
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
देव कमरुनाग जी/ मंडी
बड़ा देव कमरुनाग जी (अन्य नाम वीर बर्बरीक, श्री खाटू श्याम जी, बबरुभान जी) को हिमाचल प्रदेश के ज़िला मंडी में बारिश के देवता के रूप में जाना जाता है। कमरूनाग जी का मंदिर एक घने जंगल के बीच में मंडी के कामराह नामक गांव में स्थित है। इस स्थान पर हर साल 14 जून को तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। पौराणिक परंपरा के अनुसार भक्त अपनी श्रद्धा भाव से सोने-चांदी इत्यादी के आभूषण, सिक्के एवं पैसे का चढ़ावा एक छोटी सी झील में विसर्जित कर देवता को अर्पित करते हैं।
ये भी पढ़ें: Temple Of Himachal : तिब्बती पैगोडा शैली की वास्तुकला में निर्मित यह शानदार मंदिर
पौराणिक इतिहास
हिमालय में हर दूसरे मंदिर, शिखर और झील की तरह, इस स्थान की भी एक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कमरुनाग महाभारत के महान युद्ध में भाग लेना चाहते थे। ये धरती के सबसे शक्तिशाली योधा थे। लेकिन ये भगवान श्री कृष्ण जी की नीति से हार गए थे। इन्होने कहा था कि कोरवों और पांडवों में जिसकी सेना हारने लगेगी वे उसका साथ देंगे। लेकिन भगवान् श्री कृष्ण ये जानते थे कि इस तरह अगर इन्होने कोरवों का साथ दे दिया तो पाण्डव जीत नहीं पायेंगे।
श्री कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हे हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरुनाग जी ने एक ईछा जाहिर की कि वे महाभारत का युद्ध देखेंगे। इसलिए भगवान् कृष्ण ने इनके काटे हुए सिर को हिमालय के एक उंचे शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस तरफ इनका सिर घूमता वह सेना जीत की ओर बढ्ने लगती। तब भगवान कृष्ण जी ने सिर को एक पत्थर से बाँध कर इन्हे पांडवों की तरफ घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड कर एक झील बना दी। यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढ़ानें से मन्नत पूरी होती है।
ये भी पढ़ें: Temple Of Himachal : 500 वर्ष पुराना है माथी देवी का मंदिर
खुद कमरूनाग देवता करते हैं खजाने की रखवाली
मान्यता है कि कमरूनाग झील में सोना-चांदी और रुपए-पैसे चढ़ाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें पूरी होने के बाद अपनी आस्था के अनुसार सोने-चांदी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। समुद्रतल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में अरबों का खजाना है। जो कि पानी से बिल्कुल साफ झलकता है। लेकिन सुरक्षा की बात की जाए तो इसके लिए किसी भी तरह की कोई भी सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई है। मान्यता है कि इसकी रखवाली खुद कमरूनाग देवता करते हैं।
झील पैसों और सोना-चांदी से भरी तो रहती है, लेकिन ये सोना-चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओं का होता है। ये भी मान्यता है कि ये झील सीधे पाताल लोक तक जाती है। इस में देवताओं का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को कमरुनाग जी भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड जाती है।
ये भी पढ़ें: Temple Of Himachal : मां का अनोखा मंदिर, प्रतिमा से निकलता है पसीना
खजाने को चुराने का प्रयास करने वालों का हश्र
कहा जाता है कि एक बार एक आदमी ने झील से खजाने को चुराने का प्रयास किया। इसके लिए उसने झील के मुहाने पर छेद करके सारा पानी निकालने का प्रयास किया। कहा जाता है कि इस प्रयास में उसकी जान ही चली गई। इसके अलावा एक बार एक चोर ने झील से खजाने की चोरी का प्रयास किया। बाद में वह पकड़ा गया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद उसकी आंखें पूर्ण रूप से खराब हो गईं। पौराणिक मान्यता यह भी है कि झील में पड़ा खजाना पांडवों की संपत्ति है। जिसे उन्होंने कमरूनाग देवता को समर्पित कर दिया था।