
रक्षाबंधन के बाद शुरू होगी हिमाचल की गोगा मंडली परंपरा, घर-घर गूंजेगी वीर गाथा
पोल खोल न्यूज़ | हमीरपुर/बिलासपुर/कांगड़ा
जैसे ही रक्षाबंधन का पर्व संपन्न होगा, हिमाचल प्रदेश की वादियों में एक खास धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का आगाज़ होगा — गोगा मंडली। यह परंपरा राखी के ठीक अगले दिन से शुरू होती है और नौमी तक यानी लगभग 8 दिनों तक चलती है।
गोगा मंडली में शामिल लोग गांव-गांव, घर-घर जाकर वीर गोगा जाहरवीर की गाथाएं सुनाते हैं। ढोलक, झांझ, थाली, डमरू जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर मंडली के सदस्य, जिन्हें ‘चेला’ और ‘बेटरी’ कहा जाता है, श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत होकर लोगों को देव गोगा की महिमा सुनाते हैं।
गोगा वीर को नागों के देवता माना जाता है और यह मान्यता है कि उनकी पूजा करने से सांप के डसने से रक्षा होती है, साथ ही परिवार पर कोई संकट नहीं आता।
ऐसे होती है शुरुआत
गोगा मंडली के सदस्य ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, रक्षाबंधन के बाद अलग-अलग गांवों में निकलते हैं। हाथ में गोगा का छत्र और गुफा का प्रतीक लिए वे हर घर के आंगन में जाकर कथा का गायन करते हैं। गांव वाले उन्हें स्वागत स्वरूप अनाज, चना, मिठाई, या धनराशि भेंट करते हैं।
गोगा की गाथा में होते हैं व्यंग्य और संदेश
मंडली केवल धार्मिक कथा ही नहीं सुनाती, बल्कि समाज पर कटाक्ष और व्यंग्य गीत भी गाती है — जिन्हें झेरा कहा जाता है। ये गीत ग्रामीणों का मनोरंजन करते हैं और समाज की बुराइयों पर तीखा वार भी करते हैं।
तीसरे दिन से शुरू होते हैं बड़े आयोजन
गोगा मंडली की कथा-यात्रा के अंत में कुछ स्थानों पर गोगा नवमी के अवसर पर तीन दिवसीय मेला भी लगता है। यहाँ कुश्ती (मल्ल), भजन-कीर्तन, झूले, देसी पकवान और हस्तशिल्प की दुकानें सजती हैं। लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है और ये मेला ग्राम संस्कृति, भक्ति और मेलजोल का प्रतीक बन जाता है।