्राद्ध करने का महत्व
पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर
वैसे तो पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए भारत में कई जगहें हैं लेकिन फल्गु नदी के तट पर स्थित गया शहर का अपना विशेष महत्व है। वहीं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या के दिन गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली कहा जाता है। पुराणों में बताया गया है कि प्राचीन शहर गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। आइए जाते हैं गया में पिंडदान का क्या महत्व है…
गया में पिंडदान और श्राद्ध का महत्व
बता दें कि देशभर में श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि माना गया है। गया में श्राद्ध कर्म, तर्पण विधि और पिंडदान करने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है और यहां से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गया का महत्व इसी से पता चलता है कि फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए यहीं पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया था। साथ ही महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था।
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पुराणों में मिलता है इस तीर्थ का जिक्र
वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी गया शहर का महत्व बताया गया है। इस तीर्थ पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए गया को मोक्ष की भूमि अर्थात मोक्ष स्थली कहा जाता है। गया शहर में हर साल पितृपक्ष के दौरान एक बार मेला लगता है, जिसे पितृपक्ष का मेला भी कहा जाता है। गया शहर हिंदुओं के साथ साथ बौद्ध धर्म के लिए भी पवित्र स्थल है। बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि भी कहा जाता है। यहां पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने अपनी शैली में यहां कई मंदिरों का निर्माण करवाया है।
गया तीर्थ को लेकर पौराणिक कथा
गयासुर नामक एक असुर ने कड़ी तपस्या की थी और ब्रह्माजी से वरदान मांगा था। गयासुर ने ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन कर पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के बाद लोगों में भय खत्म हो गया और पाप करने लगे। पाप करने के बाद वह गयासुर के दर्शन करते और पाप मुक्त हो जाते थे। ऐसा होने स स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा। बड़े बड़े पापी भी स्वर्ग पहुंचने लगे।
गदाधर के रूप में विराजमान हैं भगवान विष्णु
इन सबसे बचने के लिए देवतागण गयासुर के पास पहुंचे और यज्ञ के लिए पवित्र स्थान की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर ही देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया और कहा कि आप मेरे ऊपर ही यज्ञ करें। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया और यही पांच कोस आगे चलकर गया बन गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से वह स्थान तीर्थ के रूप में जाना गया। गया में पहले विविध नामों से 360 वेदियां थी लेकिन अब केवल 48 ही शेष बची हैं। गया में भगवान विष्णु गदाधर के रूप में विराजमान हैं। गयासुर के विशुद्ध शरीर में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह निवास करते हैं। इसलिए पिंडदान व श्राद्ध कर्म के लिए इस स्थान को उत्तम माना गया है।