
Diksha Thakur | Pol Khol News Desk
अर्धनारीश्वर मंदिर / मंडी
हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। इस स्थान पर देवी-देवताओं के कई रहस्यमयी मंदिर हैं। जिन्हें देखकर सभी हैरान रह जाते हैं। इन्हीं में से एक है अर्धनारीश्वर मंदिर। अर्धनारीश्वर मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र मंदिर है और भक्तों द्वारा अत्यधिक पूजनीय है। हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में स्थित यह मंदिर भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती को समर्पित है। “अर्धनारीश्वर” नाम का अर्थ है एक व्यक्ति या देवता जो आधा पुरुष और आधी महिला है। मंदिर में पत्थर की छवि का दाहिना आधा हिस्सा भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है और बायां आधा उनकी पत्नी पार्वती का प्रतिनिधित्व करता है।
शिव के बाल विशिष्ट रूप से उलझे हुए हैं और उन्होंने खोपड़ियों की माला, गले में लिपटा हुआ एक नाग, एक हाथ में एक संगीत वाद्ययंत्र और दूसरे हाथ में डमरू या ड्रम पहना हुआ है। दिव्य पत्नी पार्वती को एक मुकुट, एक जोड़ी बालियां और नाक पर एक अंगूठी पहने हुए दिखाया गया है। आइकन सभी मानकों से अच्छी तरह निष्पादित है।
छवि के साथ एक स्लैब जुड़ा हुआ है जिस पर देवताओं के वाहन – बैल और शेर, कलात्मक रूप से उकेरे गए हैं। ‘भैरों’ और भगवान हनुमान की छवियां भी वहां हैं।मंदिर में एक कक्ष, बरामदा और एक मंडप है। मंदिर की नक्काशी उच्च कोटि की है। उत्तरी भारत में अर्धनारी चिह्न दुर्लभ हैं और यहां इस चिह्न की उपस्थिति काफी अजीब है।
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मान्यताएं
त्रिदेवों में शिव एक हैं। ब्रह्मदेव जहां सृष्टि के रचयिता माने गए हैं, वहीं विष्णु पालक और शिव संहारक माने गए हैं। इनमें श्री विष्णु को हरि और शिव को हर कहा जाता है। भक्तजन दोनों के नाम को हरि-हर एक साथ बोलते हैं, तो एकेश्वर की संज्ञा दी जाती है। पुराणों के अनुसार, विष्णु के 24 अवतार हैं, जिनमें वे अपने मूल-स्वरूप से किसी और प्राणी की देह के रूप में धरती पर रहकर गए। उसी प्रकार शिवजी के भी कई अंशावतार हुए। उन्हीं का एक स्वरूप ‘अर्धनारीश्वर’ हैं। ईश्वर के समक्ष नर-नारी के बीच कोई भेद नहीं है। जैसे श्री हरि (भगवान विष्णु) ने पुरुष के रूप में कई लीलाएं कीं, उसी प्रकार वे मोहिनी रूप में नारी भी बनकर आए।’
श्री हर (भगवान शिव) के भी कई अंशावतार हैं, उन्होंने भी नारी स्वरूप धरा था, जिसे अर्धनारीश्वर कहा गया। इसका अर्थ होता है- आधी स्त्री और आधा पुरुष। शिवजी के इस स्वरूप के आधे भाग में पुरुष और आधे भाग में स्त्री रूपी उमा यानी शक्ति नजर आईं। मान्यताएं हैं कि इसी रूप के फलस्वरूप संसार में सभी प्राणियों में नर-नारी हुए, सृष्टि की शुरुआत हुई।
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अर्धनारीश्वर शिवजी ही माने गए हैं। ब्रह्मदेव के अनुरोध पर उन्होंने स्त्री-पुरुष दोनों की उत्पत्ति के लिए यह रूप धरा। इससे हमें यह अहसास होता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। पृथ्वी पर पहले पुरुष का नाम- मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था।
मनु की संतान होने के कारण इंसान मानव कहलाये। उनसे प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और 3 कन्याएं उत्पन्न हुईं। इसी तरह ईश्वरीय माया से संसार के समस्त जीवों की उत्पत्ति हुई। शिवजी की कांतिमय शक्ति ही दक्ष प्रजापति की पुत्री हुईं। ब्रह्माजी के मानस पुत्रों ने उनसे विवाह किया।