
हिमाचल : जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेत, ऊंचाई की ओर से खिसक रहे पौधे
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेत स्पष्ट रूप से देखे जाने लगे हैं। जहां एक ओर पेड़-पौधे अब ऊंचाई की ओर खिसक रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। ग्लेशियरों के पिघलने से इनके आसपास और राज्य की नदियों के कैचमेंट क्षेत्रों में सैकड़ों नई झीलें बन गई हैं। नदियों और हवा की गुणवत्ता भी खतरनाक स्तर तक गिर रही है। इन सभी बदलावों के पीछे मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिंग, अनियंत्रित शहरीकरण, वाहनों की संख्या में इजाफा और वन कटान को माना जा रहा है।
बता दें कि हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के ताजा अध्ययनों के अनुसार पिछले कुछ दशकों में देवदार, नीला चीड़, बुरांस और हिमालयी फर जैसी प्रजातियां 100 से लेकर 1000 मीटर तक ऊंचाई की ओर खिसक चुकी हैं। यह अब परंपरागत बेल्ट में नहीं उग पा रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार हर दशक में औसतन 20 से 25 मीटर की ऊंचाई में यह बदलाव दर्ज किया जा रहा है। देवदार अब 3000 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच चुका है। बान, ओक और चीड़ जैसी प्रजातियां निचले व मध्यवर्ती ऊंचाई के जंगलों में समा रही हैं। संस्थान के जैव वैज्ञानिक डॉ. विनीत जिस्टू ने बताया कि लगातार हो रहे पर्यावरण के बदलाव से हिमालय की प्रजातियों पर असर पड़ रहा है। बढ़ते तापमान के कारण ठंडे क्षेत्रों के पेड़-पौधों को उगने के लिए कम जगह मिल रही है और उनकी तादाद कम हो रही है।
वहीं, मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1990-2000 के दशक में शिमला में औसतन 129.1 सेमी बर्फबारी होती थी, जो 2010-2020 में घटकर 80.3 सेमी रह गई। बीते तीन सर्दियों में यह आंकड़ा दहाई के अंक को भी पार नहीं कर पाया। 2022-23 में मात्र 6 सेमी, 2023-24 में 7 सेमी और 2024-25 के इस सीजन में अब तक केवल 9.5 सेमी बर्फ गिरी है। मौसम विभाग के वैज्ञानिक अधिकारी संदीप शर्मा ने बताया कि तापमान में बढ़ोतरी से मौसम चक्र में बदलाव हो रहा है। कभी बहुत बर्फ पड़ रही है। कभी बिल्कुल नहीं।
राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र शिमला की जारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2022 की तुलना में 2023 में सतलुज कैचमेंट क्षेत्र में झीलों की संख्या 414 से बढ़कर 466 हो गई है। उपग्रह आंकड़ों के अनुसार यह सभी झीलें ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण बनी हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये झीलें भविष्य में बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं का कारण बन सकती हैं। हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद केे संयुक्त सदस्य सचिव डॉ. सुरेश अत्री ने बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उसके साथ-साथ सतलुज और दूसरी नदियों के जलस्तर में भी बढ़ोतरी हो रही है, वहीं ऊपरी इलाकों में इससे शुष्क क्षेत्र बन रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे यह समस्या और भीषण होती जाएगी।
प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार ब्यास, सिरसा, गिरि और अश्विनी खड्ड सहित कई प्रमुख नदियों की जल गुणवत्ता सी श्रेणी में आ गई है। सिरसा नदी में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर कई गुना बढ़ चुका है। कुल 210.5 मिलियन लीटर प्रतिदिन गंदा पानी उत्पन्न हो रहा है, जबकि शोधन क्षमता केवल 119.5 मिलियन लीटर है। इसके चलते 129.7 मिलियन लीटर गंदा पानी प्रतिदिन बिना शोधन के नदियों में बहाया जा रहा है।