
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
जटोली शिव मंदिर/ सोलन
हमारे देश में रहस्यमयी मंदिरों की कमी नहीं है। कहीं हवा में झूलते खंभों पर मंदिर टिका है तो कहीं गर्म पहाड़ पर भी एसी जैसी हवा चलती है। ऐसे ही एक अनूठे शिव मंदिर की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। जो 39 साल में बनकर तैयार हुआ। यही नहीं मान्यता है कि भोलेबाबा स्वयं इस स्थान पर आए थे। तो आइए इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं…..
आज हम जिस मंदिर का जिक्र कर रहे हैं वह हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित है। इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी माना जाता है। इस मंदिर का नाम जटोली शिव मंदिर है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है।
छूने मात्र से आती है डमरू की आवाज
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पत्थरों को सिर्फ छूने मात्र से भी डमरू की आवाज निकलने लगती है। इस रहस्यमयी कहानी के लिए हर दिन हजारों भक्त दर्शन करने और डमरू की आवाज सुनने के लिए पहुंचते हैं। खासकर सावन के महीने में हर दिन यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि पौराणिक काल में भोलेबाबा भी यहां आए थे और कुछ समय के लिए रहे थे। बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए। जिनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। वर्ष 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी। हालांकि 1983 में उन्होंने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य नहीं रुका। इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी। इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में तकरीबन 39 साल का समय लगा।
मंदिर निर्माण का कार्य हरियाणा निवासी स्वामी के भक्त ने शुरू किया था। करोड़ों रुपए से बने इस मंदिर के निर्माण का खर्च भक्तों के चढ़ावे और दान दी गई धनराशि से ही किया गया है। मंदिर की नींव रखने के तीन साल बाद ही स्वामी ब्रह्मलीन हो गए, लेकिन प्रबंधन समिति ने इसका काम जारी रखा। उधर इसी बीच जिस भक्त ने मंदिर निर्माण का बीड़ा उठाया था, उनका भी निधन हो गया, लेकिन पिता के निधन के बाद बेेटे ने इस कार्य को जारी रखा। करीब 33 साल तक निर्माण कार्य चलने के बाद इस मंदिर को 24 जनवरी 2013 को सबसे पहले गुबंद को स्थापित करने के बाद दर्शनार्थ खोल दिया गया। एशिया के सबसे ऊंचे मंदिर के गर्भ गृह में शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय विराजमान हैं। गुफा के ठीक सामने बनाया गया यह सबसे ऊंचा शिवालय इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां दुनिया का सबसे अलग शिवलिंग स्थापित किया गया है।
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मान्यता है कि जटोली में पानी की समस्या थी। जिससे राहत दिलाने के लिए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। इसके बाद त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला। तब से लेकर आज तक जटोली में कभी भी पानी की समस्या नहीं हुई। यही नहीं कहते हैं कि इस पानी को पीने से गंभीर से गंभीर बीमारी भी ठीक हो सकती है।
ऐसे पहुंचें मंदिर
जलोटी मंदिर पहुंचना बहुत आसान है। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा आदि राज्यों से सोलन के लिए बस भी चलती है। दिल्ली कश्मीरी-गेट से हिमाचल रोडवेज बस भी चलती है।
सबसे पास में शिमला हवाई अड्डा है। यहां से कैब या टैक्सी लेकर आसानी से सोलन पहुंच सकते हैं। कालका-शिमला ट्रेन से शिमला पहुंचकर भी जलोटी मंदिर मंदिर पहुंच सकते हैं।