
नगरोटा सूरियां से बीडीओ कार्यालय को जवाली शिफ्ट करने पर हिमाचल हाईकोर्ट की रोक
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कांगड़ा जिले के नगरोटा सूरियां स्थित विकास खंड अधिकारी (बीडीओ) कार्यालय को जवाली शिफ्ट करने पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। 10 जून को कार्यालय को शिफ्ट करने की अधिसूचना जारी की गई थी। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने इस संबंध में सरकार को नोटिस जारी किए हैं। मामले में प्रतिवादी को तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी।
वहीं, अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश पंचायती राज (चुनाव) नियम 1994 के नियम 8 के तहत कार्यालय नगरोटा सूरियां के संबंध में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी। परिसीमन का अंतिम प्रकाशन 30 मई को किया गया। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब बीडीओ कार्यालय का परिसीमन अंतिम रूप से प्रकाशित हो गया, तो प्रतिवादी नई परिसीमन प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकते थे। अदालत ने प्रथम दृष्टया में पाया कि प्रतिवादियों की ओर से अब की जा रही यह प्रक्रिया कानून के प्रावधानों के विपरीत है।
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उधर, नगरोटा सूरियां बीडीओ कार्यालय में कोर्ट से रोक के आदेश आने से पहले जमकर हंगामा हुआ। दफ्तर से सामान जवाली ले जाने के लिए कर्मचारी सुबह पुलिस के साथ पहुंचे। जैसे ही पैक किए सामान को निकालने लगे तो ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया। करीब तीन घंटे गहमागहमी के बीच कर्मचारियों ने ट्रक में सामान भरा, मगर कोर्ट की रोक के बाद वापस रखना पड़ा।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उपमंडल पुलिस अधिकारी (एसडीपीओ) के वर्तमान स्थान पर न्यूनतम 2 साल का कार्यकाल पूरा नहीं होने पर तबादला आदेश रद्द करने के निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने 3 जनवरी 2025 के अंतरिम आदेश को भी समाप्त कर दिया। कोर्ट ने पाया कि पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता वाले पुलिस स्थापना बोर्ड ने कभी भी याचिकाकर्ता के तबादले की सिफारिश नहीं की थी, जो अधिनियम की धारा 56 के तहत आवश्यक है। अदालत ने कहा कि तबादला हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम 2012 के वैधानिक प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से लगाए गए राजनीतिक हस्तक्षेप को खारिज किया। अदालत ने कहा कि जब तक पुलिस स्थापना बोर्ड की ओर से सिफारिश नहीं की जाती, तब तक किसी भी पुलिस अधिकारी का तबादला सक्षम प्राधिकारी की ओर से नहीं किया जा सकता।
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वहीं, अदालत ने याचिकाकर्ता की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्हें 24 दिसंबर 2024 को बैजनाथ से पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय डरोह स्थानांतरित करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि यह तबादला नीति का उल्लंघन है और एक स्थानीय विधायक के बेटे के खिलाफ चालान जारी करने के बाद राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण किया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि पुलिस अधिनियम 2012 की धारा 56 के तहत सीडीपीओ का न्यूनतम कार्यकाल 2 साल होता है। यदि इस अवधि से पहले तबादला होता है तो अधिनियम के तहत लिखित में कारण दर्ज किए जाने चाहिए। धारा 56 के अनुसार पुलिस अधिकारियों के तबादले की सिफारिश केवल पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता वाली पुलिस स्थापना समिति की ओर से की जाती है। तबादला के समय इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है।