
दियोटसिद्ध में भरे रोट के सैंपल फेल, लैब की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
पोल खोल न्यूज़ | हमीरपुर
उत्तर भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ दियोटसिद्ध से लिया गया रोट का सैंपल फेल हो गया है। जांच में पाया गया है कि स्वास्थ्य की गुणवत्ता के दृष्टिगत यह रोट खाने लायक नहीं है। कुछ महीने पहले ही जिला खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से रोड के सैंपल जांच के लिए कंडाघाट लैब भेजे गए थे। लैब से प्राप्त हुई रिपोर्ट में सैंपल फेल पाया गया है। ऐसे में अब महकमा आगामी कार्रवाई अमल में लेगा।
बाबा बालक नाथ मंदिर में चढ़ाए जाने वाले रोट की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे थे। इसके बाद खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने रोड के सैंपल कलेक्ट कर जांच के लिए कंडाघाट लैब भेजे थे। बता दें यहां पर रोट के प्रसाद को बनाकर कई दिनों तक रखा जाता है। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि जो सैंपल फेल हुआ है वह रोट खाने लायक नहीं था, एक तरफ से इसे बासी रोट कहा जा सकता है।
असिस्टेंट कमीश्रर फूड एंड सेफ्टी अनिल शर्मा ने बताया हमारी टीम ने दियोटसिद्ध में रोट के जो सैंपल भरे थे उसकी रिपोर्ट आ गई है। कंडाघाट लैब से आई रिपोर्ट में यह सैंपल फेल पाए गए हैं। सरकार की गाइडलाइन के नियम के अनुसार विभाग की ओर से कार्रवाई की जाएगी।
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गौरतलब है कि बाबा बालक नाथ जी का मंदिर हिमाचल, पंजाब समेत कई राज्यों यहां तक कि विदेशों में बसे बाबा के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र है। यहां हर साल एक महीने तक लगने वाले चैत्र महीने के अलावा पूरा साल भक्तों का मंदिर में आना लगा रहता है। रविवार को अन्य दिनों की अपेक्षा काफी संख्या में बाबा के भक्त यहां पहुंचते हैं और रोट प्रसाद के रूप में पौणाहारी को अर्पित किया जाता है जिसे बाद बाबा के भक्त खुद भी खाते हैं और अपने घरों के लिए भी लेकर जाते हैं।
तिरुपति बाला जी मंदिर के प्रसाद का मामला विवादों में आने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि प्रसाद की गुणवत्ता के मानक आखिर क्या तय किए गए हैं और क्या होने चाहिए। दुकानदारों की मानें तो मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाने वाला रोट एक महीने तक खराब नहीं होता बशर्ते उसमें पानी ना लगे। बरसात के मौसम में इसे नमी से बचाना होता है। वैसे ज्यादातर रोट ताजे बनाकर ही बेचे जाते हैं। यह दुकानदारों का अपना तर्क है साइंटिफिक रूप से इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है।