
प्रकृति और ममता का संगम: टौणी देवी में भावनात्मक पौधारोपण अभियान
रजनीश शर्मा | हमीरपुर
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला टौणी देवी में विश्व पर्यावरण दिवस 2025 के उपलक्ष्य में एक अनूठा और भावनात्मक पौधारोपण अभियान आयोजित किया गया जिसका नाम था “एक पेड़ माँ के नाम” इस अभियान में स्काउट-गाइड, राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवियों एवं मयूर इको क्लब के विद्यार्थियों ने अपने-अपने घरों में अपनी माताओं के नाम पर पौधे लगाकर प्रकृति और ममता के अद्वितीय संगम को साकार किया।
विद्यालय के प्रधानाचार्य रजनीश रांगड़ा ने जानकारी दी कि ग्रीष्मकालीन अवकाश के कारण पर्यावरण दिवस की मुख्य गतिविधियाँ जैसे जागरूकता रैली, पेंटिंग प्रतियोगिता, नारा लेखन और वाद-विवाद कार्यक्रम 10 जून को आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने इस अभिनव अभियान को विद्यार्थियों के अंतर्मन से जोड़ने वाला बताते हुए कहा कि “एक पेड़ माँ के नाम” केवल एक पर्यावरणीय कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह एक आत्मीय संवाद है जोकि माँ और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है । जब कोई बच्चा अपनी माँ के नाम पर एक पौधा लगाता है, तो वह पौधा केवल हरा उपवन नहीं, बल्कि वह एक जीवंत स्मृति, एक दायित्व और एक भावनात्मक बंधन बन जाता है। यही भावनात्मक जुड़ाव पर्यावरणीय चेतना को स्थायित्व देता है और जीवनशैली में हरियाली के प्रति प्रतिबद्धता पैदा करता है।इस वर्ष का पर्यावरण दिवस “प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” विषय को समर्पित है जो आज की सबसे गंभीर वैश्विक समस्याओं में से एक है।
प्लास्टिक हमारे महासागरों, नदियों, खेतों और यहां तक कि हमारे शरीर तक में प्रवेश कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में हर वर्ष लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से बहुत थोड़ी मात्रा ही पुनर्चक्रित हो पाती है। शेष प्लास्टिक प्रकृति की कोख में ज़हर घोलता रहता है जिससे पृथ्वी की जीवनशक्ति क्षीण होती जा रही है।
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उन्होंने अपने संदेश में स्विट्ज़रलैंड के ब्लैटन गाँव की हालिया त्रासदी का भी उल्लेख किया, जहाँ 28 मई 2025 को बिर्च ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर गाँव पर गिरा, जिससे अत्यधिक तबाही हुई। वैज्ञानिकों की त्वरित चेतावनी और तकनीकी सहायता से लगभग 300 लोगों की जान बचा ली गई, परंतु यह घटना पूरे मानव समाज के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन अब एक सैद्धांतिक चर्चा नहीं, बल्कि हमारे जीवन की ज्वलंत सच्चाई बन चुका है। यह विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों के लिए गंभीर चेतावनी है, जहाँ प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने वाली मानवीय गतिविधियाँ आपदाओं की संभावनाओं को तेज़ कर रही हैं। इस अभियान में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का उत्साह देखते ही बनता था। कई विद्यार्थियों ने अपने पौधों को नाम भी दिए जिनमें ममता, वात्सल्य, प्रकृति और आशा जैसे भावनात्मक नाम शामिल थे। छात्रा रिद्धिमा ने अपने पौधे को “ममता” नाम दिया और कहा कि वह उसकी देखभाल उसी स्नेह से करेंगी जैसे उनकी माँ ने बचपन में उनकी की थी। वहीं छात्र प्रज्ञान ने भावुकता से कहा, “माँ और पेड़ दोनों हमें जीवन देते हैं, इनकी सेवा करना हमारा धर्म है”यह कार्यक्रम केवल पौधे रोपने की क्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक आत्मिक अनुभव, एक सामाजिक संदेश और एक नैतिक शिक्षा भी था।
जब बच्चे किसी कार्य को अपने हृदय से अपनाते हैं, तो उसका प्रभाव केवल वर्तमान पर नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों पर भी पड़ता है। “एक पेड़ माँ के नाम” एक ऐसा बीज है, जो संवेदना, जागरूकता और जिम्मेदारी के वृक्ष में परिणत होगा।विद्यालय परिवार ने यह संकल्प लिया है कि इस प्रकार की गतिविधियाँ नियमित रूप से आयोजित की जाएंगी और पर्यावरण संरक्षण को विद्यालयी संस्कृति का अभिन्न अंग बनाया जाएगा। यह संदेश प्रत्येक नागरिक के लिए है कि धरती हमारी माँ है, और इसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य।