
हिमाचल प्रदेश के सेब कारोबार में 1,500 करोड़ की गिरावट
पोल खोल न्यूज़ | शिमला
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से उत्पादन प्रभावित होने के चलते हिमाचल प्रदेश में डेढ़ दशक में सेब कारोबार 1,500 करोड़ रुपये घट गया है। बताते चलें कि सेब उत्पादन साल-दर-साल कम हो रहा है। चार से छह हजार फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रॉयल डिलीशियस समेत सेब की कई किस्में नहीं उग रही हैं। गुणवत्ता पर भी ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पड़ रहा है।
हिमाचल प्रदेश में परंपरागत के बजाय कई विदेशी किस्मों के सेब भी उगाए जा रहे हैं, लेकिन पैदावार पर इसका असर नहीं दिख रहा है। लागत और बीमारियां भी बढ़ रही हैं। सेब का एक कार्टन उगाने और उसे बाजार तक पहुंचाने का खर्च 800 रुपये बैठ रहा है।
इसके अनुपात में रेट नहीं बढ़े हैं। नतीजा, बागवानों की आय भी नहीं बढ़ रही है। प्रदेश में 2010 में रिकॉर्ड 5.11 करोड़ पेटी सेब की पैदावार हुई थी। इस दौरान कारोबार 5,000 करोड़ के आसपास रहता था, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पैदावार घटी है।
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वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदेश में इस बार भी कारोबार 3,500 करोड़ तक ही सीमित रहेगा। इस सीजन में सर्वाधिक बगीचों वाले मध्य व ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में फसल बहुत कम है।
बागवानी विभाग के मुताबिक, 25-26 फीसदी सेब उत्पादन वाले प्रदेश में फल उत्पादन के तहत कुल 2.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आता है। इसमें 1.16 लाख हेक्टेयर में सेब उत्पादन होता है। प्रदेश में रेड डिलीशियस सेब का 70 फीसदी उत्पादन शिमला जिले में ही होता है।
उधर, संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रौद्योगिकी केंद्र एवं नेटवर्क के सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. सौम्य दत्ता का कहना है, ग्लोबल वॉर्मिंग का दक्षिण भारत से दोगुना असर हिमालयी क्षेत्र में हुआ है। स्नो लाइन ऊपर की ओर सरक रही है। इससे कई वनस्पतियां 2,000 फीट ऊपर तक चली गई हैं। सेब के साथ भी यही हुआ है।
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शिमला के ठियोग के प्रगतिशील बागवान कुलदीप कांत शर्मा का कहना है, ग्लोबल वॉर्मिग का असर सेब के स्वाद पर भी पड़ा है। निचले क्षेत्रों के लिए विदेश से हाई कलर रेड डिलीशियस किस्में मंगवानी पड़ रही हैं, पर उपज और स्वाद में ये रॉयल डिलीशियस सेब का मुकाबला नहीं कर पा रही हैं।
हिमाचल प्रदेश का सेब पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए नाममात्र ही निर्यात होता है। शुरुआत में आने के चलते पूरा सेब देश में ही खप जाता है। कृषि उत्पाद मंडी समिति शिमला व किन्नौर के अध्यक्ष देवानंद वर्मा ने कहा, प्रदेश में इतनी पैदावार नहीं हो पा रही है कि इसे निर्यात किया जा सके।
शेल्फ लाइफ अच्छा नहीं होने के कारण कोल्ड स्टोर में रखा सेब ही निर्यात होता है। हालांकि, बागवानी विभाग और मार्केटिंग बोर्ड के पास निर्यात का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
अदाणी फ्रेश समेत अन्य कंपनियां हिमाचल के पांच फीसदी सेब का सौदा बगीचों में ही कर लेती हैं। उच्च गुणवत्ता के इस सेब को कंपनियां खुद ही तुड़वाती हैं और कोल्ड स्टोर में रखकर ऑफ सीजन में मार्केट में उतारती हैं।