
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
मां बगलामुखी/ बनखंडी (कांगड़ा)
हिमाचल प्रदेश के मंदिरों की मान्यता देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी है। जिला कांगड़ा के बनखंडी में स्थित मां बगलामुखी का द्वार देश-विदेश के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। कहा जाता है कि जो भी सच्चे दिल से मां बगलामुखी के इस पवित्र धाम में अपना शीश नवाता है, उसे मन चाहा फल मिल जाता है। कोर्ट-कचहरी, घर के वाद-विवाद, बिजनेस-नौकरी से जुड़ी परेशानियां आदि के मामलों से छुटकारा पाने के लिए शत्रु नाशिनी मां बगलामुखी की विशेष मान्यता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता था। रावण ने शत्रुओं का नाश कर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। लंका विजय के दौरान जब इस बात का पता भगवान श्रीराम को लगा तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। बगलामुखी का यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की थी। यहां सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम ने युद्ध में शक्तियां प्राप्त करने और मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की थी।
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ऐसे हुई थी मां बगलामुखी की उत्पत्ति
सृष्टि के रचयिता कहे जाने वाले भगवान ब्रह्मा का ग्रंथ एक राक्षस ने चुरा लिया। ग्रंथ चुराने के बाद राक्षस पाताल में जाकर छिप गया। राक्षस को वरदान प्राप्त था कि मानव और देवता उसे पानी में नहीं मार सकते। ऐसे में भगवान ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया और इससे मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुला का रूप धारण कर राक्षस का वध किया और भगवान ब्रह्मा को ग्रंथ वापस लौटा दिया।
आज भी बरकरार है मान्यता
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पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनवाया था और इसमें पूजा अर्चना की। त्रेता युग में मां बगलामुखी को रावण के इष्ट देवी के रूप में पूजा जाता था। रावण ने शत्रुओं का नाश करने के लिए मां बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। लंका विजय के बाद जब प्रभु श्री राम को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने भी मां बगलामुखी को की पूजा की थी। त्रेता युग से कलयुग तक मां बगलामुखी की मान्यता आज भी बरकरार है। मां बगलामुखी शत्रु का नाश कर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देती है।
पितांबरी देवी भी कहलाती हैं मां बगलामुखी
कहा जाता है कि मां हल्दी रंग के जल में प्रकट हुई थी। हल्दी के पीले रंग की वजह से उन्हें पितांबरी देवी भी कहा जाता है। मां को पीला रंग अति प्रिय है। इसलिए यहां पूजन के लिए पीली सामग्री का ही इस्तेमाल किया जाता है। यह मंदिर पूरे तरीके से पीले रंग का है।
प्रबंधन समिति
मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए व्यापक स्तर पर समस्त सुविधाएँ उपलब्ध करवाई गई हैं। लंगर के अतिरिक्त मंदिर परिसर में पेयजल, शौचालय, ठहरने की व्यवस्था तथा हवन इत्यादि करवाने का विशेष प्रबंध है।
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ऐसे पहुंचे बगलामुखी मंदिर
कांगड़ा शहर से बगलामुखी मंदिर की दूरी करीब 26 किलोमीटर है। अपने निजी वाहन में 40-45 मिनट में मंदिर पहुंचा जा सकता है। बस सुविधा भी यहां के लिए काफी रहती है। वहीं जिला ऊना से मंदिर की दूरी 80 किलोमीटर की है। इसके अलावा अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो गगल कांगड़ा तक चंडीगढ़ या दिल्ली से फ्लाइट लेकर आ सकते हैं। गगल से करीब 35 किलोमीटर सड़क मार्ग से जाना होगा। वहीं रेल मार्ग से भी पठानकोट से कांगड़ा या रानीताल तक ट्रेन मिलेगी। उसके बाद निजी वाहन या बस से जाना पड़ता है।