
पांडवों के पदचिन्हों से जुड़ा — गसोता महादेव मंदिर : आस्था, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम
गसोता महादेव: जहां धरती से फूटा शिवलिंग, वहीं बसा आस्था का अमर धाम
400 वर्षों पुराना मंदिर, चमत्कारों से जुड़ी लोककथाएं, पांडवों का अज्ञातवास और अब भी बहता पवित्र जलस्रोत
पोल खोल न्यूज़ | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश
हमीरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है – गसोता, जो आज एक आध्यात्मिक तीर्थ के रूप में पूरी तरह प्रसिद्ध है। यहां स्थित है गसोता महादेव मंदिर, जो न सिर्फ ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा है, बल्कि आज भी लोगों की अडिग आस्था और चमत्कारिक अनुभवों का केन्द्र बना हुआ है।
खेत से निकली शिवलिंग, बहा खून, और शुरू हुआ चमत्कारों का सिलसिला
कहते हैं, कई सौ साल पहले एक किसान खेत जोत रहा था, तभी उसका हल किसी कठोर वस्तु से टकराया। अचानक वहाँ से खून की धार निकलने लगी। जब खुदाई की गई, तो वहां से भगवान शिव की स्वयंभू पिंडी (शिवलिंग) प्रकट हुई। उसी रात किसान की दृष्टि चली गई और सपना आया – जिसमें भगवान शिव ने उसे मंदिर बनाने का आदेश दिया।
ग्रामीणों ने उस पिंडी को पालकी में रखकर दूसरे गांव ले जाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वे गसोता गाँव के पास पहुँचे, पिंडी का वजन इतना बढ़ गया कि उसे उठाना संभव नहीं रहा। इसे ईश्वरीय संकेत मानकर उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर दी गई।
जब बारिश के लिए पुकारा जाता है गसोता महादेव
यह मंदिर “वर्षा देवता” के रूप में भी जाना जाता है। परंपरा के अनुसार जब इलाके में बारिश नहीं होती, तो श्रद्धालु धोती और पानी से भरा घड़ा लेकर मंदिर पहुंचते हैं। जल चढ़ाने के बाद यदि डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित भोलेनाथ के चरणों से जल की धारा फूट पड़े, तो यह पक्की निशानी मानी जाती है कि जल्द ही वर्षा होगी। यह परंपरा आज भी जीवित है।
पांडवों का भी है इस भूमि से जुड़ाव
मान्यता है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र में आए थे। भीम ने यहां गायें पालीं, और जब सूखा पड़ा तो उन्होंने अपनी गदा से ज़मीन पर प्रहार किया जिससे जल की धारा फूट पड़ी, जो आज भी मंदिर के पास बहती है।
पांडवों का अज्ञातवास और भीम की कथा
अज्ञातवास के दौरान पांडव उपयुक्त स्थान की तलाश में थे। इसी दौरान भीम एक गाँव पहुँचे जहाँ उन्होंने एक घराट (पानी से चलने वाली चक्की) चलाया। जब वे रात को ब्यास नदी से कूहल द्वारा पानी मोड़कर घराट की ओर ला रहे थे, तो उन्हें किसी के आने का आभास हुआ। उन्होंने सोचा कि सुबह हो गई है और तत्काल वहाँ का सारा सामान छोड़कर आगे बढ़ गए।
इसके बाद पांडव गसोता गाँव पहुँचे। यह स्थान जंगलों से घिरा हुआ था, जहाँ उन्होंने गायें पालनी शुरू कीं। एक बार सूखा पड़ने के कारण गायें भूख-प्यास से व्याकुल हो गईं। इस पर भीम ने अपनी गदा से ज़मीन पर प्रहार किया, जिससे जल की धारा फूट पड़ी — जो आज भी गसोता महादेव मंदिर परिसर में बहती है।
आस्था और शांति का धाम: गसोता महादेव मंदिर
गसोता महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जहाँ शिवलिंग स्वरूप में उनकी पूजा होती है। यह मंदिर भक्तों की श्रद्धा और मनोकामनाओं का केंद्र है। मान्यता है कि यहां पूजा व जलाभिषेक करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और मन की इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
प्रसिद्ध मेले
- नलबाड़ी पशु मेला:
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के सोमवार को यहाँ प्रसिद्ध गसोता नलबाड़ी मेला आयोजित किया जाता है। इसमें दूर-दराज़ से श्रद्धालु व व्यापारी आते हैं। मेला पशु व्यापार, लोक संस्कृति और भगवान शिव की भक्ति का अनूठा संगम है। - महाशिवरात्रि मेला:
यहाँ महाशिवरात्रि बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। मंदिर को सुंदर फूलों से सजाया जाता है। हिमाचल भर से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहाँ के स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों को शांति मिलती है।
मंदिर परिसर की विशेषताएँ
- अखंड धूना:
मंदिर में अखंड धूना वर्षों से प्रज्वलित है, जिसमें सुख-समृद्धि की कामना से लोग हवन व रुद्राभिषेक करवाते हैं, विशेषकर सावन माह में यहाँ जल चढ़ाने की परंपरा अत्यंत प्रचलित है। - गौशाला:
मंदिर में एक बड़ी गौशाला है, जहाँ छोड़ी गई गायों और बैलों को आश्रय दिया जाता है। श्रद्धालु घास, चारा, और नकद दान करते हैं। दूध बेचकर मंदिर की आमदनी होती है। - जल स्रोत:
यहाँ एक प्राचीन जल स्रोत है, जो अत्यंत स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। आसपास के गाँवों को पीने के पानी की आपूर्ति इसी स्रोत से होती है। - केले का बाग़:
मंदिर के पास एक विशाल केले का बाग़ है। यहाँ उगाए गए केले पूजा अर्पण के बाद श्रद्धालुओं में बांटे जाते हैं। यह बाग़ मंदिर परिसर को और भी मनोरम बनाता है। - साधुओं की समाधियाँ:
मंदिर क्षेत्र में कई पुरानी समाधियाँ स्थित हैं, जो यहाँ निवास कर चुके तपस्वी महात्माओं की हैं। - सुंदर पार्क:
मंदिर के निकट एक बच्चों के लिए पार्क भी बनाया गया है, जहाँ झूले लगे हैं। यह स्थान बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को सुकून प्रदान करता है।
प्रबंधन और यात्रा का उत्तम समय
गसोता महादेव मंदिर का प्रबंधन स्थानीय पंचायत द्वारा कुशलता से किया जाता है। मंदिर परिसर और वातावरण का नियमित रखरखाव सुनिश्चित किया जाता है। यहाँ यात्रा के लिए मार्च से जून का समय उपयुक्त है, जब हरियाली और शीतल जलवायु मन को आनंदित करती है।
हमीरपुर के पास स्थित गसोता गांव के महादेव मंदिर से जुड़ी यह पौराणिक कथा, चमत्कार और ऐतिहासिक महत्व की जानकारी, गसोता गांव निवासी व वर्तमान में IHM हमीरपुर में अध्यापन कर रहे परनीश पठानिया ने साझा की।
गसोता महादेव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह हिमाचली संस्कृति, पौराणिक इतिहास और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक है।