
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन विभाग पर अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बेवजह मुकद्दमे बाजी के लिए मजबूर करने पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई। कोर्ट ने प्रधान मुख्य अरण्यपाल और करसोग वन मंडल के वन मंडल अधिकारी को कॉस्ट की राशि निजी तौर पर प्रार्थी नरसिंह दत्त को देने के आदेश दिए।
बताते चलें कि न्यायाधीश बीसी नेगी ने याचिका का निपटारा करते हुए वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अदालतों द्वारा व्यवस्थित कानून को वन विभाग ने अव्यवस्थित करने की कोशिश करते हुए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को उसके सेवा लाभों से 14 वर्षों तक वंचित रखा। इतना ही नहीं वन विभाग के आला अधिकारियों ने कानूनी जानकारी स्पष्ट होते हुए भी जानबूझ कर प्रार्थी से भेदभाव किया।
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14 साल लगातार ली दिहाड़ीदार सेवाएं
मामले के अनुसार प्रार्थी ने 240 दिन प्रतिवर्ष की दिहाड़ीदार सेवाओं के साथ 8 साल 1 जनवरी 2002 को पूरे कर लिए थे। इस कारण प्रार्थी 1 जनवरी 2002 से वर्क चार्ज स्टेट्स के लिए पात्र हो गया। वन विभाग ने उसे यह लाभ न देते हुए उससे 14 साल लगातार दिहाड़ीदार सेवाएं लेते हुए वर्ष 1 अप्रैल 2008 को नियमित किया। विभाग ने उसे 8 वर्ष का दिहाड़ीदार कार्यकाल पूरा करने के बाद वर्क चार्ज स्टेट्स देने से इंकार करते हुए कहा कि वन विभाग वर्क चार्ज संस्थान नहीं है। प्रार्थी का कहना था कि विभाग ने उसके जैसे अनेकों सहकर्मियों को 8 साल के कार्यकाल के बाद वर्क चार्ज स्टेट्स दिया है।
30 अप्रैल तक भरना होगा जुर्माना
हाईकोर्ट ने अपने अनेकों फैसलों में व्यवस्था दी है कि वर्क चार्ज स्टेट्स देने के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि संबंधित विभाग एक वर्क चार्ज संस्थान हो। इस व्यवस्थित कानून को दरकिनार करते हुए वन विभाग के आला अधिकारियों ने उसके प्रतिवेदन को खारिज कर दिया। जिस कारण वह पेंशन भी प्राप्त नहीं कर सका। कोर्ट ने प्रार्थी को दलीलों से सहमति व्यक्त करते हुए वन विभाग पर एक लाख रुपए हर्जाने लगाते हुए यह राशि 30 अप्रैल तक प्रार्थी को देने के आदेश दिए। कोर्ट ने वन विभाग को आदेश दिए कि वह प्रार्थी को 1 जनवरी 2002 से वर्कचार्ज अथवा नियमित करते हुए इससे उपजे सेवा लाभ और पेंशन साढ़े 7 फीसदी ब्याज सहित अदा करें।