
कलंझड़ी माता मेले पर विशेष: 170 वर्ष पुराना है माता कलंझड़ी मेले का इतिहास, रांगड़ा परिवारों की कुल देवी है माता कलंझड़ी
रजनीश शर्मा । हमीरपुर
देवभूमि हिमाचल धार्मिक स्थलों और देवी-देवताओं के मंदिरों के लिए देश भर में प्रसिद्ध माना जाता है। हमीरपुर जिला में भी ऐसा ही एक प्रतिष्ठित मंदिर स्थापित है। जहां प्रदेशभर से लोग अपनी मनकोमना पूर्ण होने की मन्नतें करते हैं। हमीरपुर आवाहदेवी सड़क किनारे एनआईटी से तीन किलोमीटर दूर सराहकड़ गांव में माता कलंझड़ी देवी अधिष्ठात्री देवी के नाम से विख्यात है। यह धार्मिक मंदिर इस क्षेत्र के सबसे पुराने और पवित्र मंदिरों में से एक है। हर साल इस मंदिर में एक वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। कलंझड़ी मेला इस बार 25 जून को मनाया जाएगा।
जोधाराम मिस्त्री ने बनाया मंदिर
कलंझड़ी माता मंदिर के पुश्तैनी पुजारी एवं संचालक अजय रांगड़ा ने बताया कि उनके पड़दादा जोधा राम मिस्त्री ने करीब 170 साल पहले इस मंदिर का निर्माण किया । उन्होंने यह बताया कि जोधाराम ने ही अंग्रेजों के जमाने में हमीरपुर तहसील भवन का निर्माण करवाया था। अजय रांगड़ा ने बताया कि उनके दादा स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय सूबेदार श्रवण सिंह तथा दादी प्रभी देवी ने मंदिर की खूब सेवा की। दादी प्रभी देवी लगातार 65 वर्ष इस मंदिर की सेवा में लगी रही। पुश्तैनी पुजारी अजय रांगड़ा ने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय सूबेदार मेजर जय कृष्ण , चाचा हवलदार शक्ति चंद ने भी कलंझड़ी माता मंदिर की लगातार सेवा की और मंदिर को भव्य रूप दिया। अब भी मंदिर की तहज़मीन पिता स्वर्गीय सूबेदार मेजर जय कृष्ण के नाम है वर्तमान में पुश्तैनी पुजारी अजय रांगड़ा ने मंदिर की सेवा कर इसे भव्य रूप प्रदान किया है। अजय रांगड़ा एनआईटी हमीरपुर में कई वर्षों से सुरक्षा कर्मचारी के रूप में भी कार्य कर रहे हैं। मंदिर की देखरेख में पुजारी अजय रांगड़ा का परिवार पूर्ण सहयोग करता है।
यूं मिली माता कलंझड़ी की मूर्ति
अजय रांगड़ा के मुताबिक सराहकड़ गांव के साथ लगाते इलाके में कुछ लोग हल जोत रहे थे। अचानक हल एक जगह फंसा और बार बार हल जंप मारने लगा। जब वहां खुदाई की तो माता की मूर्ति निकली। लोगों ने अनुष्ठान पूर्ण उस मूर्ति को वर्तमान स्थान पर लाया और रख दिया। इसके बाद इस मूर्ति को यहां से कोई न हिला सका । आज भी वही मूर्ति सिद्ध पीठ महामाया काली श्री कलंझड़ी देवी मूल स्थान सराहकड़ में मंदिर के अंदर विराजमान है।
रांगड़ा परिवारों की कुल देवी है माता कलंझड़ी
सिद्ध पीठ महामाया काली श्री कलंझड़ी देवी आज भी रांगड़ा परिवारों की कुल देवी है। यहां रांगड़ा परिवार हर खुशी के मौके पर मन्नत मांगने और माथा टेकने दूर दूर से आते हैं । पुजारी अजय रांगड़ा के दादा सूबेदार श्रवण सिंह के 6 पुत्र थे। उन्हीं के वंशज और सराहकड़ गांव के ग्रामीण मिलजुलकर माता मंदिर की सेवा करते हैं।
मंदिर में होते हैं धार्मिक आयोजन
पूरा साल सिद्ध पीठ महामाया काली श्री कलंझड़ी देवी मंदिर में धार्मिक आयोजन होते हैं। चैत्र मास में यहां भागवत कथा तथा शारदीय नवरात्रि में माता के अनुष्ठान पंडित सुंदर गौतम की देखरेख में करवाए जाते हैं। इन आयोजनों में कैप्टन सुखदेव रांगड़ा, सूबेदार मेजर प्रताप चंद रांगड़ा, हवलदार प्रीतम चंद, ईश्वर दास धीमान, इत्यादि का प्रमुख योगदान रहा है।
हर साल छड़ी यात्रा के साथ 11 प्रविष्ठे को शुरू होता है कलंझड़ी मेला
सिद्ध पीठ महामाया काली श्री कलंझड़ी देवी मंदिर में हर साल आषाढ़ मास के 11 प्रविष्ठे को मेला लगता है । मेले की शुरुआत सुबह रांगड़ा परिवार के पुश्तैनी घर से छड़ी यात्रा से होती है। मान्यता है कि माता कलंझड़ी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। मेले की यह परंपरा आज भी कायम है।